Tuhin Kanta Pandey: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) को नया चेयरमैन मिल गया है। केंद्र सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी Tuhin Kanta Pandey को सेबी का नया प्रमुख नियुक्त किया है। वे माधबी पुरी बुच की जगह लेंगे, जिनका कार्यकाल 28 फरवरी को समाप्त हो गया। कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने गुरुवार को उनकी नियुक्ति को मंजूरी दी, और वे अगले तीन साल तक इस पद पर बने रहेंगे। पांडे इससे पहले वित्त और राजस्व सचिव के पद पर कार्यरत थे और उन्हें सार्वजनिक वित्त, विनिवेश और परिसंपत्ति प्रबंधन का विशेषज्ञ माना जाता है। उद्योग जगत ने उनकी नियुक्ति की सराहना करते हुए कहा है कि उनके नेतृत्व में सेबी का विनियमन सरल हो सकता है और बाजार में पारदर्शिता बढ़ेगी। निवेशक समुदाय को उनसे कम विनियमन और स्पष्ट दिशा-निर्देशों की उम्मीद है।
अनुभवी नौकरशाह तुहिन कांता पांडे कौन हैं?
Tuhin Kanta Pandey1987 बैच के ओडिशा कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने अपने प्रशासनिक करियर में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई हैं। सेबी में नियुक्ति से पहले वे वित्त मंत्रालय के राजस्व सचिव थे, जहां वे कर संग्रह और आर्थिक नीतियों के क्रियान्वयन की निगरानी कर रहे थे।
Tuhin Kanta Pandey का टाटा समूह के साथ गहरा संबंध तब स्थापित हुआ जब उन्होंने निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) के सचिव के रूप में एयर इंडिया के विनिवेश प्रक्रिया का नेतृत्व किया। उनके कुशल प्रबंधन और रणनीतिक निर्णयों के परिणामस्वरूप, जनवरी 2022 में टाटा समूह ने 18,000 करोड़ रुपये की बोली जीतकर एयर इंडिया का अधिग्रहण किया। यह सौदा भारत के सबसे बड़े निजीकरण प्रयासों में से एक था और इसे सफलतापूर्वक पूरा करने में पांडे की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके अलावा, उन्होंने सरकार की कई अन्य विनिवेश पहलों में भी टाटा समूह के साथ बातचीत की, जिससे भारत में सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को नई दिशा मिली।
उनका सबसे उल्लेखनीय कार्य डीआईपीएएम (Department of Investment and Public Asset Management) के सचिव के रूप में रहा, जहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण विनिवेश योजनाओं को अंजाम दिया। इनके अंतर्गत –
- एयर इंडिया का टाटा समूह को निजीकरण
- एलआईसी की ऐतिहासिक सार्वजनिक लिस्टिंग
- आईडीबीआई बैंक के विनिवेश की योजना
Tuhin Kanta Pandey को सार्वजनिक वित्त और परिसंपत्ति प्रबंधन का विशेषज्ञ माना जाता है। उनके नेतृत्व में सरकार ने 18,000 करोड़ रुपये की बोली के साथ एयर इंडिया का स्वामित्व टाटा समूह को सौंपा था। उनके अनुभव को देखते हुए, वित्तीय जगत को उम्मीद है कि सेबी में भी वे नियामक प्रक्रिया को सरल बनाएंगे और विदेशी निवेशकों के विश्वास को बढ़ाएंगे।
क्या होगा असर?
