लखनऊ डेस्क। उत्तर प्रदेश के अहरोहा जनपद का मोहरका पट्टी गांव एक दशक पहले अपराध के लिए जाना जाता था। 24 घंटे यहां पर पुलिस का पहरा रहता था। युवा कानून के शिकंजे में आ रहे थे। कोर्ट-कचहरी के कारण कई परिवार आर्थिक तौर पर बिखर गए। ऐसे में गांव की बेटियों ने कुछ अलग करने की बीणा उठाया और उन्हें जामा मस्जिद का साथ मिला। फिर क्या था मस्जिद परिसर में रोजगार का काउंटर शुरू हुआ और एलान करके रोजगार दिया जाने लगा। अब गांव गुलजार है। युवाओं के चेहरों पर मुस्कान है। खाकी का पहरा हट गया और देश के कोने-कोने से कारोबारी मोहरका पट्टी पहुंच रहे हैं। आमदनी बढ़ी। बेटों के साथ बेटियां भी पाठशाला में शिक्षा ले रहीं।
हुनर के दम पर नई पहचान दिलाई
अमरोहा जनपद का मोहरका पट्टी गांव कभी अपराध के लिए जाना जाता था। युवा गैर कानूनी कार्य करते, जिससे पुलिस उन्हें अरेस्ट कर जेल भेजती। हालात इतने खराब हो गए थे, कि यहां पर पुलिस के 365 दिन 24 घंटे पुलिस का पहरा रहता। बेटियों ने गांव में लगे बदनामी के दाग को मिटाने की ठानी। मस्जिद ने भी अपने हाथ आगे बढ़ाए। फिर क्या था रोजगार का कारवां चल पड़। बदनामी का दाग मिट गया। आर्थिक तरक्की की खेती शुरू हुई। प्रशिक्षण के बिना ही पीढ़ी दर पीढ़ी हुनर बढ़ रहा है। घर-घर नारी सशक्तीकरण का नारा बुलंद हो रहा है। बिना सरकारी मदद के यहां की महिलाओं ने अपराध के लिए बदनाम गांव को अपने हुनर के दम पर नई पहचान दिलाई है।
दिल्ली व गाजियाबाद से आते हैं कारोबारी
अमरोहा जनपद से करीब 25 किमी की दूरी पर मोहरका गांव है। गांव की आबादी करीब 20 हजार है। एक दशक पहले ये गांव गोकुशी व अन्य अपराध के लिए जाना जाता था। अब महिलाओं का हुनर ही यहां की पहचान है। गांव के अधिकांश घरों में महिलाएं लेस तैयार करने का काम करती हैं। गांव में प्रवेश करते ही हर आंगन व चबूतरे पर महिलाएं साड़ी पर लगने वाली मोती की लेेस बनाती दिखती हैं। मस्जिद में दिल्ली के कारोबारी आते हैं, वहीं से महिलाओं को आर्डर दिए जाते हैं। 10 साल पहले तीन-चार घरों में काम शुरू हुआ था, अब करीब पांच सौ से अधिक घरों में काम किया जा रहा है। महिलाओं के मुताबिक लेेस की सप्लाई दिल्ली व गाजियाबाद के लिए की जाती हैं।
जामा मस्जिद से होता है संदेश प्रसारित
कारोबारी गांव की जामा मस्जिद आते हैं, वहां से संदेश प्रसारित कर महिलाओं को बुलाया जाता है, उन्हें आर्डर के साथ लेेस का रा मैटेरियल भी दिया जाता है। आर्डर भी सभी महिलाओं को बराबर-बराबर दिए जाते हैं। कारोबारी पिछले आर्डर का तैयार माल ले जाते हैं। कारोबारी महिलाओं का समय पर पैसा देते हैं। गांव की महिलाओं ने बताया कि, एक झालर तैयार करने के सौ रुपये मिलते हैं। दिनभर में एक घर की महिलाएं पांच-छह लेेस तैयार कर लेती है। उन्हें पांच-छह सौ रुपये मिल जाते हैं। यानी एक परिवार को 15-20 हजार रुपये तक आय हो जाती है। महिलाएं घर का काम भी करती हैं, खाली वक्त में लेेस तैयार करती हैं।
महिलाएं मस्जिद में एकत्र हो जाती हैं
गांव में अधिकांश परिवार मुस्लिम समुदाय के हैं। महिलाओं पर किसी तरह की पांबदी नहीं है। महिलाओं के साथ पुरूष भी उनका हाथ बंटाते हैं। गांव में महिलाओं से जुड़े हुए ही कार्य का काम होता है। जब कोई बाहर से व्यापारी ऑर्डर देने के लिए गांव में आता है तो मस्जिद से संदेश प्रसारित करा दिया जाता है। इसके बाद कारोबार से जुड़ी महिलाएं मस्जिद में एकत्र हो जाती हैं। महिलाएं बताती हैं कि शादियों के सीजन में यह कारोबार अच्छा चलता है। परवीन बताती है, पांच-छह साल से इस कारोबार को कर रही हूं। परिवार को खर्चा ठीक चल रहा है। गांव की महिलाओं को देखकर ही मोतियों की लैस बनाने का तरीका सीखा था। अब अजीविका चलाने के काम आ रहा है।
आर्थिक बुलंदियों को छू रहा गांव
मस्जिद की मुफ्ती मोहम्मद राशीद ने बताया कि गांव की महिलाओं के चलते अब युवाओं को रोजगार मिल रहा है। गांव से अपराध पलायन कर गया है। मस्जिद में बाहर से कारोबारी आते हैं। उनकी रूकने और खान की व्यवस्था मस्जिद की तरफ से की जाती है। आज हमारा गांव आर्थिक बुलंदियों को छू रहा है। बता दें, लेेस सादा कपड़े की 10 मीटर की पट्टी पर तैयार होती है। इसमें चमकीली धागे के साथ मोती लगाए जाते हैं। व्यापारी लेेस ले जाकर पालिस्टर की साड़ी पर लगवाते हैं। दिल्ली व गाजियाबाद में यह काम काफी होता है। व्यापारी भी एक लेेस को ढाई सौ रुपये तक में साड़ी तैयार कराने वालों को बेच देते हैं।