Srilanka Crisis: श्रीलंका में राजनीतिक संकट काफी गहराई में जा चुका है. देश में आपातकाल की घोषणा की गई है और देश के कई हिस्सो में हिंसक प्रदर्शन भी हो रहे हैं. इस्तीफे का ऐलान कर चुके राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पहले ही देश छोड़कर जा चुके हैं और देश के संवैधानिक प्रावधानों के तहत प्रधानमंत्री बनाए गए रनिल विक्रमसिंघे से भी तुरंत इस्तीफा देने की मांग की जा रही है. प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे के दफ्तर में घुस चुके हैं और राष्ट्रीय टीवी चैनल के स्टूडियो पर कब्ज़ा कर चैनल को भी ऑफ एयर (Off Air) कर दिया है. इस तरह के हालात में सवाल यह उठता है कि आखिर यह स्थिति क्यों पैदा हो गई ? क्या श्रीलंका के पास अब विदेशी मुद्रा का भंडार नहीं बचा है, जिसका मतलब साफ है कि उसके पास अब दूसरे देशों से सामान खरीदने की क्षमता नहीं है. अगर सरकार की मानें तो इसके पीछे की वजह कोविड महामारी है क्योंकि इसका सीधा असर पर्यटन पर पड़ा है. हालांकि, पर्यटन सेक्टर, श्रीलंका की कमाई का जरूरी हिस्सा रहा है. लेकिन अब सवाल यह भी उठता है अगर भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों में बड़े बदलाव नहीं किए तो उसका हाल भी एक दिन श्रीलंका जैसा हो सकता है ? लेकिन क्या आपको पता है कि आज श्रीलंका जिस स्थिति में है, एक ज़माने में भारत ने ऐसे ही आर्थिक संकट का सामना किया था.
![](https://storage.googleapis.com/ultra-cdn-com/news1india.in/2022/07/64bad767-2.jpg)
ये बात वर्ष 1991 की है, जिस समय भारत के Foreign Reserves में एक Billion Dollar की विदेशी मुद्रा ही बची थी. यानी उस समय भारत की आर्थित स्थिति श्रीलंका से भी ज्यादा कमज़ोर थी. श्रीलंका के Foreign Reserves में अभी दो Billion Dollar की विदेश मुद्रा बची है. जबकि उस समय भारत का Foreign Reserve एक बिलियन डॉलर हो गया था.
![](https://storage.googleapis.com/ultra-cdn-com/news1india.in/2022/07/bc177872-3.jpg)
इतनी कम विदेशी मुद्रा में भारत 15 दिन का ही आयात कर सकता था. इसके बावजूद तब हमारे देश के लोगों ने श्रीलंका के आम लोगों की तरह राष्ट्रपति भवन पर कब्जा नहीं किया. सड़कों पर दंगे नहीं हुए और ना ही प्रधानमंत्री कार्यालय को श्रीलंका के आम लोगों की तरह तहस नहस किया. ये भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि हमारे देश के लोगों ने संकट की स्थिति में भी देश का और अपनी सरकारों का पूरा साथ दिया है और अपना विश्वास टूटने नहीं दिया है. इसी विश्वास का नतीजा है कि आज भारत श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों से कहीं ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि भारत में वो कभी हो ही नहीं सकता, जो आज श्रीलंका में हो रहा है.
इस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 46 लाख 50 हज़ार करोड़ रुपये का है. जबकि श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ़ साढ़े 15 हज़ार करोड़ रुपये का है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 77 हजार 420 करोड़ रुपये का है. विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में China, Japan और Switzerland के बाद भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है.
आज अगर किसी वजह से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अस्थिर हो जाता है तो भी भारत इतने Foreign Reserves से अगले 10 महीने तक दूसरे देशों से आयात को जारी रख सकता है. जबकि श्रीलंका के पास सिर्फ इतना विदेशी मुद्रा भंडार है कि वो कुछ ही हफ्तों का आयात कर सकता है और पाकिस्तान सिर्फ दो महीने का आयात ही कर सकता है.
डॉलर के मुकाबले भारत का रुपया कमज़ोर ज़रूर हुआ है. लेकिन दूसरे देशों की तुलना में हमारी Currency अब भी काफ़ी मजबूत है. आज एक डॉलर भारत के 79 रुपये 60 पैसे के बराबर है. वहीं एक डॉलर श्रीलंका के 357 रुपये 55 पैसे और पाकिस्तान के 210 रुपये 87 पैसे के बराबर है.
इसके अलावा Gold Reserve के मामले में भी भारत की स्थिति बहुत मजबूत है. भारत के पास 760 टन Gold Reserve है. जबकि श्रीलंका के पास सिर्फ डेढ़ टन Gold Reserve ही बचा है. 2018 में श्रीलंका के पास 20 टन Gold Reserve था. लेकिन 2021 में श्रीलंका की राजपक्षे सरकार ने इसे बेचकर लोन लिया. जिससे श्रीलंका के Gold Reserve में ये ऐतिहासिक गिरावट आई. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि भारत के लिए कोई चुनौती नहीं है. भारत में बढ़ती महंगाई, डॉलर की तुलना में रुपये का कमज़ोर होना और आर्थिक क्षेत्र में सुस्ती.. ये वो मुद्दे हैं, जो भारत की मुश्किले बढ़ा रहे हैं. अच्छी बात ये है कि सरकार और RBI इस पर पहले से अलर्ट हैं.