एचडीएफसी एसेट मैनेजमेंट कंपनी के सीईओ नवनीत मुनोत ने कहा कि पांडे वित्तीय सुधारों और परिसंपत्ति प्रबंधन में गहरी विशेषज्ञता रखते हैं। उन्होंने कहा, “उनका व्यापक अनुभव भारत के पूंजी बाजारों को विनियमित करने और विकसित करने में मदद करेगा।”
वहीं, वित्तीय सेवा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि उनके कार्यकाल में कम विनियमन और सरल प्रक्रियाओं की उम्मीद की जा रही है। धन प्रबंधक डीआर चोकसी फिनसर्व प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक देवेन चोकसी ने कहा, “नए सेबी प्रमुख को सरल नियमों की नीति अपनानी होगी। डेरिवेटिव ट्रेडिंग के नियमों को आसान बनाना और विदेशी निवेशकों के लिए ‘नो योर कस्टमर’ (KYC) मानदंडों को अधिक अनुकूल बनाना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।”
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार पारदर्शिता और निवेशक सुरक्षा पर जोर देना भी पांडे की प्राथमिकता होनी चाहिए। उनके सामने बड़ी चुनौती भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों के पलायन को रोकना और कॉर्पोरेट गवर्नेंस मानकों को मजबूत करना होगी।
पूर्व चेयरमैन माधबी पुरी बुच का कार्यकाल विवादों से भरा रहा
सेबी की पूर्व चेयरमैन माधबी पुरी बुच का कार्यकाल कई विवादों और सख्त नियमों के लिए जाना गया। उन्होंने तीन साल के कार्यकाल में 197 चर्चा पत्र जारी किए, जो उनके पूर्ववर्तियों की तुलना में 73% अधिक थे।
बुच के कार्यकाल के दौरान –
- विदेशी निवेशकों के लिए नियमों में सख्ती
- स्टॉक हेरफेर के मामलों की तेज जांच
- आईपीओ प्रक्रिया को तेज करने के लिए नए नियम
- छोटे और मध्यम-कैप फंडों की सख्त निगरानी
हालांकि, उनकी सख्त नीतियों से कई निवेशकों को परेशानी हुई। बाजार पर्यवेक्षकों का मानना है कि बुच के कार्यकाल में अत्यधिक विनियमन ने बाजार में तरलता को कम कर दिया। उनके नेतृत्व में अडानी समूह पर लगे आरोपों की जांच भी चर्चा में रही।
अब तुहिन कांता पांडे के सामने चुनौती होगी कि वे नए नियम लागू करने और पुराने नियमों को आसान बनाने के बीच संतुलन बनाए रखें।
सेबी चेयरमैन के रूप में Tuhin Kanta Pandey की प्राथमिकताएं क्या हो सकती हैं?
सेबी के नए प्रमुख के रूप में तुहिन कांता पांडे के सामने कई बड़ी जिम्मेदारियां हैं –
- विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल नीतियां: भारत के पूंजी बाजारों में विदेशी निवेशकों की रुचि फिर से बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधार करने होंगे।
- नए आईपीओ को बढ़ावा: छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए पूंजी जुटाने की प्रक्रिया को आसान बनाना होगा।
- कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार: कंपनियों की पारदर्शिता और वित्तीय प्रकटीकरण में सख्ती बरतनी होगी।
- डेरिवेटिव मार्केट और ट्रेडिंग नियमों का सरलीकरण: निवेशकों को आसानी से व्यापार करने की सुविधा प्रदान करनी होगी।
- क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल एसेट्स पर नीति: भारत में डिजिटल संपत्तियों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तय करने होंगे।
तुहिन कांता पांडे ने अब तक अपनी रणनीतियों पर कोई टिप्पणी नहीं की है। उन्होंने कहा, “मैं पदभार ग्रहण करने के बाद ही अपने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की घोषणा करूंगा।”
क्या होगा निवेशकों के लिए फायदा?
विशेषज्ञों का मानना है कि Tuhin Kanta Pandey के कार्यकाल में भारतीय शेयर बाजार को स्थिरता मिल सकती है। उनके विनिवेश और वित्तीय नीतियों का अनुभव सेबी के लिए फायदेमंद हो सकता है।
हालांकि, बाजार में अभी भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। विदेशी निवेशकों की भागीदारी कम हो रही है और NSE Nifty 50 इंडेक्स इस साल 5% गिर चुका है। अब पांडे की प्राथमिकता होगी कि वे बाजार में निवेशकों का भरोसा वापस लाएं और भारत को एक स्थिर पूंजी बाजार के रूप में स्थापित करें।
तुहिन कांता पांडे की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब भारतीय शेयर बाजार विदेशी निवेशकों के पलायन से जूझ रहा है और कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर सवाल उठ रहे हैं। पांडे के पास सरकारी विनिवेश और वित्तीय प्रबंधन का लंबा अनुभव है, जो उन्हें इस भूमिका के लिए उपयुक्त बनाता है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि वे सेबी के प्रमुख के रूप में Tuhin Kanta Pandey बाजार में संतुलन बनाए रखते हैं या सख्त विनियमन का रास्ता अपनाते हैं। निवेशक उम्मीद कर रहे हैं कि उनके कार्यकाल में मौजूदा जटिल नियमों को सरल बनाया जाएगा और भारत का पूंजी बाजार और अधिक पारदर्शी और सशक्त बनेगा।