2024 Elections: दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। यही वजह है कि बीजेपी ने अपना पूरा फोकस अब मिशन यूपी पर लगा दिया है। 2024 में मोदी सरकार की वापसी के लिए सबसे जरूरी है कि वो यूपी में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीते इसीलिए बीजेपी ने 2024 के लिए छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को अपने पाले में करने की रणनीति बनानी शुरू कर दी है।
जातीय राजनीति में उलझा हुआ उत्तर प्रदेश सियासी लिहाज से बेहद जटिल है, यही वजह है कि छोटे-छोटे दलों की भी उत्तर प्रदेश की सियासत में अपनी प्रासंगिकता है। इस सच्चाई को बीजेपी बखूबी जानती है। यही वजह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में जिन छोटे दलों ने बीजेपी का विरोध कर समाजवादी पार्टी का दामन पकड़ लिया था उन्हें भी बीजेपी अपने पाले में करने में जुट गई है। बीजेपी को ये पता है कि मिशन 2024 की कामयाबी के लिए जरूरी है कि समाजवादी पार्टी कमजोर हो क्योंकि उसे अच्छी तरीके से मालूम है कि 2024 में उसकी लड़ाई किसी और से नहीं समाजवादी पार्टी से होने जा रही है। यही वजह है कि बीजेपी ने विपक्ष को समर्थनविहीन, सहयोगीविहीन बनाने का मिशन शुरू किया है।
बीजेपी की कोर कमेटी में 2024 को लेकर जो रणनीति बन रही है उसमें ये तय हुआ है कि बीजेपी छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को अपने साथ मिलाकर 2024 के चुनाव में जाएगी। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से नाराज होकर उनके कई सहयोगी दल उनका साथ छोड़ चुके हैं। ऐसे में उन दलों पर बीजेपी की नजर है, इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी के बचे हुए सहयोगियों को भी बीजेपी अब तोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है। शिवपाल यादव को अखिलेश ने खुद ही अलग कर दिया है तो वहीं सुहेलदेव समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर भी अब बीजेपी में जाते दिखाई दे रहे हैं। तो वहीं अब बीजेपी की नजर आरएलडी के जयंत चौधरी पर है।
रणनीतिकारों की माने तो 2024 को लेकर बीजेपी की रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है। विपक्ष के सभी सहयोगियों को या तो बीजेपी अपने पाले में करना चाहती है या फिर विपक्षी पार्टियों से अलग खासकर के समाजवादी पार्टी की एक-एक सहयोगी को अलग करने की रणनीति पर बीजेपी काम कर रही है। यानी विपक्ष के सहयोगी बीजेपी के साथ आए तो अच्छा और अगर नहीं आए तो कम से कम विपक्षियों के साथ भी ना रहे।