औरैया में बीहड़ का नाम आते ही दुर्दांत डाकुओं की कहानियां सामने आ जाती है। इस कारण यहां पंचनद यानी कि पांच नदियों का संगम का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व मानों दबन सा हो गया है। बीहड़ दुर्दांत डाकुओं और जंगली जानवरों के खौफनाक किस्से और कहानियों से बदनाम है। लेकिन इसकी खूबसूरत वादियों ने मानव जीवन को बहुमूल्य औषधियों और जड़ी बूटियों के साथ स्वास्थ्य वर्धक सब्जियां भी दी हैं। बिहड़ी क्षेत्र में होने वाली स्वास्थ्य वर्धक सब्जियां सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है।
बीहड़ की ये सब्जियां दे रही जीवनदान
बता दें कि यमुना, चम्बल, सिंध, पहुज और क्वारी पांच नदियों के संगम तट की तलहटी में सैकड़ों किलोमीटर की परिधि में फैले घनघोर जंगलों में वर्षा ऋतु के आने के बाद से प्राकृतिक रूप से उगी वनस्पतियों में तमाम असाध्य रोगों को दूर करने वाली जड़ी बूटियां उगती हैं।
पत्थरचट्टा, सनेहिया, हड़जोड़, गोखरू, इनोरा, बांझ ककोड़ा जैसी असंख जड़ी बूटियां आपचार के लिए सहायक हैं। वहीं सब्जियों के रूप में ककोड़ा, वन करेला, पैंतिया, बिसरौंतिया, गरजें आदि खानपान में इस्तेमाल होने वाली तमाम सब्जियां भी आम जीवन को अपनी महत्ता से परिचित कराती हैं।
सूत्रों के मुताबिक ऋषि मुनियों की तपोभूमि पर भले ही दुःख, दुत्कार और मुफलिसी का कलंक रहा हो परंतु प्रकृति ने यहां नगरीय जीवन की तुलना में बेहतर संसाधन दिए हैं। जिनका सदुपयोग कर जीवन को दीर्घायु बनाने की पाठशाला शायद ही कही हो।
कैंसर के इलाज में सहायक है ये औषधी
इसी बीच आयुर्वेद के क्षेत्र में शोध कर रहे वरिष्ठ चिकित्सक और कुष्ठ रोग विशेषज्ञ डॉ मनोज मिश्रा का दावा है कि मानसून जाने के उपरांत फैलने वाले तमाम रोगों से अगर बचना हैं तो लोगों को अपनी रसोई में जंगली सब्जियों का प्रयोग कर उनके औषधीय गुणों से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। शुगर लेवल को मैनेज करने में वन करेला, कैंसर जैसी घातक बीमारी को रोकने में सहायक पैंतिया और जमीन से निकलने वाली गरजें जिन्हें जंगली मशरूम भी कहा जाता है। इसका नियमित सेवन करने से इन रोगों से बचा जा सकता है। वहीं बीहड़ के लोगों का खानपान भले ही जंगली माना जाता है लेकिन शहर की तुलना में इनकी शारीरिक तंदुरुस्ती और ताकत गुणवत्ता बेहतर होती है।
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