Sexual Awarenes: हम रोज़ाना अखबारों और न्यूज़ चैनलों में यौन हिंसा की खबरें सुनते हैं। घर हो या बाहर, लड़कियों और लड़कों की फिक्र हमेशा बनी रहती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसे अपराध करने वाले लोगों के दिमाग में आखिर क्या चल रहा होता है? इसी सवाल का जवाब ढूंढने के लिए दिल्ली की एक लड़की मधुमिता पांडे ने एक अनोखी पहल की।
कैसे हुई शुरुआत?
मधुमिता ने महज़ 22 साल की उम्र में देश की सबसे बड़ी जेलों में से एक तिहाड़ जेल का रुख किया। वहाँ उन्होंने उन लोगों से बात की, जो बलात्कार जैसे संगीन अपराधों के आरोप में सज़ा काट रहे थे।मधुमिता ने पिछले तीन सालों में 100 से ज्यादा कैदियों का इंटरव्यू किया। ये सब उन्होंने अपनी पीएचडी रिसर्च के लिए किया था, लेकिन इस सफर में उन्हें समाज की गहरी सच्चाई से भी रूबरू होना पड़ा।
कैदियों का नजरिया क्या था?
मधुमिता ने पाया कि ज्यादातर कैदियों को इस बात का अहसास ही नहीं था कि उन्होंने कोई गलत काम किया है।
एक 23 साल के कैदी ने बताया कि उसने एक 5 साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया था। उसका कहना था कि वो बच्ची मुझे गलत तरीके से छू रही थी, इसलिए मैंने उसे सबक सिखाने के लिए ऐसा किया। उसकी मां भी वैसी ही है।
अपराधियों की ऐसी सोच समाज के लिए खतरा
यह बयान दिखाता है कि कैसे अपराधी अपने कामों को सही ठहराने की कोशिश करते हैं और पीड़ित पर ही दोष मढ़ देते हैं।उन्हें अपने किसी अपराध पर पछतावा नहीं है।उनकी ये सोच समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकता है।क्योंकि जब इन अपराधियों को सजा पा कर अपने अपराध का अहसास नहीं है।तो अगर ये बाहर आयेंगे तो कैसे इन्हें दोबारा अपराध से रोका जाएगा।
मधुमिता की रिसर्च से क्या सीख मिली
मधुमिता का मानना है कि भारत में यौन शिक्षा की कमी एक बड़ी वजह है। बच्चों को इस विषय पर सही जानकारी नहीं मिलती, जिससे गलतफहमियां और गलत व्यवहार पनपते हैं।ज्यादातर अपराधी अपने किए को सही साबित करने के लिए पीड़ित को ही दोषी ठहराते हैं।
मधुमिता की सोच समाज के लिए बेहतर
मधुमिता पांडे की ये कहानी हमें एक बड़ा सबक देती है। यौन अपराध सिर्फ कानून का मुद्दा नहीं है, ये हमारी सोच, शिक्षा और परवरिश से भी जुड़ा है।अगर हम समाज में सही सोच और सम्मान की भावना को बढ़ावा दें और बच्चों को शुरू से ही सही दिशा दिखाएं, तो यकीन मानिए, हम एक बेहतर और सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।