कानपुर ऑनलाइन डेस्क। Republic Day 2025 Special Story भारत आज पड़े हर्षोउल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मना रहा है पर ये आजादी ऐसे नहीं मिली। इसके लिए अनगिनत क्रांतिकारियों ने हंसते-हंसते मौत को गले लगाया। ऐसे ही महान क्रांतिकारी फतेहपुर जिले के अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह ‘अटैया’ थे। जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जंग-ए-आजादी का बिगुल फूंका था। वह अपने 51 जांबाजों के साथ चुन-चुन कर अंग्रेजों को मार रहे थे। तभी मुखबिर की सूचना पर 28 अप्रैल, 1858 को ब्रिटिश शासक कर्नल क्रस्टाइज की घुड़सवार सेना ने जोधा सिंह समेत उनके 52 जांबाज़ क्रांतिकारियों को बंदी बना लिया था। साथ ही, उसी दिन इन सभी को फतेहपुर जिला स्थित खजुहा में एक इमली के पेड़ पर फांसी से लटका दिया था। तभी से यह पेड़ अब ‘बावनी इमली’ के नाम से प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों की मानें तो जब इन सभी को फांसी दी गई थी, उस समय से ही इस पेड़ का विकास थम सा गया है। कभी पेड़ पर फल नहीं आए। पेड़ से पानी का रिसाव भी लगातार तभी से जारी है।
पहले जानें क्रांतिकारी ठाकुर जोधा सिंह के बारे में
ठाकुर जोधा सिंह राजपूत जाति से थे। वह फतेहपुर जिले के अटैया रसूलपुर गांव के रहने वाले थे। ठाकुर जोधा सिंह अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। ठाकुर जोधा सिंह झांसी की रानी लक्ष्मी बाई से काफी प्रभावित थे। वह गुरिल्ला युद्ध में काफी माहिर थे। अपनी इस युद्ध कला से कई अंग्रेजों को उन्होंने काल के गाल में भेज दिया था। 1857 की क्रांति का जज्बा ही ऐसा था कि अंग्रेज ठाकुर जोधा सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों से आतंकित रहने लगे। इसी बीच ठाकुर जोधा सिंह के साथियों ने अंग्रेज अधिकारी कर्नल पावेल की हत्या कर दी। साथ ही 7 दिसंबर 1857 को रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला कर दिया। इसके दो दिन बाद यानी 9 दिसंबर को जहानाबाद (तत्कालीन तहसील) के तहसीलदार को बंदी बनाकर सरकारी खजाना तक लूट लिया। जब ये सब जानकारी शीर्ष अंग्रेज अधिकारियों तक पहुंची तो उन्होंने ठाकुर जोधा सिंह को डकैत घोषित कर दिया था।
37 दिनों तक पेड़ पर लटके रहे थे शव
इन सारी घटनाओं से परेशान फिरंगियों ने उन्हें गिरफ्तार करने के लिए मुहिम तेज़ कर दी। लेकिन जोधा सिंह कई बार अंग्रेजों को चकमा देने में सफल रहे। 28 अप्रैल, 1858 को अपने 51 साथियों के साथ खजुहा वापस लौट रहे थे। तभी एक मुखबिर की सूचना पर अंग्रेज अफसर कर्नल क्रिस्टाइल ने सभी को एक साथ बंदी बना लिया और उसी दिन जोधा सिंह के साथ उनके सभी 51 क्रन्तिकारियों को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया। बताया जाता है कि अंग्रेजों ने लोगों में खौफ पैदा करने के लिए सभी शवों को पेड़ से उतारने को मना कर दिया था। साथ ही, हिदायत दी थी कि अगर ऐसा करने की किसी ने हिम्मत की तो उसका भी यही हश्र होगा। जिसकी वजह से इन सभी क्रांतिकारियों के शव 37 दिनों तक पेड़ में ही लटके रहे। इस दौरान शवों के केवल कंकाल ही बचे थे। बावनी इमली के पास दर्ज ऐतिहासिक दस्तावेज की मानें तो अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह के साथी ठाकुर महाराज सिंह ने अपने 900 क्रांतिकारी साथियों के साथ 3-4 जून 1858 की रात सभी कंकाल को पेड़ से उतारकर गंगा नदी किनारे स्थित शिवराजपुर घाट पर अंतिम संस्कार किया था।
तभी से इस पेड़ का विकास रुक गया
स्थानीय लोगों बताते हैं कि आज इस इमली के पेड़ को ‘बावन इमली’ के नाम से जाना जाता है। हालांकि जब ठाकुर जोधा सिंह सहित उनके 52 क्रांतिकारियों को इस पेड़ पर लटकाया गया, तभी से इस पेड़ का विकास रुक गया है। इमली में कभी फूल नहीं आए। कभी इमली ने फल नहीं दिए। स्थानीय लोग बताते हैं कि करीब 180 साल की उम्र वाले पेड़ पर पानी रसता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ये पेड़ आज भी अंग्रेजों की क्रूरता का गवाह है। स्थानीय लोग बताते हैं कि जलियां वाला बाग की तरह इस स्थान को बड़ा स्मारक नहीं बनाया गया, वरना दुनिया इन महान बलिदानियों को भी जानती। रसूलपुर गांव के राकेश सिंह का दावा है कि वह जोधा सिंह अटैया के वंशज हैं। वह छोटामोटा काम करके जीवन यापन कर रहे हैं। जोधा सिंह का पुश्तैनी घर न जाने कब गिर गया। अब वहां मैदान है जिस पर लोग गोबर और पुआल वगैरह डालते हैं। जोधा सिंह के नाम पर गांव में पार्क के लिए 10 बीघा जमीन दी गई थी। जोधा सिंह के एक बेटी थी और उसने ही वंश को आगे बढ़ाया।