Benefits of gupt daan हिंदू धर्म में दान करने की परंपरा बहुत पुरानी है। लेकिन जब बात गुप्त दान की आती है, तो इसे सबसे श्रेष्ठ और पुण्य देने वाला दान माना जाता है। गुप्त दान का मतलब होता है ऐसा दान जो बिना किसी को बताए किया जाए। यानी ना तो दान देने से पहले किसी को बताया जाए और ना बाद में। इसे ‘महा दान’ का दर्जा मिला हुआ है।
ज्योतिष शास्त्र में भी गुप्त दान को बहुत खास माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि अगर इंसान कुछ विशेष चीजों का गुप्त रूप से दान करे, तो उसकी आर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार आता है। यहां तक कि एक सामान्य व्यक्ति भी धीरे-धीरे समृद्धि की ओर बढ़ने लगता है।
क्या होता है गुप्त दान?
गुप्त दान मतलब ऐसा दान जिसमें कोई दिखावा या प्रचार न हो। इसमें दान देने की बात सिर्फ दाता तक ही सीमित रहती है। शास्त्रों में यहां तक कहा गया है कि अगर आप दाएं हाथ से दान दें, तो बाएं हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। यानी पूरी तरह से गोपनीयता रखी जाए।
इन चीजों का करें गुप्त दान
पूजा का आसन:अगर आप मंदिर में जाकर किसी पूजा करने वाले के लिए चुपचाप एक नया आसन रख देते हैं, तो जितने लोग उस पर बैठकर पूजा करेंगे, उसका पुण्य आपको भी मिलेगा।
नमक: किसी लंगर या भंडारे में नमक का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। नमक सस्ता होने के बावजूद इसके दान से घर में बरकत आती है। इसे गुप्त रूप से मंदिर या किसी जरूरतमंद को दिया जा सकता है।
माचिस: अगर आपके जीवन में तकलीफें चल रही हैं, तो मंगलवार के दिन मंदिर में कुछ माचिस की डिब्बियां रख आइए। यह छोटा-सा गुप्त दान आपके जीवन से परेशानियों को कम कर सकता है।
तांबे का लोटा या जल पात्र: शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए जरूरी तांबे का लोटा या बर्तन आप मंदिर में चुपचाप रख सकते हैं। यह दान लंबे समय तक पुण्य देता है और आपकी आर्थिक स्थिति को भी बेहतर बनाता है।
वस्त्र और कंबल: सर्दी के मौसम में जरूरतमंदों को बिना बताए कपड़े और कंबल देना पुण्य का काम है। इससे राहु-केतु के दोष भी शांत होते हैं।
किताबें या शिक्षा सामग्री: बच्चों या जरूरतमंद छात्रों को शिक्षा का सामान देना लक्ष्मी की विशेष कृपा दिला सकता है।
अन्न दान: गुप्त रूप से भोजन या अन्न का दान करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती और धन का आगमन बना रहता है।
गुप्त दान क्यों है इतना असरदार
गुप्त दान करने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसमें कोई अहंकार या दिखावा नहीं होता। दान का असली मतलब ही तब पूरा होता है जब वह निस्वार्थ भाव से किया जाए। ऐसे दान से पुण्य तो मिलता ही है, साथ ही मन में भी संतोष और शांति आती है।
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