लखनऊ: साल 1991 में 10 सिखों को बस से उतरवाकर पुलिस ने पीलीभीत जिले में फर्जी एनकाउंटर किया था. इस मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 31 साल बाद फैसला सुनाया है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने 43 पुलिसकर्मियों को दोषी करार देते हुए 7 कड़ी सजा सुनाई है. इसके अलावा उनपर 10-10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगा दिया है. लखनऊ बेंच के जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की डबल बेंच ने 43 पुलिसकर्मियों को यह सजा सुनाई है.
दरअसल 31 साल पुराने मामले के रिपोर्ट्स के अनुसार, साल 1991 में 12 जुलाई को तीर्थयात्रियों को लेकर एक बस पीलीभीत के कछला घाट के पास जा रही थी. तभी पुलिसकर्मियों ने 11 सिखों को उतार कर अपनी बस में बिठा लिया था. इनमें से दस सिखों के शव मिले थे, जबकि शाहजहांपुर के तलविंदर सिंह का अभी तक कुछ पता नहीं चल सका है. खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के आतंकवादी कहकर बस से उतारे गए सभी 10 सिख तीर्थयात्रियों को एक कथित एनकाउंटर में मार दिया गया था.
मामले को लेकर CBI ने दायर की थी चार्जशीट
जानकारी के मुताबिक, पूरनपुर, न्यूरिया और बिलसंडा पुलिस स्टेशन में तीन अलग-अलग मामले दर्ज किए गए थे. इनकी जांच के बाद पुलिस ने इन मामलों में फाइल रिपोर्ट लगा दी थी. हालांकि इस मामले को लेकर एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 1992 को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. मामले की जांच के बाद सीबीआई ने सबूतों के आधार पर 57 पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. कोर्ट ने इस मामले में 47 को दोषी ठहराया था, जबकि 2016 तक 10 की मौत हो चुकी थी.
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