लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। 8 चिरंजीवियों में भगवान परशुराम समेत महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और ऋषि मार्कंडेय हैं जो आज भी इस कलयुग में विचरण कर रहे हैं। शास्त्रों में अष्टचिरंजीवियों का वर्णन विस्तार से किया गया है। इन्हीं अष्टचिरंजीवियों में भगवान परशुराम भी हैं, जो कलयुग में भी मानव का कल्याण करते हैं। भगवान परशुराम को अमर होने का वरदान मिला हुआ है।
22 अप्रैल को हुआ था भगवान परशुराम का जन्म
भगवान परशुराम का जन्म हर साल 22 अप्रैल यानी अक्षय तृतीया को मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के सभी दस अवतारों में छठें अवतार माने गए भगवान परशुराम की जंयती भी मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भगवान परशुराम का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि और रेणुका की संतान हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल में हुआ था और ये 8 चिरंजीवी पुरुषों में एक हैं।
भगवान शिव के परमभक्त हैं परशुराम जी
ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम आज भी इस धरती पर मौजूद हैं। परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया पर किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। भगवान परशुराम का जन्म माता रेणुका की कोख से हुआ था। जन्म के बाद इनके माता-पिता ने इनका नाम राम रखा था। बालक राम बचपन से ही भगवान शिव के परम भक्त थे। ये हमेशा ही भगवान की तपस्या में लीन रहा करते थे।
ऐसे पड़ा परशुराम नाम
परशुराम जह की तपस्या से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर इन्हें कई तरह के शस्त्र दिए थे जिसमें एक फरसा भी था । फरसा को परशु भी कहते हैं इस कारण से इनका नाम परशुराम पड़ा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया था। दरअसर गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण के दौरान भगवान कृष्ण की मुलाकात परशुराम जी से हुई तभ उन्होंने भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया था।
अपमान का लिया बदला
परशुराम जी का जन्म ब्राह््राण कुल में हुआ था लेकिन उनका ये अवतार बहुत ही तीव्र, प्रचंड और क्रोधी स्वाभाव का था। भगवान परशुराम ने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए इस पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियों का संहार करके विहीन किया था। इसके अलावा अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए अपनी माता का भी वध कर दिया था। लेकिन वध करने के बाद पिता से वरदान प्राप्त करके फिर से माता को जीवित कर दिया था।
इन्हें सिखाई शस्त्र विद्या
महान योद्धा होने के कारण भगवान परशुराम के कई शिष्य भी थे जिन्हें उन्होंने शस्त्र विद्या सिखाई। उन्होंने भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे महान योद्धाओं को शस्त्र विद्या दी, जिन्होंने बाद में महाभारत जैसे धर्मयुद्ध में कौरवों की तरफ से लड़ाई में योगदान दिया था। हालांकि, कर्ण ने ये झूठ बोलकर कि वह ब्राह्मण है, उनसे ब्रह्मास्त्र चलाना सीखा था, लेकिन जैसे ही परशुराम को यह ज्ञात हुआ कि वो ब्राह्मण नहीं बल्कि एक सूतपुत्र है, तो उन्होंने कर्ण को श्राप भी दिया था कि युद्ध के समय वो अपनी सारी विद्या भूल जायेगा।
कलियुग में कर रहे महान शिष्य का इंतज़ार
चिरंजीवी होने के कारण ही परशुराम त्रेतायुग में भी थे और द्वापर युग में भी। भगवान राम ने इन्हें सुदर्शन चक्र सौंपा था और कहा था कि जब कृष्ण रूप में अवतार लेंगे, तब उन्हें इसकी जरूरत पड़ेगी। द्वापर युग में परशुराम ने श्री कृष्ण को उनकी अमानत सुदर्शन चक्र लौट दिया। मान्यता यह भी है कि बाद में परशुराम तपस्या करने हिमालय चले गए। परशुराम ने महेंद्रगिरि पर्वत पर तपस्या की और माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक वहीं तपस्यारत रहेंगे। मान्यता है कि परशुराम आज भी यानि कलियुग में भी अपने एक महान शिष्य का इंतज़ार कर रहे हैं, ताकि वो उन्हें शस्त्र विद्या दे सकें।
कलियुग में होगा भगवान कल्कि का अवतार
इस महान शिष्य ने अभी तक कलियुग में अवतार नहीं लिया है और यह कोई और नहीं बल्कि भगवान विष्णु के ही अंतिम अवतार और कलियुग के धर्मरक्षक कल्कि अवतार होंगे। श्रीमद्भागवत के अनुसार जब कलियुग अपने चरम और अंतिम सीमा पर होगा, तब भगवान् कल्कि अवतार लेंगे, और उन्हें भगवान् परशुराम द्वारा ही शस्त्र विद्या दी जायेगी। उसके बाद कल्कि भगवान कलि नामक असुर का वध कर कलियुग को समाप्त करेंगे और सतयुग की स्थापना करेंगे।