1990 में कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर घाटी से पलायन किया था..अब उस घटना को 32 साल हो गए हैं..1990 में कश्मीर में हुई टारगेट किलिंग के बाद करीब 20 हजार कश्मीरी पंडित घाटी से पलायन करने के बाद दिल्ली में आकर बस गए थे..
लेकिन अब वही पंडित दिल्ली सरकार के खिलाफ कोर्ट में जाना चाहते हैं..ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने फैसला लेने की सोची..दरअसल कश्मीरी पंडित दिल्ली सरकार से बाइफरकेशन लागू करने की मांग कर रहे हैं..बाइफरकेशन का मतलब है विभाजन या द्विभाजन यानी किसी भाग को अलग भाग में बांटना..

आपको बता दें उनके दस्तावेजों में उनके बच्चों को शामिल नहीं किया गया है..कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि उनके दस्तावेजों को विभाजित कर उनके बच्चों को भी इसमें शामिल किया जाए..
कश्मीरी पंडितों का कहना कि 3 साल पहले ही दिल्ली हाई कोर्ट ने आदेश जारी कर दिया था लेकिन इसके बाद भी दिल्ली सरकार ने बाइफरकेशन को मंजूरी नहीं दी है..इसलिए उन्होंने फिर से दिल्ली हाई कोर्ट के दरवाजें खटखटाने की सोची है..
कश्मीरी पंडितों को सरकार की तरफ से आर्थिक सहायता दी जाती है..ये परिवार अपनी मर्जी से आर्थिक सहायता छोड़ तो सकते हैं..लेकिन परिवार के किसी भी सदस्य का नाम इसमें जोड़ नहीं सकते हैं..वो चाहते हैं कि इन दस्तावेजों में पूरे परिवार के सदस्यों के नाम जोड़ने की सुविधा मिलनी चाहिए..
कश्मीरी पंडितों को मिलने वाली आर्थिक सहायता

जब कश्मीरी पंडित दिल्ली आए तो उस समय सरकार 4 सदस्यों वाले परिवार को 250 रु की आर्थिक मदद, 9 किलो चावल, 2 किलो गेंहू और 1 किलो चीनी देती थी..
32 साल बाद आज दिल्ली में सिर्फ 2 हजार कश्मीरी पंडितों के परिवार को इसका लाभ मिल रहा है..कुछ परिवारों ने खुद ही आर्थिक मदद लेना बंद कर दिया तो कुछ परिवारों में बुजुर्गों के निधन हो गए..और दस्तावेजों में बच्चों का नाम जुड़ नहीं पाया..
1990 में कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर घाटी से पलायन किया था..अब उस घटना को 32 साल हो गए हैं..1990 में कश्मीर में हुई टारगेट किलिंग के बाद करीब 20 हजार कश्मीरी पंडित घाटी से पलायन करने के बाद दिल्ली में आकर बस गए थे..

लेकिन अब वही पंडित दिल्ली सरकार के खिलाफ कोर्ट में जाना चाहते हैं..ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने फैसला लेने की सोची..दरअसल कश्मीरी पंडित दिल्ली सरकार से बाइफरकेशन लागू करने की मांग कर रहे हैं..बाइफरकेशन का मतलब है विभाजन या द्विभाजन यानी किसी भाग को अलग भाग में बांटना..
आपको बता दें उनके दस्तावेजों में उनके बच्चों को शामिल नहीं किया गया है..कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि उनके दस्तावेजों को विभाजित कर उनके बच्चों को भी इसमें शामिल किया जाए..
कश्मीरी पंडितों का कहना कि 3 साल पहले ही दिल्ली हाई कोर्ट ने आदेश जारी कर दिया था लेकिन इसके बाद भी दिल्ली सरकार ने बाइफरकेशन को मंजूरी नहीं दी है..इसलिए उन्होंने फिर से दिल्ली हाई कोर्ट के दरवाजें खटखटाने की सोची है..

कश्मीरी पंडितों को सरकार की तरफ से आर्थिक सहायता दी जाती है..ये परिवार अपनी मर्जी से आर्थिक सहायता छोड़ तो सकते हैं..लेकिन परिवार के किसी भी सदस्य का नाम इसमें जोड़ नहीं सकते हैं..वो चाहते हैं कि इन दस्तावेजों में पूरे परिवार के सदस्यों के नाम जोड़ने की सुविधा मिलनी चाहिए..
जब कश्मीरी पंडित दिल्ली आए तो उस समय सरकार 4 सदस्यों वाले परिवार को 250 रु की आर्थिक मदद, 9 किलो चावल, 2 किलो गेंहू और 1 किलो चीनी देती थी..
32 साल बाद आज दिल्ली में सिर्फ 2 हजार कश्मीरी पंडितों के परिवार को इसका लाभ मिल रहा है..कुछ परिवारों ने खुद ही आर्थिक मदद लेना बंद कर दिया तो कुछ परिवारों में बुजुर्गों के निधन हो गए..और दस्तावेजों में बच्चों का नाम जुड़ नहीं पाया..