देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं ठीक उससे पहले सभी विपक्षी पार्टियां भाजपा को घेरने की रणनीति में लग गई हैं. जहां एक ओर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी लगातार विपक्षी एकता की बात कर रही है तो वहीं कांग्रेस इस विपक्षी एकता का नेतृत्व करने का सपना देख रही है पर असल में क्या कुछ होगा यह अगले कुछ दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। अभी विपक्षी एकता में राष्ट्रीय लोक दल काफी अहम भूमिका निभा रहा है।
मजबूत साथी की तलाश में है राष्ट्रीय लोक दल
जहां एक ओर 2022 विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल ने समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ा था तो वही 2024 लोक सभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय लोक दल किसी मजबूत साथी की तलाश में है ऐसे में यह कहा जा सकता है कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता का एक मजबूत पहलू बनके राष्ट्रीय लोकदल उभर रही है।
जिस तरह से देखा गया कि उत्तर प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी और आरएलडी ने एक साथ चुनाव लड़ने का ऐलान किया लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता गया वैसे वैसे दूरियां भी बढ़ती गई पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई ऐसी सीटें थी जहां से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी निकाय चुनाव में ताल ठोक रहे थे तो वहीं पर दूसरी ओर आरएलडी ने भी अपना प्रत्याशी उतार दिया अब ऐसे में सवाल जरूर खड़ा हो रहा है कि क्या समाजवादी पार्टी व आरएलडी का गठबंधन लोकसभा चुनाव तक कामयाब रहेगा।
वही अंदर खाने में आरएलडी कहीं ना कहीं कांग्रेस से अपनी नजदीकियां बढ़ाने में लगी हुई है क्योंकि आरएलडी को पता है कि 2022 विधानसभा चुनाव में 33 सीटों पर प्रत्याशी उतारकर सिर्फ 8 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई जबकि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी आरएलडी को ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं है। ऐसे में अगर आरएलडी कांग्रेस के साथ जाती है तो निश्चित ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग 15 सीटों पर अपना दावा ठोक सकती है और कांग्रेस इसमें कुछ कम ज्यादा करके अपनी रजामंदी भी दे सकती है। हालांकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी लगातार जमीन पर काम कर रही है साथ ही समरसता अभियान चलाकर भाजपा के तमाम धुर विरोधियों को एक साथ लाने में जुटी हुई है।
वही राष्ट्रीय लोकदल की नजर से बसपा भी दूर नहीं है उत्तर प्रदेश की राजनीति में खास तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी को बिना साथ लाए किसी भी विपक्षी पार्टी के लिए चुनावी सफर आसान नहीं होगा क्योंकि विपक्षी पार्टियों को पता है कि अगर आपसी मनमुटाव होता है तो भारतीय जनता पार्टी आरएलडी को अपने साथ लाने में जरा भी देर नहीं लगाएगी। क्योंकि भाजपा को अच्छे से पता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अगर आरएलडी उसके साथ आती है तो भाजपा के जीतने का प्रतिशत बढ़ जाएगा।
वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने साफ संदेश दे दिया है कि छोटी पार्टियां भी उसके लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जिस तरीके से पूर्वी उत्तर प्रदेश में निषाद पार्टी को तवज्जो मिल रही वही दूसरी ओर ओमप्रकाश राजभर से भी भाजपा के नेता लगातार मुलाकात कर रहे हैं तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी क्यों नहीं साथ आ सकती.. अब यही कहा जा सकता है कि पश्चिमी उत्तर में विपक्ष की नैया बिना आरएलडी के पार नहीं होने वाली।