Yeti Narasimhanand News: बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे हिंसक हमलों के बीच भारत सरकार द्वारा इस्लामिक देश को चावल की आपूर्ति को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। हाल ही में भारत ने बांग्लादेश को 200,000 टन चावल निर्यात करने का निर्णय लिया, जिससे यति नरसिंहानंद जैसे धार्मिक नेताओं में गुस्सा है। यति नरसिंहानंद ने इस पर तीखा विरोध जताते हुए कहा कि भारत सरकार अपनी स्वाभिमान की भावना को नकारते हुए बांग्लादेश को चावल भेज रही है, जबकि वहां हिंदुओं का नरसंहार हो रहा है। उन्होंने इसे भारत के व्यापारी मानसिकता का उदाहरण बताया और कहा कि इस कृत्य ने साफ कर दिया है कि हम एक स्वाभिमान विहीन समाज बन चुके हैं।
भारत की चावल आपूर्ति और बांग्लादेश की स्थिति
भारत द्वारा बांग्लादेश को 200,000 टन चावल की आपूर्ति करने के फैसले को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने मजबूरी के तहत लिया है। बांग्लादेश में हाल की बाढ़ ने खाद्य संकट पैदा किया था, जिसके कारण सरकार को चावल आयात करने का निर्णय लेना पड़ा। चटगांव बंदरगाह के ज़रिए 27,000 टन चावल की पहली खेप 27 दिसंबर को बांग्लादेश पहुंची, जबकि बाकी चावल की खेप जल्द ही आनी है। बांग्लादेश के खाद्य अधिकारियों का कहना है कि चावल की कोई तत्काल कमी नहीं है, लेकिन भविष्य में संकट से बचने के लिए यह कदम उठाया गया है।
Yeti Narasimhanand का विरोध
Yeti Narasimhanand ने बांग्लादेश को चावल भेजने की आलोचना करते हुए कहा कि यह कदम हिंदू समाज की सुरक्षा और सम्मान को नजरअंदाज करता है। उन्होंने कहा कि भारत में हिंदू समुदाय लगातार कमजोर हो रहा है और भारत सरकार की यह नीति उनकी स्थिति को और भी विकट बना सकती है। नरसिंहानंद का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए, भारत का इस्लामिक देश को मदद देना एक दुखद संदेश भेजता है। उनके अनुसार, यह भारतीय समाज का एक और उदाहरण है कि हम अपने धर्म, संस्कृति और स्वाभिमान को छोड़कर सिर्फ आर्थिक हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
हिंदू समाज के लिए चिंताएं बढ़ी
Yeti Narasimhanand के अनुसार, बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ लगातार हो रहे हमले और उनकी दुर्दशा को देखते हुए यह निर्णय भारत सरकार की नाकामी को उजागर करता है। उनका कहना है कि यह कदम दर्शाता है कि भारत सरकार अपने स्वाभिमान को नकारकर एक व्यापारी दृष्टिकोण अपनाए हुए है। उन्होंने भारत के नेताओं से अपील की कि वे अपनी नीति पर पुनर्विचार करें और बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा को प्राथमिकता दें। यति नरसिंहानंद का यह बयान न केवल बांग्लादेश में हो रही हिंसा को लेकर चिंता का विषय है, बल्कि यह भारत की विदेश नीति पर भी सवाल खड़ा करता है।