SP MLA action: फरवरी 2024 में राज्यसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी (सपा) के 7 विधायकों ने भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर सियासी भूचाल ला दिया था। इस बड़ी बगावत के बावजूद सपा ने अब तक सिर्फ तीन विधायकों पर ही सख्त कार्रवाई की है, जबकि चार अन्य को बख्श दिया गया है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या पार्टी का यह निर्णय ‘पीडीए’ के प्रति झुकाव का संकेत है या फिर किसी सियासी मजबूरी का हिस्सा? क्या पार्टी की कार्रवाई चयनात्मक थी या इनमें वाकई किसी का ‘हृदय परिवर्तन’ हुआ? इस पूरे घटनाक्रम ने यूपी की राजनीति में सपा की निष्पक्षता और अनुशासनात्मक नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
किस पर चला सपा का हंटर, कौन बच गए?
फरवरी 2024 में हुए राज्यसभा चुनाव में SP के जिन 7 विधायकों ने भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी, उनमें से तीन विधायकों — मनोज कुमार पांडेय (ऊंचाहार), राकेश प्रताप सिंह (गौरीगंज) और अभय सिंह (गोसाईगंज) — को पार्टी से बाहर कर दिया गया है। इन तीनों पर लगातार पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठबंधन के खिलाफ बोलने और पार्टी लाइन से हटकर सक्रियता दिखाने का आरोप है। वहीं, चार अन्य विधायक — राकेश पांडेय (जलालाबाद), विनोद चतुर्वेदी (कालपी), पूजा पाल (चायल) और आशुतोष मौर्या (बिसौली) — को पार्टी ने चेतावनी देकर छोड़ दिया है।
क्यों बच गए चार विधायक?
सूत्रों के अनुसार, जिन चार विधायकों पर कार्रवाई नहीं हुई, वे पार्टी नेतृत्व के संपर्क में बने रहे और उनके व्यवहार में ‘बदलाव’ दिखा। इन विधायकों ने न सिर्फ पीडीए एजेंडे के पक्ष में बयान दिए बल्कि पार्टी के साथ संवाद भी बनाए रखा। सपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि इन विधायकों ने लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के पक्ष में कोई गतिविधि नहीं की और अब पार्टी लाइन का पालन कर रहे हैं। यही वजह रही कि सपा नेतृत्व ने फिलहाल इन्हें बख्श दिया है।
सियासी दबाव या रणनीति?
SP के इस निर्णय को लेकर कई तरह की चर्चाएं तेज हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा ने पीडीए के प्रति वफादारी को केंद्र में रखकर ही यह कार्रवाई की है। वहीं, पार्टी के अंदर से ही आवाजें उठ रही हैं कि कार्रवाई का पैमाना एक जैसा क्यों नहीं रखा गया? क्या पार्टी ने सियासी समीकरण साधने के लिए चार विधायकों को माफ कर दिया? या फिर यह फैसला आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी का हिस्सा है, जिसमें पार्टी अपने संभावित नुकसान को कम करना चाहती है?
सपा का दो टूक रुख
बता दें कि राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार संजय सेठ के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बागी विधायकों की पार्टी में वापसी की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया था। अखिलेश ने साफ कहा था कि इन बागियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी। हालांकि लोकसभा चुनाव के चलते यह मामला कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते में चला गया था, लेकिन अब विधानसभा चुनाव की तैयारियों के साथ ही सपा अपने घर को दुरुस्त करने में जुट गई है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, तीन विधायकों को बाहर कर पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि पीडीए एजेंडे से समझौता करने वालों के लिए सपा में कोई जगह नहीं है।
इस मामले में आगे और कार्रवाई होगी या यही पार्टी का अंतिम फैसला है, यह देखना दिलचस्प होगा।