उत्तराखंड के उधम सिंह नगर में बुधवार को हुई घटना को लेकर ना सिर्फ यूपी पुलिस और उत्तराखंड पुलिस के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है बल्कि स्थानीय लोगों का गुस्सा भी बढ़ रहा है। गौरतलब है कि 13 सितंबर को रात 8 बजे ठाकुरद्वारा एसडीएम और खनन विभाग की टीम ने अवैध खनन पर रोक लगाने के लिये खनन में इस्तेमाल हो रही गाडियों की चेकिंग कर रहे थे। तभी खनन माफिया जफर ने टीम के साथ अभद्रता, मारपीट और गाली गलौज की और मौके से अपने साथियों के साथ फरार हो गया। उसकी तलाश में लगी यूपी पुलिस को ये सूचना मिली की जफर काशीपुर कुंडा थाना क्षेत्र के भरतपुर गांव में छुपा हुआ है।
जिसके बाद यूपी पुलिस की टीम ने सादे कपड़ों में हाथों में हथियार लेकर बिना लोकल पुलिस को जानकारी दिए वहां छापा मारा, छापे के दौरान जफर बीजेपी के ब्लाक प्रमुख के घर में घुस गया। जिसे पकड़ने जब यूपी पुलिस ब्लाक प्रमुख के घर में घुसी तो वहां हुई फायरिंग में ब्लाक प्रमुख की पत्नी को गोली लगी, जिसकी मौके पर मौत हो गई। जिसके बाद गांववालों ने यूपी पुलिस के जवानों को घेर लिया और उनकी पिटाई कर उत्तराखंड पुलिस को सौंप दिया।
मारपीट में घायल हुए पुलिसवालों के इलाज के लिये जब उत्तराखंड पुलिस उन्हें सरकारी हास्पिटल लेकर पहुंची तो वहां से यूपी पुलिस के जवान फरार होने में कामयाब हो गये। जिसके बाद गांववालों ने उत्तराखंड पुलिस के खिलाफ धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। गांववालों के नेशनल हाईवे पर जाम लगाने से गुरूवार को जब उत्तराखंड सरकार पर दबाव पड़ा तो उत्तराखंड पुलिस के डीआइजी डा. नीलेश आनंद भरणे ने जानकारी दी कि यूपी पुलिस के जवानों पर 6 गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर लिया गया है। जिसके बाद गांववालों का गुस्सा शांत हुआ।
तो वहीं घटना की जानकारी मिलने के बाद इसे राजनीतिक रंग में देने की कोशिश होने लगी। इसी के चलते जानकारी लेने कांग्रेस के जसपुर विधानसभा के विधायक आदेश चौहान भी मौके पर पहुंचे और उत्तराखंड पुलिस पर मिली भगत का आरोप लगाया।
तो दूसरी तरफ इस पूरे मामले में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल के डीआइजी शलभ माथुर ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मुरादाबाद पुलिस टीम को बंधक बनाकर उसके वैपन छीन लिए गए। उन पर फायरिंग की गई जिसमें 2 पुलिसकर्मियों को गोली लगी है कुल 5 लोग घायल हुए हैं। लेकिन अब यूपी पुलिस के डीआईजी के बयान पर कुछ सवाल उठने लगे हैं।
पहला सवाल तो यही है कि आखिर खनन माफिया को पकड़ने गई यूपी पुलिस ने स्थानीय पुलिस को कोई जानकारी क्यों नहीं दी?
दूसरा सवाल ये है कि आखिर यूपी पुलिस सादे कपड़ों में अपराधी को पकड़ने क्यों गई? इसको लेकर पुलिस की मंशा पर भी उंगली उठाई जा रही है।
यूपी पुलिस और उत्तराखंड पुलिस के बीच शुरू हुआ ये विवाद गरमाता जा रहा है तो दूसरी तरफ दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार होने से बड़े स्तर पर कोई भी अधिकारी इस घटना पर बोलने से बच रहा है। तो वहीं दोनों राज्यों सरकारों की भरसक कोशिश यही है कि किसी तरह से इस मुद्दे को शांत किया जाये जिसके चलते ही यूपी पुलिस पर 6 गंभीर धाराओं पर केस दर्ज किया गया।