क्या देवभूमि से समाप्त होगी मदरसा व्यवस्था ? उत्तराखंड कैबिनेट ने लिया महत्वपूर्ण फैसला

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में आयोजित आज की कैबिनेट बैठक में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। राज्य सरकार ने वर्ष 2016 में कांग्रेस शासनकाल में पारित उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को समाप्त करने का फैसला लिया है।

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Uttarakhand News : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में आयोजित आज की कैबिनेट बैठक में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। राज्य सरकार ने वर्ष 2016 में कांग्रेस शासनकाल में पारित उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को समाप्त करने का फैसला लिया है। इसके अतिरिक्त, आगामी गैरसैंण विधानसभा सत्र में उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक अधिनियम विधेयक को पेश किया जाएगा, जिसकी मंजूरी के बाद राज्य में एक नई शैक्षिक व्यवस्था लागू होगी।

इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण (Authority) का गठन किया जाएगा, जो राज्य में स्थापित होने वाले अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को नियामक दायरे में लाकर उनकी स्थापना और संचालन के लिए दिशा-निर्देश तैयार करेगा। सूत्रों के अनुसार, इस प्रकार का व्यापक कानून लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनने जा रहा है।

क्या होगी बोर्ड की नई रणनीति 

गौरतलब है कि अब तक मदरसा शिक्षा बोर्ड केवल मुस्लिम समुदाय के शिक्षण संस्थानों तक ही सीमित था। इस बोर्ड के अंतर्गत वर्तमान में 452 मदरसे पंजीकृत हैं। लेकिन 1 जुलाई 2026 से यह बोर्ड औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया जाएगा। नई नीति के तहत केवल मुस्लिम नहीं, बल्कि सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन जैसे सभी धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षिक संस्थानों को भी समान अधिकार और मान्यता दी जाएगी।

राज्य सरकार का मानना है कि अब तक अल्पसंख्यक संस्थानों के पंजीकरण और मान्यता की प्रक्रिया पारदर्शिता से वंचित रही है। हाल के वर्षों में अवैध रूप से संचालित हो रहे मदरसों के खिलाफ हुई कार्रवाई के बाद यह अनुभव किया गया कि सभी अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षिक संस्थानों के लिए एक स्पष्ट और निष्पक्ष व्यवस्था की आवश्यकता है।

मान्यता नियमावली को किया गया निरस्त 

इस नए विधेयक के लागू होने के साथ ही राज्य में उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2016 और उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियमावली 2019 दोनों को निरस्त कर दिया जाएगा। खास बात यह है कि इन्हें प्रभावी रूप से 1 जुलाई 2016 से अमान्य माना जाएगा, यानी इन अधिनियमों का कोई वैधानिक अस्तित्व नहीं रहेगा।

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सरकार का दावा है कि नया कानून न केवल राज्य में शिक्षा व्यवस्था को अधिक समावेशी बनाएगा, बल्कि सभी अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षिक अधिकारों को भी संरक्षित करेगा। यह कदम समान अवसर की दिशा में एक बड़ा सुधार माना जा रहा है, जिससे अल्पसंख्यक संस्थानों को एक व्यवस्थित और संस्थागत पहचान मिलेगी।

स्वास्थ्य और रोजगार के मोर्चे पर भी बड़ी घोषणाएं

आज की ही कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 220 चिकित्सा अधिकारियों को नियुक्ति पत्र सौंपे। मुख्यमंत्री ने बताया कि पिछले चार वर्षों में राज्य में 24,000 से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी का अवसर मिला है। साथ ही, नकल विरोधी कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के बाद राज्य में प्रतियोगी परीक्षाएं अब पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता से आयोजित की जा रही हैं।

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