महराजगंज। जनपद के निचलौल ब्लाक क्षेत्र के बहुआर मिश्रौलिया के गुलरभार टोला के रहने वाले हृदय नरायण दुबे ने तीन एकड़ भूमि पर बांस की खेती कर आर्थिक संबलता की नींव रख दी है। बांस के पौधों के विकास को देख हृदय नारायण को विश्वास है कि वह बांस की खेती से प्रति वर्ष 10 लाख रुपए कमाएंगे। हृदय नारायण दुबे ने बताया कि वह वर्ष 2008 में दीन दयाल उपाध्याय विश्व विद्यालय गोरखपुर से एमसीए (मास्टर इन कंप्यूटर एप्लीकेशंस) की पढ़ाई करने के बाद चार वर्ष नई दिल्ली के एक निजी कंपनी में साफ्टवेयर इंजीनियर का काम किया। इस दौरान उन्होंने इंटरनेट के माध्यम से कृषि से आय करने के प्रयासों का अध्ययन किया। इसी क्रम में उन्हें बांस की खेती से होने वाली आय नौकरी से भी अच्छी लगी। इसलिए वह नौकरी छोड़ बीते तीन वर्ष से बांस की खेती में जुट गए।
वेटलैंड में लगाए हैं तीन हजार भीमा बांस के पौधे
हृदय नारायण की करीब तीन एकड़ पैतृक भूमि छोटी गंडक नदी से 200 मीटर दूरी पर थी। भूमि वेट लैंड होने के नाते उस भूमि पर परंपरागत फसल धान, गेहूं की पैदावार बहुत कम होती थी। इसी भूमि पर वर्ष 2020 में भीमा बांस (बंबूसा बाल्कुआ) प्रजाति के तीन हजार पौधे लगाए हैं। जो कि अब एक पौधे से स्वतः पंद्रह से बीस बांस के नए पौधे निकल आए है। उनकी एक पौधे अब एक बांस की कोठी का रूप लेने लगा है। वर्ष 2025 से बांस काटने के लिए तैयार हो जाएंगे और प्रति वर्ष 10 लाख रुपये की आय देंगे।
कई तरह से होता है बांस का उपयोग
बांस का उपयोग लोगों की आम जरूरतों के साथ ही लुगदी, कागज व फर्नीचर में किया जाता है। बांस को ग्रीन गैसोलीन भी कहा जाता है। इससे मुख्य रूप से एथेनॉल का उत्पादन भी होता है।
अब सरकार से है सब्सिडी की आस
हृदय नारायण ने बताया कि उन्होंने इंटरनेट मीडिया पर पढ़ा है कि नेशनल बांस मिशन के तहत बांस के खेती के लिए सरकार बढ़ावा देती है। सब्सिडी का प्रावधान भी है। वह जल्द ही अपने बांस की खेती के लागत व उपज के आंकड़ों के साथ सरकार से सब्सिडी लेने के लिए आवेदन करेंगे।