PV Narsimha Rao Birth Anniversary: पी.वी नरसिम्हाराव भारत के पहले गैर हिंदी भाषी क्षेत्र से आने वाले प्रधानमंत्री जिसने नब्बे में दशक में अपने बुलंद और सख्त फैसलों से भारत को न सिर्फ घाटे से उतारा बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत को अपने पैरो पर खड़ा किया।
वो भारत जिसे उसे समय अपना सोना विदेशो में गिरवी रखना पड़ता है, उसे वापस सशक्त बनाने में पी.वी नरसिम्हाराव का बहुत बड़ा हाथ था।
पटरी से उतरी हुई देश की अर्थव्यवस्था, देश पर जातीय और धार्मिक दंगो की स्थिति, राम मंदिर को लेकर बरकार ‘टेंशन’ और संकटो से घिरा हुआ भारत. नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्री के कार्यकाल को अगर आप सूचीबद्ध तरीके से आकलन करेंगे तो इन शब्दों से से ही उनका पूरा कार्यकाल समाहित हो जाएंगा।
नरसिम्हा राव ने 21 जून 1991 को जिस वक्त देश की कमान संभाली उस समय उनके सामने बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना एक बड़ी चुनौती थी. राव के कार्यकाल के दौरान एक तरफ जहां साम्प्रदायिक और जातीय राजनीति चरम पर थी तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस भारी अंतर्कलह की राजनीति से जूझ रही थी.
पी वी नरसिम्हा राव का राजनैतिक सफ़र (P V Narasimha Rao political career)
यह भारत में एक भारतीय वकील, स्वतंत्रता संग्रामी एवम राजनीतिज्ञ के रूप में जाने जाते है. इन्होने भारतीय राजनीति में बहुत अहम रोल अदा किया .
इन्होने बहुत से आर्थिक परिवर्तन किये इसलिए इन्हें “भारतीय आर्थिक सुधारों के जनक” (Father of Indian Economic Reforms) भी कहा जाता है . इनके द्वारा लिए गए गंभीर फैसलों को आगामी प्रधानमंत्री ने भी जारी रखा. इन्होने डॉ मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया .
राव के आदेश पर डॉ मनमोहन ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष नीति प्रारंभ (International Monetary Fund policy) की. जिसके कारण बैंक में होने वाले भ्रष्टाचार में काफी कमी आई . राव को भारतीय संस्कृति से काफी लगाव था. भारत के राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने इनके लिए कहा था कि यह ऐसे देशभक्त है जो देश को राजनीति से सर्वोपरी मानते है .
Narsimha Rao का पीएम बनना भी काफी भूचालों के बाद तय हुआ
साल 1991 की मई में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का एक बम विस्फोट में निधन हो गया. इसके बाद पीएम पद पर कौन बैठे, इसे लेकर काफी झमेला हुआ था. बाद में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के कहने पर राव को सत्ता मिली. हालांकि ये दौर सत्ता सुख भोगने नहीं, बल्कि कई सारी चुनौतियों से भरा हुआ था.
नरसिम्हा राव उलझे मंदिर-मस्जिद विवाद में
उदारीकरण के रास्ते खोलने वाले नरसिम्हा राव के सामने एक ऐसा गंभीर संकट आया कि वह मंदिर-मस्जिद के मामलों में उलझ गए. उनकी सरकार के दौरान ही 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढ़ांचा गिरा दिया गया और इसके बाद 1993 की शुरुआत में ही मंबई जल उठा. मुंबई में सीरियल विस्फोट ने देश को झकझोर कर रख दिया.
दूसरी तरफ सीमा पर पाकिस्तान का उत्पात भी लगातार जारी था. इसके बाद जब 15 अगस्त 1993 में लाल किले पर भाषण देने के लिए चढ़े तो उनके चेहरे पर बाबरी ढांचा गिराए जाने की कसत साफतौर पर मससूस की जा सकती थी. नरसिम्हा राव ने कहा कि समाज का ताना-बाना नहीं टूटने दिया जाएगा.