नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता हैं कि आठ महान विभूतियां आज भी सशरीर जीवित हैं। मान्यता है कि ये विभूतियां अनंत काल तक धरती पर सशरीर रह कर धर्म की रक्षा और मानव मात्र की सेवा करती रहेंगी। इन्हीं चरजीवियों में से एक हैं रावण के भाई राक्षस राज विभीषण। बताया जाता है कि विभीषण भारत के कोटा स्थित मंदिर में आज भी आते हैं और यहां पर रूकने के बाद फिर से गुफाओं में तपस्या के लिए चले जाते हैं। कईबार स्थानीय लोगों को विभीषण ने दर्शन भी दिए हैं।
विभीषण भी अमर
पौराणिक मान्यता के अनुसार अश्वथामा, बलि, वेद व्यास, हनुमान जी, कृपाचार्य, भगवान परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि के साथ- साथ राक्षस राज विभीषण भी चिंरजीवियों में शामिल हैं। उत्तर रामायण में प्रसंग आता है कि जब प्रभु श्री राम ने हनुमान जी को धरती लोक में भक्तों के संकट दूर करने और धर्म की रक्षा के लिए कलयुग के अंत तक धरती पर रहने को कहा था। हनुमान जी के साथ ही प्रभु श्रीराम के एक और अन्नय भक्त थे राक्षस राज विभीषण। जो की राक्षस कुल में पैदा होने के बाद भी नीति और सत्य के प्रति कर्तव्य निष्ठ रहे।
भगवान श्रीराम ने दिया था वरदान
रावध के वध के बाद भगवान श्रीराम ने विषीषण को लंका की बागडोर सौंपी थी। विभीषण ने अपने बड़े भाई रावण और सभी राक्षसों को अनीति के रास्ते पर चलने से मना किया था। लेकिन अपनी शक्ति के मद में चूर रावण उसकी एक नहीं सुनी और उसे घर से निकाल दिया। भगवान राम के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा और भक्ति के कारण प्रभु श्रीराम ने न केवल विभीषण को लंका का राज्य सौंपा, बल्कि अनंत काल तक धर्म की रक्षा का कर्तव्य भी दिया। प्रभु श्री राम के इसी वरदान के कारण विभिषण आज भी जीवित हैं और प्रातः स्मरणीय चिरंजीवीयों में शामिल हैं।
कोटा में हैं विभीषण का मंदिर
कोटा जिले के कैथून कस्बे के नजदीक विश्व का एकमात्र विभीषण मंदिर स्थापित है। इस अत्यधिक प्राचीन मंदिर में लगातार पूजा के लिए श्रद्धालु भी आते हैं। रावण से युद्ध में भगवान राम की मदद करने के चलते ही विभीषण की पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम के राजतिलक त्रेतायुग के बाद ही यहां पर यह मंदिर स्थापित किया गया था। कैथून कस्बे में विभीषण मेला भी आयोजित किया जाता है जो होली उत्सव के दौरान आयोजित होता है।
ताकि मैं भी वहां के दर्शन कर लूं
कोटा से ठीक 15 किलोमीटर दूर स्थित कैथून कस्बे में यह मंदिर है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि लंका पर विजय के बाद भगवान राम का अयोध्या में राजतिलक हो रहा था और इसमें भाग लेने के लिए लंका नरेश विभीषण भी पहुंचे थे। यहां पर हनुमान जी और शंकर भगवान बात कर रहे थे कि वह यहां का आयोजन पूरा करने के बाद भारत के देव स्थानों का भ्रमण करेंगे। यह बात विभीषण ने सुनी तो उन्होंने कहा कि मैं आप दोनों को सभी देव स्थानों का भ्रमण कराउंगा ताकि मैं भी वहां के दर्शन कर लूं।
जिसके बाद उनकी यात्रा खत्म हो गई
भगवान शिव और हनुमान जी की सहमति मिलने के बाद विभीषण ने अपने कंधे पर एक कावड़ ले ली। इसमें एक तरफ भगवान शंकर और दूसरी तरफ हनुमान विराजित हो गए। इस पर भगवान शंकर ने विभीषण से शर्त रख दी कि जहां भी आपका पैर जमीन को छू लेगा। हम यात्रा को खत्म कर देंगे। इसके बाद विभीषण दोनों भगवान को लेकर भारत भ्रमण के लिए निकले। कुछ स्थानों के भ्रमण के बाद में विभीषण का पैर कैथून कस्बे में धरती पर पड़ गया जिसके बाद उनकी यात्रा खत्म हो गई।
50 साल पहले विभीषण मंदिर जाया करते थे
ऐसे में कावड़ का अगला सिरा करीब 4 कोस यानी 12 किलोमीटर आगे चारचौमा और दूसरा हिस्सा भी कोटा के रंगबाड़ी इलाके में था। यह भी करीब 12 किलोमीटर दूर है। ऐसे में रंगबाड़ी में भगवान हनुमान और चारचौमा में भगवान शंकर का मंदिर स्थापित हो गया। वहीं जहां पर विभीषण का पैर गिरा था, वहां पर विभीषण मंदिर का निर्माण करवा दिया गया। मंदिर ट्रस्ट के फाउंडर मेंबर दुर्गा शंकर पुरी का कहना है कि वह करीब 50 साल पहले विभीषण मंदिर जाया करते थे। आसपास घना जंगल हुआ करता था। तब वहां पर ज्यादा कुछ नहीं था।
एक मूर्ति और चबूतरा बना हुआ था
दुर्गा शंकर पुरी बताते हैं तब केवल एक मूर्ति और चबूतरा बना हुआ था जिस पर एक छतरी भी लगी हुई थी। इसके बाद वहां एक संत आकर रहने लगे और उन्होंने स्थानीय लोगों की मदद से अखंड रामायण पाठ का आयोजन शुरू कर दिया। इसके बाद मंदिर का विकास होता रहा। 1980 में उन्होंने विभीषण मेले का आयोजन शुरू किया। दुर्गा शंकर पुरी का मानना है कि वैसे तो विभीषण और हिरण्यकश्यप का पौराणिक कथाओं में जोड़ नहीं है, लेकिन होली के अवसर पर कैथून कस्बे में देव विमान निकाले जाते थे। यह विभीषण मंदिर के नजदीक स्थित कुंड पर जाते थे जिसमें केवल 20 से 25 लोग ही भाग लेते थे।
5000 साल प्राचीन मंदिर
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। यह करीब 5000 साल पुरानी बात है। ऐसे में यह विभीषण मंदिर भी उनके राजा बनने के बाद ही स्थापित किए जाने का अनुमान है। स्थानीय लोगों का भी यह मानना है और यहां दर्शाए गए इतिहास में भी यही बताया गया है। हालांकि यह बोर्ड भी मंदिर ट्रस्ट के निर्देशन पर ही किसी व्यक्ति ने लगवाया है। मोहिनी बाई मानती हैं कि यह मंदिर चमत्कारी है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मांग जरूर पूरी होती है।