लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी के लिहाज से दो बड़ी बातें हुई हैं। पहली निकाय चुनाव में जबदरस्त जीत और दूसरी कर्नाटक चुनाव में बीजेपी की करारी हार। मगर यूपी के लिहाज से देखें तो बीजेपी का जो प्रदर्शन दिखता है उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ योगी आदित्यनाथ हैं। जबकि जहां जहां मामला बिगड़ा है उसकी वजह वहां के मंत्री, विधायक औऱ सांसद हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि संगठन ने जो जिम्मेदारी सौंपी थी उसमें योगी आदित्यनाथ के जिम्मे नगर निगम था।
जहां योगी ने अपने तूफानी दौरों से 100 % स्ट्राइक रेट के साथ विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया। लेकिन जिन मंत्रियों विधायकों सांसदों को जिम्मेदारी मिली थी उनकी मिट्टी पलीद हो गई। अकेले मेरठ और सहारनपुर मंडलों की बात करें तो यहां की नगर पालिका और नगर पंचायत की 90 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ 26 सीटें हाथ लगीं जबकि इन दोनों मंडलों से दो केन्द्रीय मंत्री और 6 यूपी सरकार के मंत्री आते हैं।
इतने गैर जिम्मेदार क्यों हो गए माननीय?
साल 2014 के बाद से ही देश में जिस तरह का माहौल बना है उसने कई सारे माननीयों के मन में ये वहम भर दिया है कि मोदी-योगी के होते हुए उनकी सीट अजर अमर हो चुकी है। शायद यही वजह है कि क्षेत्र में उनकी कम सक्रियता औऱ जनता से दूरी उनके खिलाफ माहौल बना रही है। सूत्रों की मानें तो करीब 60 प्रतिशत सांसद ऐसे हैं जिनके प्रति क्षेत्र में नाराजगी है। ऐसे सांसदों का हिसाब किताब ठीक करने की तैयारी शुरु हो गई है।
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी आलाकमान ऐसे नकारा सांसदों का सर्वे करा रहा है, और सर्वे रिपोर्ट के आधार पर बड़े पैमाने पर टिकट काटने की भी तैयारी है। प्रदेश में ऐसे कई मंत्री, विधायक, सांसद ऐसे रहे जो अपने दम पर नगरपालिका, नगर पंचायत तो क्या सभासद भी नहीं जिता पाए। यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्या और नन्दगोपाल नन्दी के वॉर्ड में ही बीजेपी उम्मीदवार हार गए। वहीं पहलवानों के विवाद में फंसे गोण्डा के सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के जिले में दोनों नगरपालिकाएं भी बीजेपी हार गई। इन नतीजों से बीजेपी नेतृत्व चिन्तित है और इसीलिए बड़े पैमाने पर सर्जरी की तैयारी है।
योगी की आड़ में छिपकर नाकामी छिपा रहे मंत्री
निकाय चुनाव में 18 मंत्रियों की ड्यूटी अलग अलग नगर निगमों में लगाई गई थी। जो सारे नगर निगम बीजेपी ने जीत लिए। अब इस जीत का सेहरा ये मंत्री खुद के सिर पर बांधने का प्रयास भले करें लेकिन सच ये है कि अगर नगर निगमों में बंपर जीत मिली है तो उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। क्योंकि इन मंत्रियों के खुद के क्षेत्र में देखें तो इनकी हालत पतली ही नजर आती है। उदाहरण के लिए कैबिनेट मंत्री सूर्यप्रताप शाही को अयोध्या नगर निगम का प्रभार दिया गया था जो बीजेपी की झोली में आ गिरी, लेकिन सूर्यप्रताप शाही के अपने निर्वाचन क्षेत्र पथरदेवा नगर पंचायत में बीजेपी को करारी शिकस्त मिली।
मंत्री धर्मपाल सिंह जो बरेली जिले से आते हैं, वहां नगर निगम में तो बीजेपी जीत गई लेकिन आंवला नगरपालिका धर्मपाल सिंह नहीं जिता पाए। अलीगढ़ जिले का भी यही हाल है, जहां नगर निगम की सीट तो बीजेपी को मिली लेकिन दो नगरपालिकाएं मंत्री संदीप सिंह जो पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह के पोते हैं, नहीं बचा पाए। यही हाल मंत्री एके शर्मा का भी है, जिनके गृहजनपद मऊ की सीट बीएसपी के हाथों बीजेपी हार गई। कन्नौज से असीम अरुण, रामपुर से बलदेव औलख, संभल से गुलाब देवी, रायबरेली से दिनेश प्रताप सिंह और हरदोई से नितिन अग्रवाल का भी रिकॉर्ड इन चुनावों में बिगड़ गया।
कमल का फूल अब जीत की गारंटी नहीं ?
कर्नाटक के नतीजों और नगर निकाय में हैवीवेट मंत्रियों के खराब प्रदर्शन ने अब ये भ्रम खत्म कर दिया है कि जीत की गारन्टी कमल का फूल है। बीजेपी आलाकमान भी अब इस बात को अच्छी तरह समझ रहा है, लिहाजा बड़े पैमाने पर संगठन में फेरबदल की भी तैयारी है। सूत्रों के मुताबिक निकाय चुनाव में 75 प्रतिशत से कम स्ट्राइक रेट वाले सांसदों का टिकट कटना तय है। इतना ही नहीं खबर ये भी है कि केन्द्रीय मंत्रिमण्डल विस्तार के बाद यूपी मंत्रिमण्डल में भी बड़े फेरबदल हो सकते हैं।
सूत्रों की मानें तो दर्जन भर मंत्रियों पर संगठन की नजर टेढ़ी है, जिनका प्रदर्शन खराब रहा है। ये सच है कि बीजेपी लगातार जीत पर जीत हासिल कर रही है मगर इसकी वजह सिर्फ योगी मोदी ही हैं। लेकिन चुनावी सियासत में सिर्फ इतने से काम नहीं चलने वाला। कर्नाटक इसका ताजा उदाहरण है। ऐसे में बीजेपी के नकारा नेताओं के लिए आने वाले दिन मुश्किल होने वाले हैं ये बात लगभग तय है।