कानपुर। बपचन से वह बहुत सीधी-साधी थी। गंगा-जमुनी की फसल उसके बांगवा में उगती थी। परिवार का राजनीति से दूर-दूर तक नाता नहीं था। वह तो पढ़ लिखकर टीचर बनना चाहती थी और गांव-गांव शिक्षा की लौ जलाना चाहती थी। पर किस्मत में कुछ और ही लिखा था। उम्र बढ़ी तो पिता ने शादी तय कर दी। शादी भी उस फैमिली में हो रही थी, जिसका पूरा कुनबा सियासत में था। ससुर विधायक, होने वाले शौहर भी मुलायम सिंह युवा बिग्रेड के कार्यकर्ता। देवर और ननद भी सियासी दंगल में थे सक्रिय। निकाह हुआ और युवती अपने ससुराल आती है। फिर क्या था वह एक सारथी की तरह अपने परिवार को आगे बढ़ाने लगती है। तभी ससुर का इंतकाल हो जाता है और पति विधायक चुने लिए जाते हैं। समय बीतता है और यूपी में बीजेपी की सरकार बन जाती है। पति पर मुकदमो की झड़ी लग जाती है और वह सलाखों के पीछे पहुंच जाते हैं। देवर भी अरेस्ट हो जाते हैं। और यहीं से घरेलू महिला की असल कहानी का आगाज होता है।
हां हम बात कर रहे हैं कानपुर की सीसामऊ सीट से विधायक नसीम सोलंकी की। जिन्होंने हिम्मत नहीं हारी। पति के लिए कोर्ट में पैरवी कर रही। जब शौहर की राजनीति की फसल को बचाने का मौका आया तो वह हलधर बनकर खेत में उतर गई। अखिलेश यादव भी जानते थे कि नसीम दूसरी इकरा हैं। सपा प्रमुख को ये भी पता था कि नसीम अफजाल अंसारी की बेटी नुसरत से कम नहीं। ऐसे में कई दावेदारों के बीच सपा प्रमुख ने नसीम को सीसामऊ से टिकट देकर चुनाव के मैदान में उतार दिया। नसीम को राजनीति की एबीसीडी नहीं आती थी। उन्होंने पति और ससुर से जो कुछ थोड़ा बहुत सीखा, उसे ही अपना हथियार बनाकर जनता के बीच पहुंच गई। बीजेपी ने भी सोलंकी फैमिली के गढ़ पर कब्जे को लेकर पूरी ताकत लगा दी। सीएम योगी खुद चुनाव की बागडोर अपने हाथों में सभाली। कई जनसभाएं की। बीजेपी के कार्यकर्ताओं की फौज उतार दी। लेकिन नसीम घबराई नहीं। वह निडर योद्धा के साथ डटी रहीं और सीएम योगी के करीबी नेता को हराकर विधायक चुनी गई।
विधायक चुने जानें के बाद नसीम पहली बार विधानसभा जाती हैं। सिर पर लाल टोपी होती है और साथ में सपा के कार्यकर्ता होते हैं।विधानसभा सत्र के दौरान नसीन सोलंकी ने पहली बार बोलना शुरू किया तो वो कई बार हिचकिचाईं लेकिन रुकी नहीं। उन्होंने शायरी के जरिए शुरूआत की। सोलंकी ने कहा, जिनके हौसले सच्चे होते हैं, वो कैद में भी मुकद्दर लिखते हैं। तूफानों से कह दो औकात में रहें, हम परिंदे नहीं जो घरों में कैद हो जाएं। जिस पर सदन में जमकर तालियां बजीं। सोलंकी ने खुलकर अपने विधानसभा क्षेत्र की समस्याएं रखीं। सपा विधायक ने पति इरफान सोलंकी के 27 माह से जेल में बंद होने का मुद्दा भी उठाया। नसीम सोलंकी बताती हैं कि उनके ससुर साहब मुलायम सिंह यादव को अपना गुरू मानते थे। नेता जी से ही उन्होंने सियासत का ककहरा पढ़ा। पति इरफान सोलंकी भी नेता जी के दीवाने थे। समाजवाद की किताबों से उन्हें बहुत रूचि थी।
नसीम सोलंकी ने कहा कि जिस तरह से सपा प्रमुख पार्टी में महिलाओं को आगे कर रहे हैं, वह काबिलेतारीफ है। नसीम सोलंकी ने कहा कि इकरा हुसैन के साथ भी जुल्म हुए। उनके विधायक भाई को जेल भेजा गया। पर इकरा डरी नहीं। सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ आवाज उठाई। कुछ ऐसी ही कहानी सांसद अफजाल अंसारी की बेटी नुसरत की है। उन्होंने भी चुनाव के वक्त अपने पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रचार किया। अफजाल अंसारी सांसद चुने गए। नसीम सोलंकी के पति इरफान सोलंकी पर डेढ़ दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं। इरफान सोलंकी दिसंबर 2022 से जेल में बंद है। दिसंबर 2022 में ही उन्हें कानपुर जिला जेल से महाराजपुर जेल ट्रांसफर कर दिया गया था। नसीम घर, जनता के साथ ही पति इरफान सोलंकी को जेल से बाहर लाने की पैरवी कर रही हैं। फिलहाल इरफान को कई मामलों में जमानत मिल चुकी है। नसीम कहती हैं कि उन्हें कोर्ट पर पूरा भरोसा है। इरफान सभी मामलों से रिहा होंगे।
इरफान सोलंकी राजस्थान के अजमेर में 5 जून 1979 को हाजी मुश्ताक सोलंकी के घर जन्मे। राजनीति इरफान को विरासत में मिली है। उनके पिता मुश्ताक सोलंकी मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी रहे हैं। अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए इरफान सोलंकी ने पहली बार साल 2007 में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में आर्यनगर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा। वह इस चुनाव में सपा को जीत दिलाने में सफल रहे। इसके बाद साल 2012 में और 2017 की मोदी लहर में भी इरफान सोलंकी को कोई हरा नहीं पाया। 2022 में लगातार तीसरी बार इफरान विधायक चुने गए थे। इरफान सोलंकी की वर्ष 2003 में नसीम सोलंकी के साथ शादी हुई थी। इससे उन्हें एक बेटा और दो बेटियां हैं। पेशे से कारोबारी इरफान सोलंकी का अपने लेदर का कारखाना है। इरफान सोलंकी को दिसंबर 2022 में एक महिला प्रॉपर्टी विवाद में आगजनी के मामले में जेल भेजा गया था।