Pahalgam Attack : तीन महीने पहले पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों के सभी अल्पकालिक वीजा रद्द कर दिए थे, जिससे 63 वर्षीय रक्षंदा राशिद को अटारी-वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान भेज दिया गया था। अब, इस मामले में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है। भारत सरकार ने मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए रक्षंदा को वीजिटर वीजा जारी करने का निर्णय लिया है, जिससे वह अपने परिवार से मिल सकेंगी।
रक्षंदा जम्मू के तालाब खटिकन इलाके की निवासी हैं। उनके पति, शेख जहूर अहमद, एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं और उनके चारों बच्चे भारतीय नागरिक हैं, जो जम्मू-कश्मीर में रहते हैं। रक्षंदा ने 1990 में भारत 14 दिन के वीजिटर वीजा पर प्रवेश किया था, और इसके बाद उन्हें दीर्घकालिक वीजा (LTV) मिल गया, जिसे हर साल नवीनीकरण के लिए प्रस्तुत किया जाता था। हालांकि, 4 जनवरी 2025 को जब रक्षंदा ने अपने वीजा का नवीनीकरण कराया, तो भारत सरकार ने इसे अस्वीकृत कर दिया और उन्हें पाकिस्तान डिपोर्ट कर दिया गया।
बीमार रक्षंदा के पास पाकिस्तान में नहीं था कोई सहारा
डिपोर्ट के बाद रक्षंदा पाकिस्तान में बेहद कठिन हालातों से जूझ रही थीं। उनके पति ने अदालत को बताया कि रक्षंदा कई स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं और पाकिस्तान में न तो उनके पास कोई सहारा है और न ही आर्थिक संसाधन। वे सिर्फ 50,000 रुपये लेकर गई थीं, जो अब खत्म हो चुके हैं। 30 जुलाई को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सरकार ने विशेष परिस्थितियों को देखते हुए रक्षंदा को वीजिटर वीजा देने का सिद्धांततः निर्णय ले लिया है। साथ ही, यदि जरूरत पड़ी तो वे दीर्घकालिक वीजा और नागरिकता के लिए भी आवेदन कर सकती हैं।
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इससे पहले 6 जून को जज राहुल भारती ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि रक्षंदा को भारत वापस लाया जाए। उन्होंने कहा था कि जब महिला के पास वैध LTV था, तो बिना पूर्ण जांच के उन्हें देश से बाहर भेजना न्यायसंगत नहीं था। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि “मानव अधिकार, मानव जीवन का सबसे पवित्र पक्ष हैं,” और अदालतों को कभी-कभी कानून की तकनीकी सीमाओं से परे जाकर मानवीय दृष्टिकोण अपनाना पड़ता है।
परिवार को मिली राहत
रक्षंदा के वकील अंकुर शर्मा और हिमानी खजूरिया ने सरकार के निर्णय का स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह फैसला परिवार के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय केवल इस विशेष मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है और इसे भविष्य में किसी अन्य मामले की मिसाल नहीं माना जाएगा।