विश्व के इतिहास में 16 दिसम्बर का दिन बेहद खास है। आज के दिन बांग्लादेश के उदय के 51 साल पूरे हो गए। 16 दिसंबर 1971 का ही दिन था जब दुनिया के युद्धों के इतिहास में एक सेना का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण हुआ था।और दुनिया के राजनीतिक नक्शे पर एक नए राष्ट्र का उदय हुआ। इसलिए यह दिन केवल भारत के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। पाकिस्तान पर जीत के 51 साल पूरे, नेशनल वॉर मेमोरियल से राजनाथ सिंह ने शहीदों को श्रदांजलि दी।
भारतीय सैनिकों के साहस और शौर्य की कहानी
भारत हमेशा पड़ोसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्तें चाहता है। जब भी हमारे पड़ोसी मुल्कों को हमारी ज़रुरत पड़ी हमने एक कदम आगे बढ़कर उसकी मदद की। लेकिन अगर किसी पड़ोसी मुल्क ने अपनी सीमा लांघी तो हमने उसका जवाब भी मुहं तोड़ दिया। आज हम आपको बताएंगे 1971 की विजय गाथा। भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और शौर्य की ऐसी कहानी, जो हमेशा ही आनेवाली पीढियों को प्रेरित करते रहेगी।
बांग्लादेश ने नौ महीने के खूनी संघर्ष बाद आजादी पाई
सन् 1971 में 13 दिन तक चले युद्ध में भारतीय सेना के अध्यक्ष फील्ड मार्शल सैम होर्मसजी फ्रैमजी जमशेदजी मानेकशॉ थे। उनके नेतृत्व में ही भारत ने ये युद्ध लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की। इसी दिन पूर्वी पाकिस्तान में पाक सेना के कमाण्डर ले. जनरल ए.ए.के. नियाजी के साथ ही लगभग 93 हजार पाकिस्तानी सेनिकों ने भारतीय सेना की पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने समर्पण किया था। आपको बताते चलें की बांग्लादेश ने नौ महीने के खूनी संघर्ष के बाद पाकिस्तान से आजादी पाई थी और इसमें भारत की निर्णायक भूमिका रही।
बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का जन्म हुआ
भारतीय सेना के पराक्रम से दुनिया के मानचित्र पर 16 दिसंबर 1971 यानी आज ही के दिन बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का जन्म हुआ। इसके बाद से 16 दिसंबर को हर साल भारत विजय दिवस मनाता है। विजय दिवस न केवल भारत की पाकिस्तान पर 1971 में शानदार जीत की याद दिलाता है बल्कि यह बांग्लादेश के जन्म की कहानी भी कहता है।
पूर्वी पाकिस्तान में जुल्म की हदें हुई पार
धर्म के आधार पर भारत से अलग हुए पश्चिमी पाकिस्तान ने तब के पूर्वी पाकिस्तान पर बेतहाशा जुल्म ढाए। नरसंहार, बलात्कार और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने में पाकिस्तान ने सारी हदें पार कर दी थी। जिसके चलते पूर्वी पाकिस्तान में हाहाकार मच गया। तब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारत न सिर्फ शामिल हुआ, बल्कि पाकिस्तान को ऐसी करारी शिकस्त दी कि उसे पूर्वी पाकिस्तान से अपना अधिकार छोड़ना पड़ा।
1970 के पाकिस्तान चुनाव के बाद आंदोलन तेज़
जिस घटना ने बांग्लादेश के लोगों को अलग राष्ट्र बनाने पर मजबूर कर दिया, वह था 1970 में हुआ पाकिस्तान का आम चुनाव। पाकिस्तान के शेख़ मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग को इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा सीट मिली। उन्होंने पश्चिम पाकिस्तान में ज़ुल्फिक़ार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी में मिली जीत के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिए। 7 मार्च 1971 के दिन ढाका में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया। लिहाजा पूर्वी पाकिस्तान में बांग्ला मुक्ति संग्राम शुरू हुआ। सबसे पहले बांग्लादेश मुक्तिवाहिनी का गठन हुआ। आखिरकार लंबी चली लड़ाई के बाद 16 दिसंबर 1971 को एक नये राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ।
3 दिसम्बर को युद्ध की घोषणा
भारत ने शांति स्थापित करने के लगातार प्रयास किए, लेकिन जब 3 दिसंबर 1971 के दिन पाक वायु सेना ने भारतीय वायुसेना के ठिकानों पर हमला बोल दिया, तो भारत सीधे तौर पर इस जंग में कूद गया। युद्ध 13 दिनों तक चला था । भारतीय सेना के बहादुरी और शौर्य के सामने पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए।
93 हजार सैनिकों ने किया सरेंडर
आज ही के दिन 1971 के दिन शाम 4.35 बजे पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। पाक अधिकारियों ने भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए।
कैसे बांग्लादेश की लड़ाई बनी भारत की लड़ाई
पाकिस्तान की फौज ने पूर्वी पाकिस्तान की आवाम पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए थे। तभी पूर्वी पाकिस्तान की आवाम घबराए हुए भारत की ओर दौड़े। बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत की सीमा में आ गए। इस बीच पाकिस्तान ने भारत के कई हिस्सों पर भी हमला कर दिया। तब भारत ने निश्चय किया कि बांग्लादेश की लड़ाई अब भारत की लड़ाई है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जंग का ऐलान कर दिया।