लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। मौलाना तौकीर राजा की कभी बरेली के साथ ही आसपास के जिलों में तूती बोला करती थी। रजा की एक हुंकार पर हजारों लोग सड़कों पर उतर आया करते थे। एक वक्त ऐसा भी आया, जब मौलाना के इशारे पर आईएएस-आईपीएस अफसरों की तैनाती बरेली में हुआ करती थी। करीब दर्जनभर से ज्यादा विधानसभा सीटों पर रजा का रौला था। रजा के कहने पर लोग वोट देते थे। लेकिन 26 सितंबर को मौलाना ने लकीर पार कर दी। मौलाना बड़ी चूक कर बैठा। मौलाना सीएम योगी आदित्यनाथ को ठीक से समझ नहीं पाया और आई लव मोहम्मद को लेकर उसने भड़काऊ बयान दे डाला। जिसके चलते बरेली धू-धू कर जलने लगा। सरकार और प्रशासन हरकत में आया और मौलाना एंड कंपनी को सलाखों के पीछे भेजकर रजा की सल्लतन को जमींदोज के लिए ऑपरेशन लॉन्च कर दिया।
मौलाना तौकीर राजा के भड़काऊ बयान के बाद उन शिकंजा कसना शुरू हो गया है। उनके करीबियों को पुलिस एक-एक कर खोज रही है तो बीडीए का बुलडोजर भी गेट से बाहर आ चुका है। अब हालात ऐसे हो गए है कि जिन नेताओं की आंख का मौलाना तारा हुआ करते थे। अब वही बड़े नेताओं ने उससे आंखें फेर ली हैं। बता दें, वर्षों तक चुनावी मौसम में उसकी तकरीरें न सिर्फ सुर्खियों में रहीं, बल्कि कुछ सियासी दलों के लिए वोटों का ध्रुवीकरण कराने का जरिया भी बनीं। मगर, अब मौलाना के दुर्दिन शुरू हुए तो उसे संरक्षण देने वाले सत्तापक्ष के नेताओं ने भी उससे दूरी बना ली। एक भी बड़ा नेता मौलाना के पक्ष में नहीं उतरा। कांग्रेस और सपा के नेता सिर्फ बरेली हिंसा को लेकर बयान दे रहे हैं। हिंसा के बाद पुलिस की कार्रवाई को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। विपक्ष के नेता हिंसाग्रस्त इलाकों में जानें की मांग कर रहे हैं, लेकिप कोई भी मौलाना का नाम नहीं ले रहा।
मौलाना तौकीर अपने भड़काऊ भाषण की वजह से जिले के एक कद्दावर नेता का बेहद करीबी हो गए थे और अप्रत्यक्ष रूप से उनके चुनाव प्रबंधन की कमान भी संभालता था। वर्ष 2010 में शहर दंगों की आग में जल रहा था। उन दंगों में मौलाना मास्टरमाइंड की भूमिका में नजर आए। पुलिस ने मौलाना को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। हालांकि, मौलाना को जल्दी ही जमानत मिल गई थी। मौलाना की जमानत लेने वालों में उसी कद्दावर नेता के करीबी शामिल रहे। यह पहली बार था जब नेता और मौलाना की दोस्ती से पर्दा उठा था। इसके बाद मौलाना की तकरीरों से नेता को जबर्दस्त फायदा होता रहा। इस बार कानून-व्यवस्था खराब होने पर मौलाना के करीबियों ने उन्हीं नेता से संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन उसे कोई आश्वासन नहीं मिला। मौलाना का वो करीबी नेता भी खुद को अंडरग्राउंड कर चुका है। सपा और कांग्रेस के बड़े नेता भी मौलाना के पक्ष में चुप्पी साधे हुए हैं।
मौलाना तौकीर रजा खान, आला हजरत अहमद रजा खान बरेलवी का प्रपौत्र है। उत्तर प्रदेश के बरेलवी सुन्नी मुस्लिम समाज में एक प्रभावशाली चेहरा माना जाता है। उसका ताल्लुक देश के सबसे प्रतिष्ठित सूफी घराने से है। उनके भाई मौलाना सुबहान रजा खान दरगाह आला हजरत का चेयरमैन है। 7 अक्टूबर 2001 को उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल की स्थापना की। तौकीर रजा का राजनीतिक सफर विवादों और गठबंधनों से भरा रहा है। उनकी पार्टी ने स्थानीय निकाय चुनावों में शुरुआत की और कांग्रेस, सपा और बसपा को समय-समय पर समर्थन दिया। 2009 लोकसभा चुनाव में उनके समर्थन से कांग्रेस उम्मीदवार ने बीजेपी नेता संतोष गंगवार को हराया। 2012 विधानसभा चुनाव में उन्होंने उम्मीदवार उतारे, लेकिन कई बाद में अन्य दलों में शामिल हो गए।
मौलाना तौकीर रजा ने सबसे पहले 1987 में ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सका। वर्ष 1992 में बदायूं की बिनावर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन वह भी हार गया। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के समय में उन्हीं की पार्टी जनता दल से बरेली की कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और वह भी हार गया। 2013 में सपा सरकार ने उन्हें यूपी हैंडलूम कॉरपोरेशन का उपाध्यक्ष बनाया, लेकिन 2014 मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। तौकीर रजा अक्सर अपने बयानों से विवादों में रहे हैं। 2007 में उन्होंने लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ फतवा जारी किया। 2010 में बरेली दंगों में उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ। मार्च 2024 में अदालत ने उन्हें दंगे का मास्टरमाइंड करार दिया। इसके अलावा ट्रिपल तलाक, ज्ञानवापी मस्जिद और हल्द्वानी हिंसा पर उनके बयानों ने भी सियासी हलचल मचाई।