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आर्मी की तरह नियम-कानून से बंधे होते हैं अखाड़े के साधू, दोषी पाए जाने पर सुनाई जाती है ‘चिलम -साफी’ की सजा

MahaKumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ का आगाज होने जा रहा है, अखाड़ों के संसार की अनोखी कहानी, संतों को भयभीत करती है ’चिलम-साफी’ की बंदी।

by Vinod
January 14, 2025
in Latest News, उत्तर प्रदेश, प्रयागराज, महाकुंभ 2025
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प्रयागराज ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ का शंखनाद होने जा रहा है। जिसको लेकर संगमनगरी को दुल्हन की तरह सजाया गया है। गंगा की रेती में बनी टेंट सिटी में अखाड़ों के सन्यासियों का आना जारी है। 45 दिनों तक संत और भक्त त्रिवेणी में डुबकी लगाएंगे और पुण्ण कमाएंगे। महापर्व पर सबकी नजर अखाड़ों पर है। अखाड़ों की पेशवाई धूम-धाम के साथ निकल रही है। ऐसे में हम अपने इस खास अंक में अखाड़ों के नियम-कानून के बारे में बताने जा रहे हैं। जिनका उल्लंघन करने वाले संत को चिलम-साफी की सजा दी जाती है। क्या है सिलम-साफी सजा और इसे कौन सुनाता है।

कुछ ऐसे ही अखाड़ों के नियम-कानून

दरअसल, सैकड़ों सालों से अखाड़ों के अपने नियम-कानून बने हुए हैं। यहां पर अनुशासन सर्वोपरि है। छोटे से लेकर ख्यातिलब्ध संत नियम-कानून से बंधे होते हैं। बाहरी दुनिया में उनका चाहे जितना बड़ा आभामंडल हो, लेकिन अखाड़े के अंदर सबको अनुशासित रहना पड़ता है। जिस तरह से आर्मी में अफसर से लेकर जवान को नियमों का पालन करना होता है। अगर कोई उल्लंघन करता है तो उसका कोर्ट मार्शल होता है। कुछ ऐसा ही अखाड़ों में भी होता है। अखाड़े के नियम की अवहेलना करने पर संत सजा के भागीदार बन जाते हैं। कुछ सजा ऐसी होती है जिससे हर संत भयभीत रहते हैं। उसमें प्रमुख है ‘चिलम-साफी’ बंद करना। अगर किसी संत को सिलम-साफी की सजा सुना दी जाती है तो वह चिमल नहीं पी सकता। साधा बांधने पर रोक लगा दी जाती है।

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पिटवाई जाती है डुगडुगी

‘चिलम-साफी’ की सजा पाए संतों का समाज से सामूहिक बहिष्कार किया जाता है। एक अखाड़े से बहिष्कृत संत से दूसरे अखाड़े के संत भी संबंध नहीं रखते। ‘चिलम-साफी’ बंद करने का निर्णय अखाड़े के सभापति व पंच मिलकर लेते हैं। जो संत बार-बार अनुशासनहीनता करता है, उसके खिलाफ यह कोठर निर्णय लिया जाता है। जैसे पुलिस किसी अपराधी की संपत्ति जब्त करने के लिए डुगडुगी पिटवाती है। उसी प्रकार अखाड़े में ‘चिलम-साफी’ बंद करने की घोषणा होती है। अगर कुंभ-महाकुंभ में किसी का बहिष्कार होता है तो नागा संत डुगडुगी बजाते हुए समस्त अखाड़ों के शिविर में जाकर उसकी जानकारी देते हैं। कुंभ-महामकुंभ नहीं लगा होता है तो उस दौरान किसी का बहिष्कार करने का निर्णय लिया जाता है तब संबंधित अखाड़े के पदाधिकारी एक-दूसरे से बात करके सूचना प्रसारित करते हैं।

