कच्चे तेल के दाम गिरने के चलते देश में पेट्रोल- डीजल की कीमतों में 14 रुपए तक की कमी आ सकती है। बता दें कि ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल के भाव में बड़ी गिरावट आने की वजह से यह कयास लगाए जा रहे है। दरअसल, ग्लोबल मार्केट में ब्रेंट क्रूड का भाव गिरकर जनवरी के स्तार पर आ गया है। अभी यह 85 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ट्रेड कर रहा है, जबकि डब्लयूटीआई 78 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है। पिछले कुछ समय में यह 81 डॉलर तक पहुंच गई थी। साल की शुरुआत में जहां कच्चे तेल के भाव 150 डॉलर तक चले गएते, वहीं अब इसमें 50 फीसदी तक गिरावट आ चुकी है।
कमोडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया का कहना है कि जब क्रूड मे 1 डॉलर की कमी आती है तो देश की रिफाइनरी कंपनीयों को प्रति लीटर तेल पर 45 पैसे की बचत होती हैं। इस लिहाज से कच्चे तेल की कीमतों में लगातार जारी नरमी से सरकारी रिफाइनरी कंपनीयों का घाटा भी अब तक पूरा हो चुका है। लिहाजा इस बात की कीमतों में लगातार जारी नरमी से सरकारी रिफाइनरी कंपनियों का घाटा भी अब तक पूरा हो चुका है। लिहाजा इस बात की संभावना बढ़ गई है कि अब पेट्रोल- डीजल के रेट में भी कटौती हो। अक्सपर्ट का कहना है कि यह कटौती कितनी बड़ी होगी नहीं कह सकते, लेकिन इसमें करीब 10 से 15 फीसदी की गिरावट आ सकती है।यानी पेट्रोल- डीजल करीब 10 से 15 रुपए प्रति लीटर सस्ता हो सकता है।
हालांकि, तेल में एकसाथ इतनी बड़ी कटौती नहीं की जा सकती है, लेकिन पहले की तरह सिसिलेवार ढंग से इसके रेट नीचे आ सकते है। कच्चे तेल के भाव में गिरावट की चार सबसे बड़ी वजह हैं।
कच्चे तेल की कीमत
- रुपए के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की कीमत
- केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वसूले जाने वाला टैक्स
- देश में फ्यूल की मांग
भारत अपनी जरूरत का 85% कच्चा तेल करता है आयात
हम अपनी जरूरत का 85% से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से खरीदते हैं। इसकी कीमत हमें डॉलर में चुकानी होती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने और डॉलर के मजबूत होने से पेट्रोल -डीजल ममहंगे होने लगते है। कच्चा तेल बैरल में आता है। एक बैरल यानी 159 लीटर कच्चा तेल होता है।
भारत में कैसे तय होती हैं पेट्रोल-डीजल की कीमतें?
जून 2010 तक सरकार पेट्रोल की कीमत निर्धारित करती थी और हर 15 दिन में इसे बदला जाता था। 26 जून 2010 के बाद सरकार ने पेट्रोल की कीमतोें का निर्धारण ऑयल कंपनियों के ऊपर छोड़ दिया। इसी तरह अक्टूबर 2014 तक डीजल की कीमत भी सरकार निर्धारित करती थी।
19 अक्टूबर 2014 से सरकार ने ये काम भी ऑयल कंपनियों को सौंप दिया। अभी ऑयल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, टैक्स, पेट्रोल-डीजल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च और बाकी कई चीजों को ध्यान में रखते हुए रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करती हैं।