प्रयागराज ऑनलाइन डेस्क। संगमनगरी हर्ष और उल्लास के साथ मुस्करा रही है। देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर से भक्त त्रिवेणी के तट पर पहुंचने के साथ ही महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाकर पुण्ण कमा रहे हैं। चूंकि ये 144 साल बाद वाला महाकुंभ है। इसलिए इसका महत्व भी कई गुना बढ़ जाता है। 13 जनवरी और 14 जनवरी को करीब 5 करोड़ से अधिक भक्तों ने स्नान किया। हालांकि देश में ऐसे भी कुछ लोग हैं, जो महापर्व को लेकर अपनी सियासत चमका रहे हैं और महाकुंभ से दूरी भी बनाए हुए हैं। पर क्या आप जानते हैं प्रयागराज कुंभ में खुद स्नान करने के लिए महात्मा गांधी सीक्रेट तरीके से पहुंचे थे। जी हां, बापू संगमनगरी गए थे। एक कुटी पर रूके थे और सीक्रेट तरीके से त्रिवेणी में डुबकी लगाई थी।
और त्रिवेणी में डुबकी लगाई
प्रयागराज में पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) से शुरू हुए 45 दिवसीय महाकुंभ के तीसरे दिन भी त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालुओं का आना जारी है। पहले 2 दिनों में 5 करोड़ से ज़्यादा भक्तरें ने पवित्र डुबकी लगाई। मकर संक्रांति के अवसर पर पहले अमृत स्नान पर 3.5 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। महाकुंभ को लेकर यूपी सरकार एक बैठक करने जा रही है। बैठक के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पूरी कैबिनेट पवित्र त्रिवेणी में पुण्य की डुबकी भी लगाएगी। पर महाकुंभ से कई विपक्षी दलों के नेता दूरी बनाए हुए हैं। अखिलेश यादव ने हरिद्धार में जाकर गंगा स्नान किया तो वहीं भक्तों के कुंभ में आने के आंकड़ों पर भी विपक्षी सवाल खड़ा कर रहे हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि कुंभ में खुद महात्मा गांधी पहुंचे थे और त्रिवेणी में डुबकी लगाई थी।
अंग्रेज अफसर भी बेहद चौकन्ने
महात्मा गांधी और क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाए हुए थे। साल 1918 को आंदोलन चरम पर था। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत के सुर जोरदार तरीके से उठने लगे थे। अंग्रेज अफसर भी बेहद चौकन्ने थे। महात्मा गांधी उस समय घूम-घूम कर रैलियां कर रहे थे। 1918 में प्रयागराज में कुंभ का भी आयोजन चल रहा था। महात्मा गांधी ने कुंभ में डुबकी लगाने का प्लान बनाया। वे इतने गोपनीय तरीके से प्रयागराज पहुंचे कि इसकी भनक किसी को नहीं लग सकी। गांधीजी संगम किनारे ही एक कुटी में ठहरे थे और कुंभ में स्नान किए थे।
राजकीय अभिलेखागार में रखे दस्तावेज में दर्ज
तीन साल बाद उन्होंने खुद इस बात का खुलासा किया था। वहीं इस पूरे किस्से का उल्लेख उस समय की एक अंग्रेजी अफसर की खुफिया रिपोर्ट में किया गया था। यह रिपोर्ट क्षेत्रीय राजकीय अभिलेखागार में रखे दस्तावेज में दर्ज है। अंग्रेजों ने महात्मा गांधी के प्रयागराज में आने को लेकर बैन लगा चुके थे। ट्रेनों को रोक दिया गया था। प्रयागराज के बार्डर को छावनी में तब्दील कर दिया गया था। हर आने-जाने वाले लोगों की तलाशी अंग्रेज ले रहे थे। तभी सीक्रेट तरीके से गांधी से प्रयागराज पहुंचे। हनुमान मंदिर के पास एक कुटिया पर वह दो दिन रूके थे। संतों के साथ वह शामिल होकर संगम पहुंचे। फिर कुंभ में स्नान कर वापस कुटी लौटे। एक दिन रूकने के बाद वह प्रयागराज से निकल गए थे।
इसलिए मैंने पहले वहां जाकर डुबकी लगाई
यूपी के फैजाबाद में कांग्रेस अधिवेशन का मंच सजा था। महात्मा गांधी भी इस अधिवेशन में पहुंचे और कुंभ में डुबकी लगाने के सीक्रेट प्लान का खुलासा किया था। महात्मा गांधी ने फैजाबाद में कहा था, मुझे पहले ही अयोध्या की यात्रा (फैजाबाद) पर आना था, लेकिन इलाहाबाद में कुंभ मेला में जाने के कारण विलंब हो गया। कुंभ में एक माह से ज्यादा समय तक बड़ी संख्या में लोग रहते हैं, इसलिए मैंने पहले वहां जाकर डुबकी लगाई। महात्मा गांधी की इस बात का जिक्र उस समय की सीआइडी रिपोर्ट में है। अंग्रेजी शासन के आदेश पर सीआइडी की टीम उस समय महात्मा गांधी की जनसभा पर नजर रख रही थी। सीआईडी की ये रिपोर्ट राजकीय अभिलेखगार में रखी है।
एक्टिव रहने के लिए प्रेरित भी किया
हरिद्वार में 1915 में कुंभ चल रहा था। वहां महात्मा गांधी भी पहुंचे और उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले से मुलाकात की। दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई। गोखले ने उन्हें कुंभ के अवसर पर इलाहाबाद जाने की सलाह दी। तीन साल बाद महात्मा गांधी ना सिर्फ इलाहाबाद (अब प्रयागराज) कुंभ पहुंचे, बल्कि वहां लोगों से मुलाकात की और उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में एक्टिव रहने के लिए प्रेरित भी किया। गांधीजी ने संगम में स्नान भी किया था। महात्मा गांधी भी इस कुंभ को एक अवसर मानकर पहुंचे थे, ताकि वहां जाकर लोगों की भावनाएं समझी जाएं और अपने विचार साझा किए जाएं।
अंग्रेजी शासन की खिलाफत चल रही थी
दरअसल, कुंभ में हमेशा भारी भीड़ जुटती आई है। 1900 के दशक में अंग्रेजी शासन की खिलाफत चल रही थी। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि कहीं भीड़ इकट्ठा हो और उनके खिलाफ माहौल बनाने की गुंजाइश रहे। चूंकि अंग्रेज इसे सामाजिक खतरे के रूप में देखते थे। ऐसे में उन्होंने कुंभ मेले में भीड़ को रोकने के लिए कदम उठाए. ट्रेन टिकट पर बैन लगाया। ट्रेनों को कम किया गया और लंबी दूरी से आने वाली ट्रेनों पर ब्रेक लगाया गया।