CJI BR Gavai Oath: जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेकर पदभार संभाल लिया है। 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त होने तक वह इस अहम पद पर रहेंगे। उनका कार्यकाल लगभग छह महीने का होगा, लेकिन इस अवधि में उनके सामने कई बड़ी संवैधानिक चुनौतियाँ होंगी, जिनमें वक्फ कानून से जुड़ा मामला प्रमुख है। अनुसूचित जाति से आने वाले दूसरे और बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले पहले मुख्य न्यायाधीश होने के कारण उनकी नियुक्ति ऐतिहासिक मानी जा रही है। उनके नेतृत्व में न्यायपालिका से न्यायिक सक्रियता और सामाजिक न्याय की दिशा में निर्णायक कदमों की उम्मीद की जा रही है।
संविधान पीठों का अनुभव और ऐतिहासिक फैसले
CJI BR Gavai सुप्रीम कोर्ट में अपने छह वर्षों के कार्यकाल में लगभग 700 पीठों का हिस्सा रहे हैं और 300 से अधिक फैसले लिख चुके हैं। वह कई महत्वपूर्ण संविधान पीठों का हिस्सा रहे, जिन्होंने अनुच्छेद 370 हटाने को वैध ठहराया, चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया और नोटबंदी को संवैधानिक माना। उनके द्वारा सुनाए गए आदेशों में तीस्ता सीतलवाड़ को नियमित जमानत, राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक और मनीष सिसोदिया को जमानत देना शामिल हैं।
समावेशिता का प्रतीक और सामाजिक न्याय की उम्मीद
CJI BR Gavai की नियुक्ति न केवल न्यायपालिका की समावेशी सोच का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक सकारात्मक संकेत भी है। वह अनुसूचित जाति से आने वाले दूसरे CJI हैं, इससे पहले जस्टिस केजी बालकृष्णन ने यह पद संभाला था। संविधान और नैतिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उनके अब तक के न्यायिक कार्यों में झलकती रही है।
वकालत से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर
CJI BR Gavai का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की और बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में स्वतंत्र प्रैक्टिस के बाद सरकारी वकील और लोक अभियोजक के रूप में कार्य किया। 2003 में बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बने। 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने और अब CJI के रूप में सर्वोच्च पद संभाला।
अब वक्फ कानून पर नजर
सीजेआई गवई के कार्यकाल में वक्फ एक्ट 1995 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई प्रमुख मामला होगी। इस संवेदनशील विषय पर न्यायपालिका की भूमिका गवई की न्यायिक दृष्टि और संवैधानिक मूल्यबोध की अग्निपरीक्षा होगी।