श्रीनगर: कोरोना महामारी ने बीते दो सालों में सभी को घर की चार दीवारों में कैद रहने पर मजबूर कर दिया था। अब कोरोना के मरीजों की संख्या कम होने के साथ ही सभी गतिविधियां एक बार फिर से पहले की तरह शुरू हो रही हैं। इस बीच अब अमरनाथ यात्रा को भी मंजूरी मिल गई है। जम्मू-कश्मीर उपराज्यपाल के दफ्तर के हवाले से बताया गया है, “अमरनाथ यात्रा 30 जून, 2022 से सभी कोविड प्रोटोकॉल के साथ शुरू होगी और परंपरा के अनुसार रक्षा बंधन के दिन समाप्त होगी। अमरनाथ यात्रा इस साल 43 दिनों तक चलेगी।”
2019 में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने से ठीक पहले अमरनाथ यात्रा बीच में ही रद्द कर दी गई थी। तब जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य होने का दर्जा खत्म करके उसे दो केंद्र शासित प्रदेश में विभाजित कर दिया गया था। इसके बाद कोरोना महामारी की वजह से दो साल से यात्रा स्थगित रही है। 2021 में 56 दिनों की यात्रा की घोषणा हुई थी, लेकिन कोरोना की वजह से बाद में उसे स्थगित कर दिया गया था।
2022 की अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन 11 अप्रैल से शुरू होंगे और ये यात्रा 30 जून से 11 अगस्त तक चलेगी। कोरोना महामारी के बाद ये पहली अमरनाथ यात्रा होगी। ऐसे में सभी श्रद्धालुओं को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना होगा। 13 साल से कम और 75 वर्ष से अधिक और 6 हफ्ते से ज्यादा की प्रेग्नेंट महिला को यात्रा करने की अनुमति नहीं होगी। श्राइन बोर्ड ने पहलगाम और बालटाल दोनों यात्रा मार्गों पर प्रतिदिन 10 हजार श्रद्धालुओं की संख्या तय करने पर सहमति दी है, इनमें हेलिकॉप्टर से यात्रा करने वालों की संख्या शामिल नहीं होगी। अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिए सुरक्षाबलों की 250 कंपनियों के करीब 1 लाख जवानों को तैनात करने की योजना है। इसमें CRPF के जवान प्रमुख होंगे। एक अनुमान के मुताबिक, इस बार की अमरनाथ यात्रा में 10 लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल हो सकते हैं।
अमरनाथ धाम जम्मू-कश्मीर में हिमालय की गोद में स्थित एक पवित्र गुफा है, जो हिंदुओं का सबसे पवित्र स्थल है। माना जाता है कि अमरनाथ स्थित एक पवित्र गुफा में भगवान शिव एक बर्फ-लिंगम यानी बर्फ के शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। बर्फ से शिवलिंग बनने की वजह से इसे ‘बाबा बर्फानी’ भी कहते हैं।
पवित्र गुफा ग्लेशियरों, बर्फीले पहाड़ों से घिरी हुई है। गर्मियों के कुछ दिनों को छोड़कर यह गुफा साल के अधिकांश समय बर्फ से ढंकी रहती है। गर्मियों के उन्हीं दिनों में यह तीर्थयात्रियों के दर्शन के लिए खुली रहती है। खास बात ये है कि इस गुफा में हर वर्ष बर्फ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है। बर्फ का शिवलिंग, गुफा की छत में एक दरार से पानी की बूंदों के टपकने से बनता है। बेहद ठंड की वजह से पानी जम जाता है और बर्फ के शिवलिंग का आकार ले लेता है।
यह दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है, जो चंद्रमा की रोशनी के आधार पर बढ़ता और घटता है। यह शिवलिंग श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूरा होता है और उसके बाद आने वाली अमावस्या तक आकार में काफी घट जाता है। ऐसा हर साल होता है। इसी बर्फ के शिवलिंग के दर्शन के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु अमरनाथ की पवित्र गुफा की यात्रा करते हैं। बर्फ के शिवलिंग के बाईं ओर दो छोटे बर्फ के शिवलिंग बनते हैं, उन्हें मां पार्वती और भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है। अमरनाथ गुफा जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में 17 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई वाले अमरनाथ पर्वत पर स्थित है।
अमरनाथ गुफा से जुड़ी कथा के मुताबिक, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उनकी अमरता की वजह पूछी, इस पर भोलेनाथ ने उन्हें अमर कथा सुनने के लिए कहा। पार्वती जी अमर कथा सुनने को तैयार हो गईं। इसके लिए वह एक ऐसी जगह तलाशने लगे, जहां कोई और ये अमर होने का रहस्य न सुन पाए। आखिरकार वह अमरनाथ गुफा पहुंचे। अमरनाथ गुफा पहुंचने से पहले शिवजी ने नंदी को पहलगाम में, चंद्रमा को चंदनवाड़ी में, सर्प को शेषनाग झील के किनारे, गणेशजी को महागुण पर्वत पर, पंचतरणी में पांचों तत्वों (धरती, जल, वायु, अग्नि और आकाश) को छोड़ दिया।
पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा पहुंचकर शिवजी ने समाधि ली। फिर उन्होंने कलाग्नि को गुफा के चारों ओर मौजूद हर जीवित चीज को नष्ट करने का आदेश दिया, जिससे कोई और अमर कथा न सुन सके। इसके बाद शिवजी ने पार्वती को अमरता की कथा सुनाई, लेकिन कबूतर के एक जोड़े ने भी ये कथा सुन ली और अमर हो गया। आज भी कई श्रद्धालु कबूतर के जोड़े को अमरनाथ गुफा में देखने का दावा करते हैं। इतने ऊंचे और ठंड वाले इलाके में इन कबूतरों का जीवित रहना हैरान करता है। अंत में, शिव और पार्वती अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने लिंगम रूप में प्रकट हुए, जिनका आज भी प्राकृतिक रूप से निर्माण होता है और श्रद्धालु उसी के दर्शन के लिए जाते हैं।
इस बात का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है कि अमरनाथ यात्रा कब से शुरू हुई। 12वीं सदी में लिखी गई कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में अमरनाथ का जिक्र मिलता है। माना जाता है कि 11वीं सदी में रानी सूर्यमती ने अमरनाथ मंदिर को त्रिशूल, बाणलिंग समेत कई अन्य पवित्र चीजें दान की थीं। एक मान्यता के अनुसार, अमरनाथ गुफा की खोज सबसे पहले ऋषि भृगु ने की थी। दरअसल, जब एक बार कश्मीर घाटी पानी में डूब गई थी तो ऋषि कश्यप ने नदियों और नालों के जरिए पानी बाहर निकाला था। पानी निकलने के बाद ऋषि भृगु ने सबसे पहले अमरनाथ में शिव के दर्शन किए थे।
आधुनिक रिसर्चर्स के मुताबिक, 1850 में बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गडरिए ने अमरनाथ गुफा की खोज की थी। सिस्टर निवेदिता ने ‘नोट्स ऑफ सम वांडरिंग विद स्वामी विवेकानंद’ में 1898 में स्वामी विवेकानंद के अमरनाथ गुफा जाने का जिक्र किया है।