आपको बता दे की RBI ने International Trade Settlement के लिए भारतीय रुपये के इस्तेमाल को इजाजत दे दी है. सरल शब्दों में कहें तो भारत को अब उन देशों या कंपनियों से व्यापार करने में आसानी होगी, जो डॉलर में व्यापार करने के लिए इच्छुक नहीं थी. जैसे Russia और Ukraine युद्ध के बाद अमेरिका ने पूर्व के कई देशों पर डॉलर में Russia के साथ व्यापार करने पर रोक लगा दी थी, ऐसे में रुपये में व्यापार करने का विकल्प आने से ऐसे देशों से व्यापार करना और आसान होगा. यानी ग्लोबल ट्रेडिंग में रुपये को बढ़ावा मिलने से रुपये की स्थिति और मजबूत हो जाएगी.
कहते हैं कि अगर पड़ोस में सब ठीक चल रहा हो तो अपने घर में भी शांति बनी रहती है और अगर पड़ोस में अशांति और अनिश्चितता का माहौल हो तो घर में भी चिंताएं बढ़ जाती हैं. इसलिए श्रीलंका के इस संकट में भारत के लिए चिंताएं भी छिपी हैं. श्रीलंका में अनिश्चितता का माहौल ज्यादा दिन रहता है तो वहां से लोगों का पलायन भी शुरू हो जाएगा. ये लोग शरण के लिए भारत आ सकते हैं. वर्ष 1983 से 2009 के बीच जब श्रीलंका में गृह युद्ध की स्थितियां थी, तब भी श्रीलंका के लाखों नागरिक भारत में शरणार्थी बनकर आए थे.
इसके अलावा भारत ने इस गृह युद्ध में अपने एक पूर्व प्रधानमंत्री को भी खो दिया था. वर्ष 1991 में LTTE के आतंकवादियों ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी थी.
![](https://storage.googleapis.com/ultra-cdn-com/news1india.in/2022/07/7969274b-ezgif.com-gif-maker-2.jpg)
तब भारत ने श्रीलंका में अपनी Peace-keeping Force यानी शांति सेना भी भेजी थी. इसलिए श्रीलंका के हालात भारत के लिए मायने रखते हैं. दूसरा, श्रीलंका सरकार पर चीन का दबाव भी बढ़ रहा है. क्योंकि श्रीलंका ने सबसे ज्यादा 10 प्रतिशत कर्ज अकेले चीन से ही लिया हुआ है. इसलिए हो सकता है कि श्रीलंका को चीन पर और ज्यादा निर्भर होना पड़े. ये भारत के लिए अच्छी स्थिति नहीं होगी.
![](https://storage.googleapis.com/ultra-cdn-com/news1india.in/2022/07/0a759639-7.jpg)
श्रीलंका की सरकार के खिलाफ वहां के नागरिकों में भी काफी असंतोष है, जिससे वहां हिंसक प्रदर्शन बढ़ रहे हैं. अगर श्रीलंका में फिर से गृह युद्ध जैसी स्थितियां बनती हैं तो इसका असर भारत पर भी पड़ेगा. श्रीलंका के अलग अलग क्षेत्रों में भारत ने भारी निवेश किया है और इस निवेश को लेकर भी भारत की चिंताएं हैं. इसके अलावा श्रीलंका में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ने से भारत पर भी दबाव बढ़ेगा. अकेले इस साल में भारत श्रीलंका को 24 हज़ार करोड़ रुपये दे चुका है और श्रीलंका चाहता है कि भारत उसकी और आर्थिक मदद करे.
इस पूरे संकट में भारत के लिए एक और चिंता है. दरअसल, इस समय भारत के सभी पड़ोसी देशों में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता है. श्रीलंका में सरकार के ख़िलाफ़ हिंसक माहौल है और आर्थिक अनिश्चितता भी वहां काफ़ी बढ़ गई है. पाकिस्तान में भी आर्थिक अस्थिरता का माहौल है और हाल ही में वहां शहबाज़ शरीफ की नई सरकार का गठन हुआ है. नेपाल का भी विदेशी मुद्रा भंडार पहले की तुलना में काफी कम हुआ है. जिससे नेपाल ने कई ज़रूरी चीज़ों के आयात पर रोक लगा दी है. अफगानिस्तान में भी तालिबान की सरकार आने के बाद से भूखमरी और गरीबी ऐतिहासिक रूप से बढ़ी है.
![](https://storage.googleapis.com/ultra-cdn-com/news1india.in/2022/07/6714b991-ezgif.com-gif-maker-12.jpg)
Experts के मुताबिक, एक दशक पहले के गृह युद्ध के बाद श्रीलंका घरेलू बाजार में सामानों की आपूर्ति पर लगा रहा और इसकी वजह से दूसरे देशों से आमदनी कम होने के साथ-साथ इंपोर्ट का बिल बढ़ता गया। यही वजह रही कि श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार जो 2020 के शुरुआत में करीब 7.6 बिलियन डॉलर था वह अगले तीन महीने में ही घटकर 2 बिलियन डॉलर से कम हो गया है।