नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। नेपाल के बारा जनपद में 2 से लेकर 15 दिसंअर तक गढ़रमाई देवी स्थित एक विराट मेले का आयोजन किया गया। जिसमें इस बार पांच लाख से अधिक पशुओं की बलि देकर नया रिकार्ड बना। इस बार ं 8 और 9 दिसंबर को 4200 भैंसों की बलि दे दी गई। भारत ने बार्डर पर पशुओं की तस्करी को रोकने के लिए कड़े बंदोबस्त किए थे। बार्डर पर प्रशासन की सतर्कता की वजह से कम से कम 750 जानवरों को बचाया गया है, जिनमें भैंसें, भेड़-बकरियां और अन्य जानवर शामिल हैं। इन बेजुबानों को गुजरात के जामनगर में रिलायंस ग्रुप के वाइल्डलाइफ रिहैबिलिटेशन सेंटर में भेज दिया गया है। बता दें, नेपाल में हर पांच वर्ष बाद मेले का आयोजन होता है। जिसमें 4 से 5 लाख पशुओं की बलि दी जाती है।
2 से 15 दिसंबर तक चला मेला
नेपाल के बारा जिले में गढ़ीमाई महानगरपालिका स्थित विश्व प्रसिद्ध गढ़ीमाई मंदिर है। यहां पर हर पांच साल के बाद विराट मेले का आयोजन किया जाता है। पुरानी प्रथा के अनुसार गढ़ीमाई के दर पर करीब पांच लाख बड़े-छोटे पशुओं की बलि दी जाती है। इस मेले का आगाज 2 दिसंबर को हुआ। नेपाल के उपराष्ट्रपति राम सहाय यादव ने उद्घाटन किया था। यह मेला 15 दिसंबर तक चला। आठ दिसंबर को विशेष पूजा हुई और उसके बाद जिन लोगों की मन्नतें पूरी हो गई उन्होंने अपनी मन्नत के अनुसार पशु पक्षी की बलि चढ़ाई। मेले को देखते हुए नेपाल से सटे राज्यों में भारत के सुरक्षाबलों ने तगड़े इंतजाम किए थे। बड़े पैमाने पर पशुओं की तस्करी को रोकी। करीब 20 हजार से अधिक जानवरों को बार्डर के उस पर जाने से रोककर उनकी जान बचाई।
क्या है खूनी परंपरा की कहानी
दरअसल, ऐसा मान्यता है कि गढ़ीमाई मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी से जुड़ी है। आज से लगभग 265 साल पहले 1759 में पहली बार यह त्योहार मनाया गया था। मान्यताओं की मानें तो गढ़ीमाई मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी को एक रात सपना आया। सपने में गढ़ीमाई माता ने उन्हें जेल से छुड़ाने, सुख और समृद्धि से बचाने के लिए इंसान की बलि मांगी है। भगवान चौधरी ने इंसान की बजाए जानवर की बलि दी और तभी से गढ़ीमाई मंदिर में हर 5 साल बाद लाखों जानवरों की बलि चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। जानकारों का कहना है कि लोग मन्नत पूरी होने पर गढ़ीमाई के मंदिर बलि देते हैं। विश्व में सबसे ज्यादा बलि इसी मंदिर में होती है। गढ़ीमाई मेला गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे अधिक सामूहिक बलि प्रथा के रूप में नाम दर्ज करवा चुका है।
कहां पर हैं गढ़ीमाई का मंदिर
नेपाल की राजधानी काठमांडू से करीब 160 किलोमीटर दूर बरियापुर गांव स्थित है। इसी गांव में है माता गढ़ीमाई का मंदिर। इस मंदिर में हर 5 साल में एक बार गढ़ीमाई त्योहार मनाया जाता है। गढ़ीमाई त्योहार का आगाज पुजारी अपना खून चढ़ाकर करते हैं। इस मंदिर को नेपाल के शक्तिपीठों में से एक माना गया है। जानकार बताते हैं कि यहां सबसे पहले वाराणसी के डोम राज के यहां से आने वाले 5100 पशुओं की बलि दी जाती है। मेला लगभग 15 दिन चलता है और इसमें नेपाल और भारत के श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है। प्रत्येक दिन लगभग पांच लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस मेले में नेपाल के अलावा, भूटान, बंग्लादेश और भारत समेत कई देश के करोड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है बलि का मामला
बलि प्रथा के खिलाफ दुनिया के कई देशों में आवाजें उठती रही है। भारत में भी इस बलि प्रथा के खिलाफ आवाज उठने लगी है। भारत में इसको लेकर पशु तस्कर सक्रिय हो जाते हैं। यह मामला नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच चुका है। साल 2019 में कोर्ट ने पशु बलि पर तुरंत रोक लगाने से इनकार कर दिया था लेकिन आदेश में यह कहा कि गढ़ीमाई मेले के दौरान पशु बलि को धीरे-धीरे करके कम किया जाए। हालांकि कोर्ट ने कहा था कि यह धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है, इसलिए इससे जुड़े लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं किया जा सकता है। ह्यमेन सोसाइटी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार 2009 में यहां 5 लाख से ज्यादा जानवरों की बलि चढ़ाई गई थी। 2014 और 2019 में भी ढाई लाख से ज्यादा जानवर बलि की भेंट चढ़ गए थे।