Indian Navy : भारतीय नौसेना को बुधवार के दिन एक ऐतिहासिक और बेहद खास जहाज मिलने जा रहा है, जिसे पूरी तरह पारंपरिक तकनीकों और प्राकृतिक सामग्री से तैयार किया गया है। इस विशेष जहाज की प्रेरणा अजंता की गुफाओं में बनी एक प्राचीन चित्रकला से ली गई है। इसे केरल के कुशल शिल्पकारों ने हाथों से जोड़कर बनाया है, और इसका नेतृत्व अनुभवी बाबू शंकरन ने किया है।
यह अनोखा जहाज कर्नाटक के कारवार नौसैनिक अड्डे पर आयोजित एक भव्य समारोह में भारतीय नौसेना के बेड़े में औपचारिक रूप से शामिल किया जाएगा। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे और जहाज को नाम देकर उसका नामकरण भी करेंगे।
क्या है इस जहाज की खासियत ?
इस जहाज की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे लकड़ी से तैयार किया गया है और इसमें न तो किसी कील का इस्तेमाल किया गया है और न ही आधुनिक धातु का। इसमें पारंपरिक चौकोर पाल (स्क्वायर सेल) और लकड़ी की पतवार लगाई गई हैं। इसका निर्माण पूरी तरह से पारंपरिक शिप-बिल्डिंग तकनीकों से हुआ है, जिससे यह आधुनिक युद्धपोतों से एकदम अलग और विशिष्ट बनाता है।
नौसेना के अधिकारियों के मुताबिक, यह “स्टिच्ड शिप” दरअसल 5वीं शताब्दी के एक प्राचीन जहाज का पुनर्निर्माण है। इसका डिज़ाइन अजंता की एक चित्रकृति से लिया गया है, क्योंकि उस काल का कोई वास्तविक जहाज आज उपलब्ध नहीं है। चित्र के आधार पर इसका मॉडल तैयार करना तकनीकी रूप से काफी चुनौतीपूर्ण था। इस काम में IIT मद्रास ने सहयोग किया और पानी में इसका परीक्षण भी किया गया, ताकि इसके डिजाइन की मजबूती और समुद्र में संतुलन को परखा जा सके।
संस्कृति मंत्रालय ने प्रदान की आर्थिक सहायता
इस ऐतिहासिक प्रोजेक्ट के लिए संस्कृति मंत्रालय ने आर्थिक सहायता प्रदान की। मंत्रालय ने जुलाई 2023 में भारतीय नौसेना, संस्कृति मंत्रालय और गोवा की होदी इनोवेशन संस्था के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते के तहत इस परियोजना की शुरुआत की थी। इसके बाद सितंबर 2023 में ‘कील लेइंग’ समारोह के साथ जहाज के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई। कील लेइंग वह परंपरागत रस्म है जिसमें जहाज की सबसे लंबी और मुख्य लकड़ी को स्थापित किया जाता है, जो जहाज की संरचना का आधार होती है।
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यह जहाज केवल एक कलात्मक विरासत ही नहीं, बल्कि भारत की प्राचीन समुद्री संस्कृति और व्यापारिक इतिहास की भी जीती-जागती मिसाल है। इसे नौसेना में शामिल किए जाने के बाद, इसका अगला चरण शुरू होगा—जहां इसे गुजरात से ओमान तक समुद्र के पार ले जाया जाएगा। यह अंतर-महासागरीय यात्रा भारत के प्राचीन समुद्री व्यापार मार्गों को फिर से जीवंत करेगी और पारंपरिक नौवहन तकनीकों के अनुभव को दोबारा सामने लाएगी। यह परियोजना भारत की सांस्कृतिक और समुद्री विरासत को नई पीढ़ी के सामने लाने का एक अनूठा प्रयास है, जो भविष्य में भी समुद्री इतिहास और परंपरागत तकनीकों के अध्ययन का केंद्र बन सकता है।