नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। आजादी के पहले भारत में कई प्रकार की कुप्रथाएं चल रही थीं। देश आजाद हुआ। दहेज प्रथा, बाल विवाह प्रथा, सती प्रथा के साथ ही डायन प्रथा को लेकर कानून बने। बावजूद आज भी देश के कई शहरों में कुप्रथा संचालित है। बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, असम, हरियाणा के अलावा राजस्थान में डायन प्रथा के नाम पर महिलाओं का उत्पीड़न जारी है। सैकड़ों महिलाएं हैं, जिन्हें डायन बताकर मार डाला गया। कुछ दिन पहले राजस्थान के बूंदी में एक महिला को डायन बताकर ‘थर्ड डिग्री’ दी गई। पीड़िता को पेड़ में बांधकर गर्म सलाखों से दागा गया। हैवानियत का वीडियो सामने आने के बाद पुलिस-प्रशासन जागा और आरोपियों पर मुकदमा दर्ज करते हुए जांच-पड़ताल शुरू कर दी है।
महिला को डायन बताकर किया प्रताड़ित
दरअसल, राजस्थान के बूंदी जिले के हिंडोली थाना क्षेत्र के गुडागोकुलपुरा गांव में एक सनसनीखेज मामला सामने आया। जानकारी के मुताबिक गांव के ही रहने वाले रिश्तेदारों ने महिला को डायन बताया। ’स्वयंभू ओझा बाबूलाल और दो सहयोगी ’बुरी आत्मा’ के नाम पर महिला पर टूट पड़े। आरोपियों ने अपने दिए बयान में बताया कि महिला के शरीर पर ‘बुरी आत्मा’ का बास है। वह रिश्तेदारों को नुकसान पहुंचा रही थी। वहीं ग्रामीणों ने बताया, महिला को रिश्तेदार के घर पर लाया गया। घर पर पहले से तांत्रिक मौजूद था। रिश्तेदारों ने महिला को पेड़ पर बांध दिया और उसकी पिटाई की। शरीर पर गर्म लोहे की छड़ से दागे। महिला के बाल काट दिए गए। चेहरे पर कालिख भी पोती गई।
महिला को दी गई अमानवीय यातनाएं
जानकारी मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और दो दिनों से बंधक महिला को आरोपियों के चंगुल से मुक्त कराने के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया। पुलिस अधीक्षक राजेंद्र कुमार मीणा ने बताया कि शाहपुरा निवासी महिला को दो दिनों तक अमानवीय यातनाएं दी गईं। आरोपियों ने पेड़ से बांधकर महिला के बाल काट दिए। चेहरे पर कालिख पोत दी। एसपी ने बताया कि आरोपियों पर केस दर्ज कर लिया गया है। टीमें आरोपियों की गिरफ्तारी के प्रयास में जुटी हुई हैं। घटना के बाद कई महिला संगठन भी सामने आई हैं और डायन प्रथा को लेकर सरकार से कड़े से कड़े कदम उठाए जाने की मांग की है।
कैसे महिलाओं को घोषित करते हैं डायन
दरअसल, अधिकतर मामलों पर महिलाओं को डायन बताने वाले अधिकतर उसके पड़ोसी, घरवाले या तांत्रिक होते हैं। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें कम उम्र की युवतियों को लोग डायन घोषित कर देते है और उनके साथ घोर अमानवीय उत्पीड़न करते हैं। इतना ही नहीं, जिन्हें डायन बताया जाता है, उनके परिवारवाले भी उनसे दूरी बना लेते हैं। अधिकतर महिलाओं के डायन वाली घटनाएं ग्रामीण इलाकों में देखने को मिली हैं। कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ में भी एक महिला को डायन बताकर हत्या कर दी गई थी। पद्मश्री पुरूस्कार से सम्मानित छूटनी महतो ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू के दौरान डायन प्रथा को लेकर कई खुलासे किए। उन्होंने डायन प्रथा के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी।
छुटनी महतो को चुकानी पड़ी कीमत
छुटनी महतो झारखंड के सरायकेला खरसांवा जिले के गम्हरिया थाना क्षेत्र के गांव बीरबांस की मूल निवासी है। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्हें भी डायन घोषित किया गया था, जिसके बाद उनकी जिदंगी पूरी तरह बदल गई थी। छुटनी महतो ने बताया कि उनकी शादी 12 साल की उम्र में गम्हरिया थाने के महतांड डीह गांव में कर दी गई थी। वह दिखने में सुंदर थीं और अच्छे कपड़े पहना करती थीं। गांव में लोग उनसे जलते थे। शादी के बाद उनके तीन बच्चे हुए। वह कहती हैं कि 2 सितंबर 1995 को उनके पड़ोसी भोजहरी की बेटी बीमार हो गई। इसका इल्जाम उनपर लगाया गया कि उसने जादू-टोना कर उसे बीमार कर दिया।
छुटनी महतो को घोषित किया था डायन
फिर क्या था ग्रामीणों ने पंचायत बुलाई और उन्हें डायन घोषित कर दिया। परिवारवालों के साथ मिलकर ग्रामीणों ने उनके साथ दुष्कर्म का प्रयास किया। डायन से मुक्ति पाने के लिए उन्हें जबरन मानव मल खिलाया गया। इसके बाद उन्हें गांव से निकाल दिया और वह अपने मायके आ गईं। छुटनी महतो तब से इस कुप्रथा के खिलाफ जंग लड़ रही हैं। जहां पर महिला को डायन बताकर प्रताड़ित किया जाता है, वहां पर छुटनी महतो खुद जाती है। महिला से बात करती हैं। इसके बाद पुलिस में जाकर मुकदमा दर्ज करवाती हैं। छुटनी महतो कहती हैं कि इस कुप्रथा को ग्रामीणों को जागरूक कर रोका जा सकता है।
अधिकतर कारण अंधविश्वास से जुड़े
साल 2012 में बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट में विकास अध्ययन संस्थान की प्रोफेसर कंचन माथुर ने महिलाओं को किन आधारों पर डायन घोषित किया जाता है, उसके बारे में बताया। उन्होंने बताया कि इसके लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर डायन करार दी गईं 60 से ज्यादा महिलाओं से मुलाकात की थी। इनमें ज्यादातर पीड़ित महिलाएं पिछड़े वर्ग, आदिवासी और दलित समुदाय से है। उन्होंने बताया कि अधिकतर महिलाओं को छोटी-छोटी बातों पर गंभीर आरोप लगाकर उन्हें डायन घोषित कर दिया। इनमें अधिकतर कारण अंधविश्वास से जुड़े पाए गए। प्रोफेसर कंचन माथुर ने रिपोर्ट में बताया था कि महिलाओं को अंधविश्वास के चलते डायन बताया गया।
डायन प्रथा को लेकर क्या है कानून
’डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम’ 20 अक्टूबर 1999 को बिहार विधानसभा ने पारित हुआ था। सती प्रथा के बाद यह देश का दूसरा कानून था जो अंधविश्वास के खिलाफ बना था। इसके बाद यह कानून देश के कई राज्यों में लागू हो चुका है। डायन प्रथा को लेकर कानून बड़े सख्त हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी भी महिला-पुरुष को डायन घोषित करता है या फिर समाज को डायन कहने के लिए उकसाता है तो डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 के अंतर्गत दोषी को 3 महीने की सजा या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति किसी को डायन घोषित कर उसे शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है तो उसे 6 महीने की सजा या 2000 रुपये जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। इसके अलावा कई अन्य सजाओं का प्रावधान है।