उत्तर प्रदेश में 3 और 11 मई को निकाय चुनाव होने हैं जिसके मद्देनजर 23 अप्रैल को सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है। उम्मीदवारों की लिस्ट जारी होने के बाद BJP में अंदर ही अंदर हलचल तेज हो गई है। लिस्ट जारी होने के बाद गाजियाबाज की राजनीति में जो हुआ उसे एक शेर के माध्यम से बयां किया जा सकता है। एक मशहूर शायर का शेर है ” बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी बहुत कम निकले।
गाजियाबाद की राजनीति में टिकट वितरण के साथ जो कुछ जनरल वीके सिंह के साथ हुआ यह किसी अपमान से कम नहीं, मुरादनगर लोनी और खोड़ा नगरपालिका से जनरल वी के सिंह ने जिसके भी नाम दिए उन सभी नामों को आला कमान के मंत्रियों ने अनसुना कर दिया, हद तो तब हो गई जब जनरल वीके सिंह गुहार लगाने दिल्ली के यूपी भवन में पहुंचे लेकिन वहां कमरा अंदर से लॉक कर लिया गया।
इसीलिए इस खबर की शुरुआत में हमने “बड़े बेआबरू तेरे कूचे से होकर निकले” हम वाला शेर लिखा।
वैसे तो राजनीति में पर्दे के पीछे बहुत खेल चलते हैं निकाय चुनावों में गाजियाबाद के पांचों विधायक, संगठन और जनरल वीके सिंह आमने-सामने है
किसी भी चुनाव में प्रदेश का संगठन और राष्ट्रीय संगठन हर जनप्रतिनिधि की सुनता है कि किसको चुनावी मैदान में उतारा जाए और किसको न उतारा जाए, इसी के तहत हर चुनाव की रणनीति भी तैयार की जाती है।

ठीक उसी तरह जनरल वीके सिंह ने मुरादनगर से सुझाव दिया था कि केडी त्यागी को चुनावी मैदान में उतारा जाए। इसी तरह खोड़ा नगर पालिका से कालू यादव की पत्नी, ललित जायसवाल की पत्नी और एक चौहान साहब की पत्नी का नाम उन्होंने दिया था
लोनी नगर पालिका में भी उन्होंने कई नामों को सुझाव के तौर पर रखा था लेकिन महत्वपूर्ण बात है ये है कि जनरल द्वारा दिए गए एक भी नाम को गंभीरता से नहीं लिया गया।
लोकल विधायक जनरल पर हावी हो गए, 2024 का इलेक्शन अगले साल है अगर जनरल आगामी चुनाव के लिए अपने सिपहसालार तैयार कर रहे थे तो विधायकों और संगठन को इससे क्या दिक्कत थी?
संगठन के इस फैसले से नाराज होकर जनरल वीके सिंह अपनी बात रखने और नाराजगी जताने के लिए यूपी भवन पहुंचे थे लेकिन हैरत की बात तो यह है कि जिस जनरल के लिए पीएम मोदी के दरवाजे भी हमेशा खुले रहते हैं उसी जनरल वी के सिंह के लिए यूपी भवन ने अपने दरवाजे बंद कर दिए।
जरनल दरवाजा पीटते रहे लेकिन कमरे का दरवाजा नहीं खुला, बेशक चुनावी फैसले और उम्मीदवार संगठन की जिम्मेदारी है लेकिन एक केंद्रीय मंत्री और लोकल सांसद से ना मिलना उनकी आपत्तियों को ना सुनना और उनके लिए दरवाजा ना खोलना एक अच्छा संदेश कतई नहीं देता है।
जर्नल की गाजियाबाद के लोकल चुनावों में नहीं सुनी गई, इस बारे में जब अन्य विधायकों से बात हुई तो उनका कहना था कि “निकाय चुनाव है यहां पर लोकल संगठन के ऊपर जिम्मेदारी है हम लोग सीधे हर किसी के संपर्क में रहते हैं हमें मालूम है कौन हारेगा कौन जीतेगा। जनरल साहब का जब बड़ा चुनाव आएगा तो हम लोग खुलकर उनके साथ रहेंगे जहां तक आप यह कह रहे हैं कि जनरल साहब की नहीं सुनी गई तो यह बीजेपी है यहां पर 100% किसी की नहीं सुनी जाती”
कुल मिलाकर निकाय चुनाव के बहाने एक बार फिर से बीजेपी की आंतरिक कलह खुलकर सामने आ गई हालांकि यह पहला मौका नहीं है इससे पहले भी आंतरिक कलह खुलकर सामने आई थी जब राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल ने कई बार खुले मंच पर जनरल के खिलाफ बोला था जिसे लेकर आलाकमान को चिट्ठी भी लिखी गई थी।
2019 के लोकसभा चुनावों में गाजियाबाद के चारों विधायक राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के पास पहुंच गए थे उन्हें डर था कि कहीं गाजियाबाद से जनरल वीके सिंह का टिकट रिपीट ना हो पाए।
लेकिन इस बार राजनीति के इस शतरंज में विधायकों ने अपने जनरल को जरूर मात दे दी है लेकिन इस हार से बौखलाए जनरल वी के सिंह के पलटवार का सभी को इंतजार रहेगा।