Russia-Ukraine: रूस और टर्की के बीच एक डील हुई है जिसमें ये तय हुआ है. अगर पुतिन टर्की को सीरिया में मदद करते है तो टर्की अपने सैनिकों को यूक्रेन और फिनलैंड में तबाही के लिए भेज देगा. इतना ही नहीं यूक्रेन को भेजे जाने वाले सारे हथियारों की मदद को रोक देगा. यानी टर्की ने ऐसा दांव खेल दिया है. जिससे नाटो में खलबली मची हुई हैं .
दरअसल टर्की अमेरिका का सताया हुआ है जिसकी वजह से साल 2019 में नाटो देशों ने हथियार देने से मना कर दिया था.उस वक्त नाटो के साथ फिनलैंड और स्वीडन भी मिल गए थे. तब सीरिया में कुर्दों से लड़ने के लिए रूस आगे आया था.तभी से टर्की और रूस की दोस्ती मजबूत हुई है. अब टर्की उस मदद का एहसान चुकाना चाहता है.
टर्की अकेला ऐसा देश है.. जो नाटो सदस्य होते हुए भी फिनलैंड -स्वीडन की मुखालफत कर रहा है.. ये सीधे तौर पर अमेरिका को चैंलेंज हैं.
क्योंकि फिनलैंड और स्वीडन के खिलाफ वीटो करके टर्की सीधे तौर पर रूस की मदद कर रहा है.. जाहिर है.. ऐसे में टर्की को अमेरिका का गुस्सा झेलना पड़ सकता है.. लेकिन टर्की के प्रेसिडेंट आने वाले वक्त के लिए तैयार हैं
और धीरे-धीरे यूरोप एक ऐसे युद्ध की तरफ बढ़ रहा है.. जो कोल्ड वॉर में भी बदल सकता है.. और तीसरे विश्वयुद्ध में भी.. यूक्रेन की वजह से शुरु हुए युद्ध से अब गोलबंदी तेजी से होने लगी है.. जहां नाटो देश एक साथ हैं.. वहीं रूस के मित्र देश जुड़ रहे हैं.. जिसमें टर्की का नाटो से टूटना एक बड़ी बात है.
टर्की ने रूस से सीधे कहा है. अगर वो सीरिया में कुर्द लड़ाकों के खिलाफ मदद करेगा.. तो वो ब्लैक सी में नाटो से लड़ने में मदद करेगा. हांलाकि जंग सीधे तौर पर नहीं होगी.लेकिन ब्लैक सी में बिजनेस रूट तैयार करने में टर्की मदद करेगा. साथ ही स्नेक आइलैंड पर कब्जा बनाए रखने में भी टर्की काफी काम आने वाला है)
रूस से टर्की की दोस्ती के पीछे दो बड़ी वजहे हैं.एक तरफ टर्की रूस के साथ मिलकर अमेरिका का वर्चस्व खाड़ी देशों में खत्म करना चाहता है.दूसरी तरफ टर्की के प्रेसिडेंट अपने खलीफा बनने के ख्वाब को पूरा करना चाहते हैं.ऐसे में सिर्फ रूस ही काम आ सकता है क्योंकि दोनों का दुश्मन एक है.
(BY: VANSHIKA SINGH)