साफा गौरव का प्रतीक होता

निर्मोही अनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास के अनुसार अखाड़ों में कोई व्यक्ति संन्यास लेता है तो उन्हें नया वस्त्र पहनाया जाता है। वस्त्र अखाड़े की ओर से दिया जाता है। एक वस्त्र सिर पर रखते हैं, जिससे वह साफा (पगड़ी) बनाकर पहनते हैं। साफा गौरव का प्रतीक होता है। कुछ संत साफा नहीं लगाते, लेकिन उसके प्रतीक स्वरूप कपड़े को कंधे पर रखते हैं। वहीं, अखाड़ों के अधिकतर संत विपरीत वातावरण में रहकर तपस्या करते हैं। ऐसे संत चिलम पीते हैं। ‘चिलम-साफी’ बंद होने पर संबंधित संत अखाड़े के नाम का साफा नहीं पहन सकते और उनके साथ कोई चिलम नहीं पीता। अपमानजनक स्थिति होती है। आवाहन अखाड़ा के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमहंत सत्य गिरि बताते हैं कि जिस संत की चिलम-साफी बंद होती उसमें तमाम प्रायश्चित करते हैं।

कान पकड़कर 501 बार उठक-बैठक

महामंत्री श्रीमहंत सत्य गिरि बताते हैं, वह एक वर्ष तक प्रायश्चित करते हैं। वर्षभर बाद अखाड़े के सभापति, पंच के सामने प्रस्तुत होकर क्षमायाचना करते हैं। अखाड़े के आराध्य की प्रतिमा के आगे कान पकड़कर 501 बार उठक-बैठक करते हैं। जिस गलती के लिए सजा मिलती है उसे दोबारा न दोहराने की शपथ लेते हैं। फिर अखाड़े के मुख्यालय में होने वाली वार्षिक बैठक में सभापति व पंच आपस में उनके बार में मंत्रणा करते हैं। जब सबको लगता है कि मामला क्षमा करने योग्य है तो उन्हें अखाड़े में वापस कर लेते हैं। चिलम-साफी बंद करने की सजा पांचवी बार गलती करने पर मिलती है। पहले गलती पर अखाड़े के कोतवाल व पदाधिकारी सजा देकर माफ कर देते हैं।

फिर सुनाई जाती है सजा

पहली गलती पर उठक-बैठक करवाना, पवित्र नदी में भोर में 101 से 151 के बीच डुबकी लगाना, रसोई घर व बर्तन की सफाई करने की सजा दी जाती है। इसके बावजूद कोई नहीं सुधरता तो चिलम-साफी बंद करके अखाड़े से बहिष्कृत कर दिया जाता है। चिलम-साफी की सजा को लेकर बताया गया कि अगर कोई साधू वरिष्ठ संत की अनुमति के बिना उनकी बराबरी में बैठता है तो उसे दोषी माना जाता है। अखाड़े के पदाधिकारी द्वारा दिए गए कार्य की अनदेखी अथवा उसे समय पर पूरा न करना भी संत को चिलम-साफी सजा दिलवाता है। अगर कोई संत अखाड़े के पंचों अथवा वरिष्ठ संतों से अपशब्द में बात करना तो उसे चिलम-साफी की सजा दी जाती है।

भारत में कुल 13 अखाड़े

परंपरा के मुताबिक शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। इन अखाड़ों का नाम निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा,आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा,उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है। इन अखाड़ों के प्रमुख ने जोर दिया कि उनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करें। प्रत्येक अखाड़े के शीर्ष पर महंत आसीन होते हैं।

ऐसे मिला नाम

अखाड़ा, यूं तो कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, मगर जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका प्रयोग भी होता है। पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। हालांकि, कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही ’अखाड़ा’ शब्द की उत्पत्ति हुई है। जबकि धर्म के कुछ जानकारों के मुताबिक साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के चलते इसे अखाड़ा का नाम दिया गया है।

नागा साधुओं की गलतियों की सजा

अगर अखाड़े के दो सदस्य आपस में लड़ें-भिड़ें, कोई नागा साधु विवाह कर ले या दुष्कर्म का दोषी हो, छावनी के भीतर से किसी का सामान चोरी करते हुए पकड़े जाने, देवस्थान को अपवित्र करे या वर्जित स्थान पर प्रवेश, कोई साधु किसी यात्री, यजमान से अभद्र व्यवहार करे, अखाड़े के मंच पर कोई अपात्र चढ़ जाए तो उसे अखाड़े की अदालत सजा देती है। अखाड़ों के कानून को मानने की शपथ नागा बनने की प्रक्रिया के दौरान दिलाई जाती है। अखाड़े का जो सदस्य इस कानून का पालन नहीं करता उसे भी निष्काषित

Tags: mahakumbh 2025Prayagraj Mahakumbh
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