Hamirpur land scam: हमीरपुर से आई खबर ने एक बार फिर सरकारी तंत्र की पोल खोल दी है। प्रशासनिक अफसरों की मिलीभगत से जिले के DM आवास और उससे सटी 58.14 एकड़ बेशकीमती सरकारी जमीन को फर्जी दस्तावेजों के सहारे विपक्षियों को सौंपने की कोशिश की गई। जमीन की कीमत 1000 करोड़ से अधिक बताई जा रही है। आरोपी अफसरों ने न सिर्फ अभिलेखों से छेड़छाड़ की, बल्कि कोर्ट में असली दस्तावेज भी नहीं प्रस्तुत किए। पूरे मामले में पूर्व SDM, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, लेखपाल सहित 13 लोगों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ है। यह मामला इस वक्त हाईकोर्ट में विचाराधीन है, और इसकी जांच की जा रही है।
अफसरों ने कर डाला जमीन का सौदा
Hamirpur में सरकारी जमीन को विपक्षियों के नाम कराने के लिए अफसरों ने गजब का जाल बुना। रिपोर्ट के अनुसार, DM बंगले से सटी 58.14 एकड़ जमीन—जिसमें मेरापुर डांडा की 51.89 एकड़ और भिलावां डांडा की 6.25 एकड़ भूमि शामिल है—को फर्जी तरीके से अकृषिक घोषित कर विपक्षियों को सौंपने की कोशिश की गई।
2004 से 2007 के बीच सदर तहसील में तैनात रहे तत्कालीन SDM विजय कुमार गुप्ता, तहसीलदार, नायब तहसीलदार जैनेंद्र सिंह और सदर लेखपाल की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे हैं। SDM सुक्रमा प्रसाद विश्वकर्मा की तहरीर पर इनके विरुद्ध IPC की सात धाराओं में केस दर्ज किया गया है।
अफसरों और रसूखदारों की मिलीभगत
जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है, उनमें अफसरों के साथ-साथ कानपुर, लखनऊ, वाराणसी और हमीरपुर के कई रसूखदार शामिल हैं। स्वरूप नगर, तिलकनगर, और रमेड़ी के सिंघल परिवार के कई सदस्यों सहित विवेक कुमार, सूर्यनारायण और आनंदेश्वर अग्रवाल को नामजद किया गया है।
इनका दावा था कि डीएम आवास उनकी पुश्तैनी जमीन पर बना है। इस दावे को सही ठहराने के लिए इन्होंने अफसरों के साथ मिलकर नकली दस्तावेज तैयार करवाए। ये दस्तावेज Hamirpur कोर्ट में भी प्रस्तुत किए गए, जिससे न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की गई।
1857 के बागियों की जमीन पर नज़र
यह महज एक भूमि विवाद नहीं, बल्कि आज़ादी के संघर्ष से जुड़ी विरासत पर चोट है। रिपोर्ट के अनुसार, 1857 की क्रांति में भाग लेने के चलते ब्रिटिश हुकूमत ने माधवराव और नारायणराव की कोठी और उससे जुड़ी जमीन जब्त कर ली थी। यह भूमि बाद में नजूल संपत्ति बनी और 1932 में राजस्व विभाग को सौंपी गई।
अब तक यह जमीन सरकार के कब्जे में थी, लेकिन भ्रष्टाचार के दलदल में डूबे अफसरों ने उसे हड़पने की साजिश रच डाली।
Hamirpur का यह मामला महज एक फर्जीवाड़ा नहीं, बल्कि उस मानसिकता का प्रमाण है जिसमें प्रशासनिक अफसर खुद को कानून से ऊपर समझते हैं। 1000 करोड़ की ज़मीन को ठगने की यह कोशिश बताती है कि सत्ता की कुर्सी पर बैठे कुछ लोग जनहित की बजाय निजी लाभ के लिए संविधान और राष्ट्र की संपत्ति से भी खिलवाड़ करने को तैयार हैं। जांच और सज़ा की उम्मीद में जनता की नज़र अब अदालत पर है।