उतराखंड का चमोली जिला चाइना बॉर्डर के तवांग, गलवान, डोकलाम जैसा ही संवेदनशील है। चमोली से कुछ ही किमी दूरी पर बाराहोती बॉर्डर है। यहां पर कर्णप्रयाग तक 2024 में ट्रेन आने वाली है। हमारे लिए यह जगह और साल बेशक आम बात हो सकती है। लेकिन जरा चीन से पूछिए, कर्णप्रयाग ने जिसकी नींद उठा दी है। इसका कारण है जब हिमालय के पेट को चिरती हुई ट्रेन ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक पहुंचेगी तब भारत चीन के गले तक पहुंच जाएगा।
125 किमी में कुल 16 टनल्स और 12 स्टेशन
दूसरा चरण कर्णप्रयाग से जोशीमठ तक का है, जिसकी DPR बन गई है। तब भारत चीन के सिर तक पहुंच जाएगा। उत्तराखंड सीमा पर सैन्य बल के साथ-साथ चीन को तकनीकी चुनौती भी मिल रही है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट 75 साल में चीनी बॉर्डर पर बन रहा सबसे बड़ा और महंगा प्रोजेक्ट है। जिसकी लागत करीब 24 हजार करोड़ रुपए है। सबसे महत्वपूर्ण है इसका रास्ता जो 90% हिमालय से होकर निकल रहा है।
यानी 125 किमी लंबे ट्रैक में 105 किमी तक ट्रेन टनल से होकर गुजरेगी। वहीं जो हिस्सा खुला है वह स्टेशन का है। 125 किमी में कुल 16 टनल्स और 12 स्टेशन हैं। प्रोजेक्ट का महत्व ये है कि जहां ऋषिकेश से चीन बॉर्डर (बाराहोती) पहुंचने में पहले 16-18 घंटे लगते थे, वह दूरी अब महज 5-6 घंटे में तय हो जाएगी।
इसी प्रोजेक्ट के दर्द से हांफ चीन
आपको बता दें कि देवप्रयाग से जनासू तक देश की सबसे लंबी (14.8 किमी) रेल टनल भी इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है। उत्तराखंड की 345 किमी लंबी सीमा चीन से लगती है। सीमाओं पर लंबे समय के लिए तैनात रह चुके कर्नल एचएस रावत का कहना है कि चीन इन दिनों उत्तराखंड के इसी प्रोजेक्ट के दर्द से हांफ रहा है। इस वजह से चीन ने अपनी रणनीति बदली है, क्योंकि बाराहोती बॉर्डर चीन के लिए उतना खास नहीं है। इसलिए उसका रिएक्शन सिक्किम और अरुणाचल में दिखाई देता है। उनका कहना कि चीन मानना है कि भारत उसे इस प्रोजेक्ट से तकनीकी रूप से चुनौती दे रहा है।
उत्तराखंड में बदले दिन-रात के मायने
वहीं भारत-चीन संसदीय समूह के पूर्व अध्यक्ष तरुण विजय बताया कि बाराहोती में चीन अब तक 63 बार घुसपैठ कर चुका है। तवांग-गलवान जैसी घुसपैठ बाराहोती में भी जारी है। इस रेल प्रोजेक्ट ने मानो उत्तराखंड में दिन-रात के मायने ही बदल दिए हैं। करीब दस हजार लोग चौबीस घंटे इस सुरंगों में काम कर रहे है। हिमालय के पेट को चीर कर जो लोग सुरंग बना रहे हैं उनकी राह भी ठंड में तैनात जवानों जैसी ही चुनौतीपूर्ण है।
सबसे लंबी रेल टनल भी इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा
हालांकि देवप्रयाग-जनासू तक 14.8 किमी की देश की सबसे लंबी रेल टनल है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट में 125 किमी लंबे रेल मार्ग पर हर टनल के साथ रेस्क्यू टनल है जिससे रास्ता करीब 200 किमी का हो गया है। हिमालय में पहली बार जर्मन टनल बोरिंग मशीन से काम हो रहा है। इससे ब्लास्ट नहीं बल्कि खुदाई होती है। हालांकि शेष प्रोजेक्ट में ब्लास्ट-ड्रिल तकनीक का ही इस्तेमाल किया जा रहा है।
150 साल पुराने पुल को दोबारा खोला
उत्तराखंड सीमा पर 12 हजार करोड़ का ऑल वेदर रोड व 24 हजार करोड़ की लागत से ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट सीमा के छोर तक हमारी पहुंच बढ़ा रहे हैं। भारत सीमा पर अपनी ताकत दिखा रहा है। इस कड़ी में धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ सरकार ने 2021 में 150 साल पुराने गरतांग गली पुल को दोबारा खोल दिया। जिले में वायुसेना को डिफेंस रडार लगाने के लिए चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, में जमीन दी जा रही है। साथ ही एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड बन रहे हैं और के-9 वज्र हॉवित्जर तैनात हो रही हैं।
दिसंबर 2024 तक प्रोजेक्ट को पूरा करने का लक्ष्य
उत्तराखंड में कुछ साल पहले केवल 20 हेलिपैड्स थे। लेकिन 2020 में इसकी संख्या बढ़कर 50 हो गई। अब तक यहां तीन एक्टिव एयर स्ट्रिप भी शुरू हो गई हैं। इस बीच रेल विकास निगम के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर अजीत कुमार यादव ने बताया कि इस प्रोजेक्ट ने उतराखंड में दिन-रात मायने ही बदल दिए है। दिसंबर 2024 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। आजादी के बाद हिमालय में ये सबसे बड़ा इंफ्रा प्रोजेक्ट है। हम दिन रात मेहनत कर रहे है। करीब 10 हजार लोग यहां 24 घंटे लगे रहते हैं।