Manipuri family mysterious deaths: क्या किसी परिवार का पीछा सच में मौत कर सकती है? क्या वाकई कोई ऐसा साया हो सकता है, जो एक-एक कर अपनों को लीलता चला जाए? मैनपुरी के सकत बेवर गांव में एक ऐसा परिवार है, जिसके इर्द-गिर्द रहस्यों का घना अंधेरा छा गया है। जहां हर साल मौत दस्तक देती है, और हर बार कोई न कोई उसे गले लगा लेता है। बीते पांच वर्षों में इस घर ने एक-एक कर आठ अर्थियां देखी हैं। ताजा घटना में परिवार के 18 वर्षीय जितेंद्र ने फांसी लगाकर अपनी जिंदगी खत्म कर ली।
मौत की शृंखला या रहस्यमय श्राप?
ये कोई सामान्य सिलसिला नहीं है। साल दर साल, इस परिवार के किसी न किसी सदस्य की मौत हो रही है — और वो भी खुदकुशी करके। कभी फांसी, कभी जहर, तो कभी आग। गांव में हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल है – क्या इस परिवार पर मौत का श्राप है?
रामवरन और उनके पिता हीरालाल की आंखों में अब आंसू नहीं बचें। इतने शव कंधे पर उठाए हैं कि अब वो डर से खाली हो चुके हैं। पांच सालों में आठ लोगों की मौत। कोई प्रेम प्रसंग में लटक गया, कोई शराब पीकर मर गया, कोई मायूसी से घबरा कर फांसी लगा बैठा।
बीस साल पहले इस दास्तां की शुरुआत हुई थी। परिवार के एक सदस्य की संदिग्ध मौत को Manipuri पुलिस ने आत्महत्या का नाम दिया। मगर गांव वाले तब से कहते आ रहे हैं – “कुछ तो है जो इस परिवार के पीछे पड़ा है।”
मौतों का सिलसिला — एक एक कर ढहते किले
हीरालाल के भाई सूरजपाल ने 25 साल पहले जहर खा लिया। बेटे पिंटू ने 2008 में फांसी लगा ली। 2012 में संजू और मनीष – एक ने जहर खाया, दूसरे ने खुद को आग लगा ली। 2023 में बलवंत ने भी फांसी का रास्ता चुन लिया।
हीरालाल के भतीजे शेर सिंह ने इसी साल फरवरी में आत्महत्या की। उसके बाद ही सौम्या ने प्रेम प्रसंग में फांसी लगा ली। और अब, 5 जुलाई को सौम्या के भाई जितेंद्र ने भी मौत को गले लगा लिया।
कोई ठोस वजह नहीं, कोई तहरीर नहीं। Manipuri थाना प्रभारी अनिल कुमार भी इस कहानी में खाली हाथ खड़े हैं। Manipuri पुलिस रिकॉर्ड्स में सब “आत्महत्या” दर्ज है, लेकिन गांव वालों की नजर में ये “रहस्य” है, “अलौकिक साया” है।
मनोवैज्ञानिकों की चेतावनी, गांव की फुसफुसाहट
Manipuri काउंसलर आराधना गुप्ता मानती हैं कि ये घटनाएं एक मानसिक प्रवृत्ति का संकेत भी हो सकती हैं। परिवार को तत्काल काउंसलिंग की जरूरत है। कभी-कभी एक मौत पूरे परिवार में एक खतरनाक मनोवैज्ञानिक लहर फैला देती है।
मगर गांव वाले इन सब को नहीं मानते। उनके लिए ये ‘मौत का साया’ है।
“जिसने भी इस परिवार का पानी पिया, वो बचा नहीं…” – गांव के बुजुर्ग धीरे से ये कहते हैं।
अब क्या बचेगा कोई?
सवाल ये है – इस रहस्यमयी सिलसिले को कौन तोड़ेगा? क्या इस परिवार के बचे हुए सदस्य मौत के इस फंदे से निकल पाएंगे? या आने वाले सालों में एक और अर्थी सजेगी?
इस गांव की गलियों में अब भी एक सिहरन सी दौड़ जाती है।
कहानी का अंत अभी बाकी है…
जांच जारी है।
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