Women Reservation Bill: महिलाओं को मिलने वाला हक क्या जाती देखकर दिया जाएगा?

महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पास हो गया. लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होगी.

लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पास हो चुका है। महिला सश्क्तिकरण और समाज में महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने में इस आरक्षण की बड़ी भूमिका होगी। एक तरफ महिलाओं के कदम राजनीति की ओर भी बढ़ेंगे तो दूसरी तरफ संसद में संख्या बल बढ़ने से वो अपने हक के लिए अपनी आवाज को उठा सकेंगी। वहीं इस फैसले को निश्चित तौर पर इसे क्रांतिकारी और ऐतिहासिक निर्णय भी कहा जा सकता है।

जातिगत कोटे की विपक्ष उठा रहा मांग 

जहां इस फैसले से हर कोई खुश नजर आ रहा है तो वहीं कुछ सियासी दल ऐसे हैं जो महिला आरक्षण में जातिगत कोटे की मांग करके इस बिल के व्यापक उद्देश्य पर पानी फेरने की कोशिश कर रहे हैं। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि वो कैसे कांग्रेस तो इस फैसले का समर्थन कर रही है लेकिन सच ये है कि जहां एक तरफ कांग्रेस इस फैसले का समर्थन कर रही है तो वहीं काग्रेस मांग उठा रही है कि इसमें ओबीसी और दलित महिलाओ के लिए अलग से कोटे का प्रावधान होना चाहिए।

महिला की कोई जात ही नहीं होती…

बता दें कि कांग्रेस ही नहीं दूसरी ओर कुछ अन्य दल भी हैं जो अल्पसंख्यक कोटे की मांग तक कर रहे हैं। अब ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता हैं कि महिलाओं को मिलने वाला हक क्या अब जाती देखकर दिया जाएगा। ये बात इन्हें पता होनी चाहिए की असल में महिला की कोई जात ही नहीं होती। ऐसा मैं क्यों कह रही हूं ये भी जान लीजिए, जब महिलाओं पर लोग अत्याचार, उनका शोषण करते हैं तो तब ये समाज जात देखकर ऐसा नहीं करता है। उनके लिए तो उसका औरत होना ही काफी है।

क्या सच में महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिल चुका है?

आज का दौर उस पुराने दौर से काफी अलग है आज के दौर में महिलाएं को स्वतंत्रता तो हैं लेकिन आज भी अत्याचार और शोषण की शिकार हैं। आज भले ही महिला सशक्तिकरण की बात तो होती है लेकिन आखिर में इस पर भी फुलस्टॉप लग जाता है। अगर आप शांत दिमाग से एक बार आंख बंद कर इस समाज की असलियत को देंखे तो क्या सच में महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिल चुका है? जिस हिसाब से महिला सश्क्तिकरण की बात होती है वो भी सवाल खड़े करता है।

“सोनचीड़िया” फिल्म महिला सश्क्तिकरण की हकीकत बयान करती है

जो बात हर जगह हर समारोह में हर नेता ये कहता है महिलाए आज कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं तो क्या ये सच हैं? हम ये नहीं कहेंगी की इस ओर हमारी प्रगति नहीं हुई है, लेकिन हां कोशिश जरूर की जा रही है, लेकिन आज भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला है।ऐसी कई फिल्में हैं जिन्होंने अक्सर महिला सशक्तिकरण को उजागर किया है। उन्कि आज भी समाज में क्या स्थिति हैं उन्हें उजागर किया है। आपको याद होगा कि साल 2019 में एक फिल्म आई थी उसका नाम था “सोनचीड़िया”।

इस फिल्म को कई लोगों ने कई नजरिए से देखा। किसी ने इसमें चंबल की डाकू देखा तो किसी ने पुलिसिया मुठभेड़। लेकिन असल मायने में ये फिल्म महिला सश्क्तिकरण की हकीकत बयान करती है। इसमें एक सीन है, जिसमें बैंडिट क्वीन फूलन देवी का किरदार कर रही सम्पा मंडल इंदूमति तोमर का किरदार कर रही भूमि पेडनेकर से पूछती हैं कि रेप पीड़ित बच्ची को अस्पताल पहुंचाने के बाद वो कहां जाएगी, उसका पति तो उसे मार डालेगा, ऐसे में वो उसके गैंग में क्यों नहीं भर्ती हो जाती।

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सोनचिड़िया फिल्म में छिपी है समाज की कड़वी सच्चाई

इसके जवाब में मुस्कुराते हुए इंदूमति कहती है, ”तुम्हारा मल्लाहों का गैंग है। मैं ठाकुर जाति की हूं.” इस पर फूलन देवी जोर से हंसती है। इंदूमति से कहती है, ”अभी तुम्हें बात नहीं समझ आई. ये ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया और शुद्र मर्दों की जाति होती है। औरतों की जाति अलग होती है। जो सबसे परे है सबसे नीच है।”सोनचिड़िया का संवाद भले ही फिल्मी हो, लेकिन इसमें हमारे समाज की कड़वी सच्चाई छिपी है। निर्भया कांड के दोषियों ने क्या उसकी जाति देखकर उसके साथ गैंगरेप किया था?

लखीमपुर खिरी में जो दो बहनों के पेड़ में लटके शव मिले थे को क्या उनके साथ जो रेप हुआ था वो जाती देखकर किया गया था? राष्ट्र अपराध रिकॉर्ड ब्यूरों की रिपोर्ट के मुताबिक जिन 86 महिलाओं के साथ हर रोज रेप हो रहा है, क्या उनकी जाति देखी जाती है? यदि नहीं तो, महिला आरक्षण के लिए जाति क्यों देखी जा रही है?पहले कि अगर बात करें तो महिलाओं को समववेत रूप से आगे बढ़ाने की कोशिश की जानी चाहिए।

 अपनी आजादी के लिए आज भी महिलाएं कर रही संघर्ष

आज भी महिलाएं अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रही हैं। नौकरी पेशा होते हुए भी परिवार की सारी जिम्मेंदारी वसे ही सम्भाल रही है। सच कहें को अब उनके ऊपर दोहरा दबाव है। परिवार और कर्म क्षेत्र दोनों का। आज भी उनका परिवार और पति उनके साथ वैसा ही व्यवहार कर रहा है, जैसे पहले होता आया है। ऐसे में उनके लिए परिस्थिति बदली कहां है। बल्कि जिम्मेंदारी पहले से ज्यादा बढ़ गई हैं।  ये हर जाति और धर्म की महिलाओं का हाल है।

हमारे राजनेताओं को अपने राजनीतिक स्वार्थ से अलग हटकर इस बिल के उद्देश्य को समझना चाहिए. महिलाओं के हित के बारे में सोचना चाहिए। आरक्षण कितना सहायक होगा। ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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