गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राज्य से बड़ी खबर सामने आई है। जानकारी के अनुसार राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड का ऐलान संभव है। माना जा रहा है कि सरकार ने इसके लिए तैयारी कर ली है। जल्द ही इसको लेकर एक कमेटी बनाई जा सकती है। इसकी कमेटी को लेकर आज ही कैबिनेट की बैठक में ऐलान हो सकता है। हालांकि इससे पहले भी यूपी और उत्तराखंड से यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की बात उठ चुकी है। फिलहाल कैबिनेट बैठक का इंतजार करना होगा किस तरह की बात इसमें रखी जाती है। क्या निर्णय लिया जाता है। हालांकि कांग्रेस और आप पार्टी ने इसका विरोध किया है।
1961 में गोवा में लागू हुआ था UCC
आपको बता दें कि मार्च 2022 में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का निर्णय लेने वाला देश का पहला राज्य है। हालांकि गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड देश में शामिल होने से पहले ही लागू हो गया था। दरअसल गोवा में पुर्तगाल सरकार ने 1961 में ही सिविल कोड लागू कर दिया था।
आप सोच रहे होगे आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड है क्या? आईए हम इस पर चर्चा करतें है।
क्या है UCC
दरअसल कानून की नजर में सब एक समान हैं। जाति, धर्म और इस बात से परे की आप पुरुष है या महिला, कानून सबके लिए एक ही है। देश में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ है। जैसे हिंदू पर्सनल लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ, ईसाई पर्सनल लॉ। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर धर्म के लिए समान कानून होगा।
उत्तराधिकार, शादी, तलाक, एडॉप्शन, विरासत और सबसे बढ़कर लैंगिक समानता ये ऐसे कारण है जिनकी वजह से यूनिफार्म सिविल कोड की आवश्यकता महसूस की जाती है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों के लिए भी समान नियम होंगे। क्योंकि किसी धर्म में पिता की संपत्ति पर बेटी का अधिकार नहीं है। किसी धर्म में बच्चा गोद नहीं ले सकते।
UCC चुनाव में इस्तेमाल होने वाला हथियार- विपक्षी पार्टियां
बीजेपी शासित कई राज्यों में UCC की मांग उठती रही है। एक और जहां भाजपा सरकार इसे लाने की बात करती है वहीं दूसरी और विपक्षी दल इसे चुनाव में इस्तेमाल होने वाले हथियार के तौर देखता हैं। बता दें कि 2014 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के घोषणा पत्र में UCC का मुद्दा भी था। लेकिन मुस्लिम समुदाय ने लगातार इसका विरोध किया।
सभी धर्मों के अलग-अलग कानून होने के कारण न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। UCC आने से वर्षों से लंबित मामलों को निपटाने में आसानी होगी। माना जा रहा है कि इससे मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में भी सुधार होगा। हर धर्म पर एक समान कानून लागू होने से राजनीति में भी बदलाव आएगा। इससे अपनी धार्मिक मान्यताओं को मानने का अधिकार नहीं छिनेगा।