बीजेपी ने गुजरात में पिछले 6 दशको में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। वहीं बीजेपी ने किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी का रिकॉर्ड बनाया है। साथ ही गुजरात में बीजेपी की जीत के बाद 14 महीने पहले पार्टी द्वारा लिए गए साहसिक फैसले और बदलाव की चर्चा हर तरफ हो रही है। जिसकी गूंज राजस्थान के सियासी गलियारों तक पहुंच गई है। वहीं राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।
182 में से 103 नए चेहरों को दिया टिकट
बता दें कि बीजेपी आलाकमान ने जब भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री तो रूपाणी सरकार का एक भी मंत्री या दिग्गज को नए मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। दरअसल 27 साल से सत्ता में काबिज बीजेपी ने एंटी इनकम्बेंसी की काट के लिए सभी नए चेहरों के साथ दांव खेला। जिसके चसते बीजेपी ने इस बार 182 में से 103 नए चेहरों को टिकट दिया, जिसका नतीजा सबके सामने हैं। इसके अलाव बीजेपी ने 99 में से पांच मंत्रियों सहित कई दिग्गजों और 38 सिटिंग विधायकों के टिकट भी काटे।
सैकड़ों चेहरों को बदलने की तैयारी
मिली जानकारी के अनुसार गुजरात में भव्य जीत के बाद यही फॉर्मूला और मॉडल आने वाले वक्त में राजस्थान में भी लागू किया सकता है। इसी के सात राजनीतिक हल्कों में सुगबुगाहट तेज हो गई है। वहीं मौजूदा हालातों में राज्य में 71 में से 40 विधायकों के टिकट कटने के साथ ही 100 सीटों पर नए चेहरों को मौका मिल सकता है। हालांकि बीजेपी के सामने राजस्थान में सांगठनिक तौर पर कई चुनौतियां है।
क्या है पेज प्रमुख
वहीं 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से गुजरात बीजेपी में संगठन स्तर पर पेज प्रमुख बनाने की शुरुआत की गई। जहां हर बूथ पर वोटर लिस्ट के प्रत्येक पन्ने के लिए एक प्रमुख होता है। जो उस पन्ने में शामिल वोटर्स को पार्टी से जोड़ने के लिए काम करता है। गुजरात मॉडल में पेज प्रमुख ही वो कड़ी है जिसे जीत का मुख्य आधार बताया जा रहा है।
बता दें कि पार्टी के संगठन में कार्यकर्ताओं को बूथ कमेटी से लेकर पन्ना प्रमुख तक अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जिसमें हर एक कार्यकर्ता की वास्तविक सक्रियता बनी रहना आश्वस्त किया गया। इसके अलावा प्रदेश में लगातार बीजेपी सरकार होने के कारण बड़ी परियोजनाओ, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, इंफ्रास्ट्रक्चर की योजनाओं को चुनावों में जनता के सामने रखा गया। जिस पर गुजरात के लाल नरेंद्र मोदी की लीडरशिप ने विश्वसनीयता कायम की।
घर की लड़ाई से पार पाना बड़ी चुनौती
बता दें कि गुजरात में बीजेपी ने इस बार 182 में से 103 नए चेहरों को मौका दिया। ज्यादातर नए चेहरों को चुनाव में उतारने के बाद भी पार्टी में असंतोष या बगावत नहीं पनपने दी। लेकिन ऐसे में राजस्थान में नए चेहरों को मौका देने में खतरा हैं।
क्योंकि राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खेमे के साथ-साथ मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया गुट में भी तकरार है। हालांकि कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की खींचतान को बीजेपी मौके के रूप में जरूर देखती है लेकिन घर की लड़ाई से पार पाना बड़ी चुनौती होगी।
एक तरफ राजस्थान में गहलोत सरकार लगभग 4 साल पूरे होने पर लगातार ये दावा कर रही है कि उनकी सरकार के खिलाफ कहीं भी एंटी इंकम्बेंसी का माहौल नहीं है। वहीं राज्य में बेरोजगारी, किसानों अपराध, भ्रष्टाचार, के ऋण माफी जैसे कई बड़े मुद्दों को जनता के बीच लेकर जाना बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती साबिक होगी सकती है।