देहरादून ऑनलाइन डेस्क। केदारनाथ में आई 13 साल वाली त्रासदी एक बार फिर देवभूमि उत्तराखंड में देखने को मिली। ऐसा जलजला आया, जो इंसानों के साथ ही बेजुबानों को अपने साथ बहा ले गया। ये जलजला उत्तरकाशी जनपद के धराली गांव की खीरगंगा में देखने को मिला। पानी का सैलाब गांव की तरफ आते ही लोगों में चीख पुकार मच गई। कई होटलों में पानी और मलबा घुस गया है। धराली बाजार पूरी तरह तबाह हो गया है। कई होटल दुकाने ध्वस्त हो चुकी है। जानकारी के मुताबिक इस आपदा में अभी तक पांच लोगों के मारे जानें की खबर है। साथ ही दर्जनों बेजुबान भी पानी के बह गए हैं। मौके पर सुरक्षाबलों के जवान राहत-बचाव कार्य में जुटे हैं।
बताया जा रहा है कि खीर गंगा नदी ऊपरी क्षेत्र में बादल फटा। बादल फटते ही भयानक बाढ़ आई है। देखते ही देखते बाढ़ ने धराली मार्केट को अपनी चपेट में ले लिया। बाढ़ का मलबा युक्त पानी इतनी तेजी से नीचे आया कि किसी को संभलने का मौका ही नहीं मिला। धराली मार्केट से ऊपर मौजूद लोग इस दौरान भागो-भागो की आवाज लगाते हुए चिल्लाते रहे। लेकिन बाढ़ के सैलाब की आवाज के सामने उनकी आवाजें दबकर रह गईं। बाढ़ के पानी और मलबे की रफ्तार इतनी तेज थी कि वो पल भर में ही पूरे धराली मार्केट को अपनी चपेट में ले चुका था। देखते ही देखते जहां कुछ देर पहले खीर गंगा के किनारे सुंदर धराली मार्केट दिख रहा था, वहां पल भर में विनाश के निशान दिखाई देने लगे।
गंगोत्री जाते समय हर्षिल से करीब 6-7 किलोमीटर दूर मौजूद धराली गांव। यहां से गंगोत्री का रास्ता लगभग 15-18 किलोमीटर बचता है। जिनलोगों को हर्षिल में रुकने की जगह नहीं मिलती, वो धराली में रुकते हैं। इसके बाद गंगोत्री तक कोई कस्बा नहीं है। गंगोत्री तक जाने के दौरान यहां करीब 5-6 ग्लेशियर पड़ते हैं, जिन्हें काटकर सड़क पर रास्ता बनाया जाता है। रविवार की देररात से मूसलाधार बारिश हो रही है। जिसकी चपेट में धराली समेत कई अन्य गांव आ गए। बाढ़ के पानी और मलबे की रफ्तार इतनी तेज थी कि वो पल भर में ही पूरे धराली मार्केट को अपनी चपेट में ले चुका था। लोग घरों को छोड़कर भाग चुके थे। उत्तरकाशी, हर्षिल क्षेत्र में खीर गंगा का जलस्तर बढ़ने से सरकार ने अलर्ट जारी कर दिया है।
दरअसल, हिमालयी क्षेत्रों में इस साल 2025 के मॉनसून ने एक बार फिर तबाही मचा दी है। ‘हिमालयी सुनामी’ जैसे नाम से मशहूर ये घटनाएं, यानी बादल फटने और बाढ़, हर साल पहाड़ी इलाकों में कहर बरपाती हैं। अब उत्तराखंड के धराली गांव में बादल फटने की घटना ने सबका ध्यान खींचा है। नाला उफान पर आ गया है। पहाड़ी से नीचे की ओर तेजी से पानी बहता दिखाई दे रहा है। जिला आपदा प्रबंधन ने इस हादसे की पुष्टि की है, लेकिन अभी तक जान-माल के नुकसान की पक्की जानकारी नहीं मिली है। यह गांव गंगोत्री धाम और गंगा जी के शीतकालीन प्रवास मुखवा के पास है, जो इस घटना को और गंभीर बनाता है। हिमालयी सुनामी के खौफ से लोग डरे हुए हैं और केदारनाथ से प्रकृतिक आपदा से बचाए जानें की गुहार लगा रहे हैं।
अब हम आपको बताते हैं क्यों आई हिमालयी सुनामी। किसे कहते हैं हिमालयी सुनामी। दरअसल, बादल फटना एक ऐसी प्राकृतिक घटना है, जिसमें एक छोटे से इलाके में एक घंटे में 10 सेंटीमीटर (100 मिलीमीटर) से ज्यादा बारिश हो जाती है। हिमालय जैसे पहाड़ी इलाकों में यह तब होता है जब गर्म हवा और नमी भरे बादल पहाड़ों से टकराते हैं। अचानक भारी बारिश शुरू हो जाती है। इससे नाले उफान पर आते हैं। बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति बनती है, जिसे लोग हिमालयी सुनामी कहते हैं। यह घटना इतनी तेज होती है कि पहले से भविष्यवाणी करना मुश्किल है। 2025 के मानसून सीजन (जून से अब तक) में हिमालयी राज्यों, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, और अन्य पहाड़ी इलाकों में कई बादल फटने की घटनाएं हुई हैं।
इस सुनामी से हिमाचल प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य रहा है। जून 20 से जुलाई 6 के बीच 19 बादल फटने की घटनाएं और 23 बाढ़ की घटनाएं दर्ज की गईं। मंडी जिला सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, जहां 1 जुलाई को 1,900 फीसदी ज्यादा बारिश हुई, जिससे 10 लोगों की मौत और 34 लापता हुए। उत्तराखंड के धराली गांव की ताजा घटना सहित कई जगहों पर बादल फटने की सूचना है। जुलाई में चमोली और पिथौरागढ़ में भी ऐसी घटनाएं हुईं, जिसमें 10 से ज्यादा मौतें हुईं। जम्मू-कश्मीर में जून और जुलाई में किश्तवार और राजौरी में बादल फटने से बाढ़ आई, लेकिन सटीक संख्या कम उपलब्ध है। अब तक 30 से 40 बादल फटने की घटनाएं हिमालयी राज्यों में दर्ज की गई हैं, लेकिन सटीक आंकड़ा हर दिन बदल रहा है। क्योंकि कई घटनाएं दूरदराज के इलाकों में होती हैं, जहां जानकारी देर से मिलती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये जलवायु परिवर्तन के चलते हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हवा में नमी बढ़ रही है, जो भारी बारिश को जन्म देती है। हिमालय की ऊंची चट्टानें और ढलान पानी को तेजी से नीचे लाते हैं, जिससे बाढ़ आती है। सड़कें, बांध और निर्माण कार्य पहाड़ों को कमजोर कर रहे हैं, जिससे भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ता ह। दक्षिण-पश्चिम मानसून की हवाएं जब हिमालय से टकराती हैं, तो अचानक बारिश होती है। जानकार बताते हैं कि धार्मिक स्थलों के पास. जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास इसे और गंभीर बना रहे हैं। सरकार को अलर्ट सिस्टम और बचाव कार्यों को तेज करना होगा, ताकि इस हिमालयी सुनामी से बचा जा सके।