चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त (EC) की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है। दरअसल कोर्ट ने सीबीआई चीफ की तर्ज पर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक कमेटी बनाई जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शामिल हों। ये कमेटी राष्ट्रपति से एक नाम की सिफारिश करे। राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की जाए। वहीं कोर्ट ने कहा कि अगर कमेटी में लोकसभा में विपक्ष के नेता नहीं हैं, तो फिर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को इसमें शामिल करें।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान लिया, जिनमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसे सिस्टम बनाने की मांग की गई थी। ये फैसला जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने दिया है। बेंच ने मामले पर पिछले साल 24 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जानें पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका दायर में मांग की गई थी कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसा सिस्टम होना चाहिए।
बता दें कि कॉलेजियम सिस्टम जजों की नियुक्ति के लिए होता है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज, जजों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार को नाम भेजते हैं। सरकार की सहमति मिलने के बाद जजों की नियुक्ति की जाती है।
याचिकाकर्ता अनूप बरांवल ने चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में कॉलेजियम जैसे सिस्टम की मांग की थी। 23 अक्टूबर 2018 को मामले को 5 जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेज गया था।
अरुण गोयल की नियुक्ति पर क्यों हुआ था बवाल
पिछले साल 19 नवंबर को केंद्र सरकार द्वारा पंजाब कैडर के आईएएस अफसर अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त करने पर विवाद हुआ था। क्योंकि वह 31 दिसंबर 2022 को रिटायर होने वाले थे। 18 नवंबर को वीआरएस दिया गया और अगले ही दिन उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया।
इस पर सुप्रीम कोर्ट में सीनियरस एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जिन्हें चुनाव आयुक्त बनाया गया है, वह एक दिन पहले तक केंद्र में सचिव स्तर के अधिकारी थे। अचानक उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठे कि इस नियुक्त में कोई गड़बड़झाला तो नहीं हुआ है।
कोर्ट ने 18 नवंबर को सुनवाई शुरू की। उसी दिन फाइल आगे बढ़ गई और क्लियरेंस भी मिल गया। उसी दिन आवेदन भी आ गया और नियुक्ति भी हो गई। फाइल 24 घंटे भी नहीं घूमी उसे बिजली की गति से क्लियर कर दिया गया।
इन सारे सवालों पर केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने कहा था कि सबकुछ 1991 के कानून के तहत हुआ है। अभी फिलहाल ऐसा कोई ट्रिगर पॉइंट नहीं है जहां कोर्ट को दखल देने की जरूरत पड़े। 1991 के कानून के अनुसार
क्या है चुनाव आयोग का ढांचा?
1991 के चुनाव आयोग के कानून के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 साल या फिर 65 साल की उम्र तक होता है।
आजादी के बाद सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करता था। अक्टूबर 1989 में राजीव गांधी की सरकार ने इस कानून में संशोधन किया। जिसके तहत चुनाव आयोग में दो चुनाव आयुक्त के पद बनाए गए।
लेकिन 1990 में वीपी सिंह की सरकार ने चुनाव आयोग को फिर से सिंगल मेंबर बॉडी बना दिया। फिर तीन साल बाद 1993 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में आयोग में दोबारा दो चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को मंजूरी दे दी।
फिलहाल, चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त सहित तीन सदस्य होते हैं। इस समय मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं और अनुप चंद्र पांडे और अरुण गोयल चुनाव आयुक्त के पद पर हैं।
आगे चलकर चुनाव आयुक्त में से ही कोई एक मुख्य चुनाव आयुक्त बनता है। मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का कार्यकाल फरवरी 2025 तक है। उनके बाद अरुण गोयल मुख्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं।
अब तक कैसे होती थी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति?
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने बताया कि मौजूदा सिस्टम लंबे समय से काम कर रहा है। आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सचिव स्तर के सर्विंग और रिटायर अफसरों की लिस्ट तैयार की जाती हैं। इन नामों का एक पैनल बनता है। जिसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। जहां प्रधानमंत्री किसी एक नाम की सिफारिश करते हैं। फिर राष्ट्रपति की मंजूरी ली जाती है।
आगे चलकर चुनाव आयुक्त ही मुख्य चुनाव आयुक्त बनते हैं। जब मुख्य चुनाव आयुक्त रिटायर हो रहे हैं, तो दोनों चुनाव आयुक्तों में से देखा जाएगा कि कौन वरिष्ठ है। जो दोनों चुनाव आयुक्तों में सबसे वरिष्ठ होगा, उसे को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जाता है।