नई दिल्ली। यूक्रेन-रुस के युद्ध से इन दिनों यूक्रेन के हालात बहुत ही खराब हो चुके हैं। वहां मौजूद भारतीय लोगों के अलावा और भी छात्र-छात्राओं को पल-पल जिंदगी और मौत का भय सता रहा है। हालांकि इन सबके बीच उन्हें तिरंगे का सम्मान और उसकी ताकत भी देखने को मिली। यूक्रेन के डेनप्रो से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद एमडी में प्रवेश को तैयारी कर रहे अजीतमल क्षेत्र के गांव मनसुखपुर निवासी पुष्पेंद्र राठौर ने वीडियो काल के माध्यम से बात करते हुए बताया कि 24 फरवरी को रुस ने बम व मिसाइलें गिरानी शुरू की थीं। इस बीच नहीं पता था कि हालात इतने खराब हो जाएंगे। क्योंकि जहां बमबारी हो रही थी, वह स्थान उनसे लगभग छह सौ किलोमीटर दूर था। इसी बीच भारत सरकार की ओर से एडवाइजरी जारी की गई। जिसमें सभी से वापस आने को कहा गया।
पुष्पेंद्र बताते हैं कि वह सोमवार को यूक्रेन से बस के माध्यम से रोमानियां बार्डर पर पहुंचे थे। बताया कि बस में लगभग 50 छात्र-छात्राएं थीं। जिसमें उनके साथ पढऩे वाले 10 छात्र-छात्राएं साउथ अफ्रीका के थे। जिनको सबसे पीछे बिठा दिया था। डेनप्रो शहर से रोमानियां बार्डर आने तक बीच में बस की चेकिंग भी की गई। इस दौरान बस में पीछे बैठे साउथ अफ्रीका के छात्र-छात्राएं थोड़ी सहम गए। क्योंकि रुस के सैनिकों को केवल भारतीय लोगों के ही बस में होने की जानकारी दी गई थी। इस बीच उन्होंने बस में आगे की सीटों पर बैठे लोगों के चेक किया। हालांकि बस में तिरंगा झंडा लगा था। इसलिए रुसी सैनिकों ने भी बहुत ज्यादा चेकिंग नहीं की। जिसके चलते वह भी हमारे साथ सुरक्षित वापस अपने वतन को लौट सके।
वहीं पुत्र के यूक्रेन में विषम परिस्थितियों में होने पर मां मुन्नी देवी की आंखों से बहते आंसू
आदमी तो दिलदार होता है पर मां को तसल्ली नहीं होती है. कलेजे के टुकड़े को तीन साल से सामने देखने को बेबस मां मुन्नी देवी राठौर से जब पुत्र के यूक्रेन में युद्ध के हालातों के बीच भारत वापस आने में आ रही परेशानी पर बात की तो उनकी आंखों से आसू छलक आए। कहा कि आदमी तो दिलदार होता है लेकिन मां क्या करे। जब तक पास में नहीं आ जाते तो दिमाग में उलझन ही बनी हुई है। खाना खाने का भी मन नहीं करता, रात-रात भर नींद नहीं पड़ती है। आदमी तो दिलदार होता है उसे तसल्ली हो जाती है। पर मां को तसल्ली नहीं होती। आखिर करें तो क्या करें, अपने बच्चे के साथ-साथ वहां मौजूद अन्य बच्चों के उनके वतन सुरक्षित पहुंचने को ऊपर वाले से ही अरदास कर रहे हैं।
पुष्पेंद्र के पिता सुरेंद्र बाबू राठौर बताते हैं कि वह खेती करते हैं। उनका पुत्र यूक्रेन में एमबीबीएस करने गया था। जहां पढ़ाई के चलते पिछले तीन साल से घर नहीं लौट सका। उसकी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी हो चुकी है। अब वह एमडी में प्रवेश लेने की तैयार कर ही रहा था। कि तभी यूक्रेन-रुस का युद्ध छिडऩे के कारण फिलहाल प्रवेश नहीं लिया है। बताते हैं उनके तीन पुत्र हैं। जिसमें पुष्पेंद्र सबसे छोटा पुत्र है। उनके दो अन्य पुत्र मुंबई व दिल्ली में व्यापार करते हैं। कहा कि उनका पुत्र रोमानियां पहुंच गया है। जहां से आज या कल उसको भारत के लिए फ्लाइट मिलने की उम्मीद है। हम सभी उसके आने की राह देख रहे हैं।