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अलवर की राखी के विदेशी क्यों हैं दिवाने, कैसे राखी से आधी आबादी बन रही है आत्मनिर्भर

अलवर की राखी के विदेशी क्यों हैं दिवाने, कैसे राखी से आधी आबादी बन रही है आत्मनिर्भर

अलवर। रक्षा का वचन देने वाली राखियां अलवर की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाकर उन्हें अपने पैरों पर मजबूती से खड़ा करने में भी मदद कर रही हैं। अलवर शहर में राखी निर्माण करने वाली करीब एक दर्जन इकाइयां हैं। यह उद्योग करीब दस हजार महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करता है। वहीं करीब दो हजार महिलाएं इस काम से परोक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं। खास बात यह भी है कि राखी बनाने का काम सालभर चलता है। इसका साल का टर्नओवर भी सौ करोड़ से अधिक ही रहता है। महिलाएं इस कार्य को कर हर माह दो हजार से पंद्रह हजार तक की कमाई कर लेती हैं।

खास बात यह है कि महिलाओं के साथ बड़ी संख्या में छात्राएं भी राखियां बनाकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं। राखी के प्रमुख व्यवसायी बच्चु सिंह जैन ने बताया कि राखी उद्योग से दस हजार से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई हैं, जो अपने घरों में रहकर कार्य कर रही हैं। अलवर की राखियां ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, नेपाल, अमेरिका और कनाडा सहित अन्य देशों में भी जाती हैं। राखियों ने अलवर जिले की पहचान देश नहीं बल्कि विदेशों में भी बनाई है। यहां से राखियां आर्डर पर भेजी जाती हैं। देश के साथ विदेशों में भी अलवर की राखियां प्रसिद्ध है। नए डिजाइन की राखी में कोलकाता के साथ अलवर का भी नाम देश में प्रसिद्ध है।

जैन ने बताया कि राखी बनाने का काम सालभर चलता है। जिस कारण महिलाओं को सालभर काम मिल पाता है। इस काम से जुड़ी महिलाओं को राखी के पीस बनाने के आधार पर मजदूरी मिलती है। एक महिला की कमाई दो हजार से पंद्रह हजार रुपये महीने तक हो जाती है। इसके अलावा राखी के कार्ड, प्रिंटिंग, डिब्बे बनाने पैकेजिंग का सामान बनाने वाले, ई रिक्शा चालक सहित कई अन्य परिवारों का भी साल भर का खर्चा इसी काम से चलता है। शहर के फैमिली लाइन निवासी कृष्णा देवी ने बताया कि वह पार्ट टाइम राखी बनाने का कार्य करती हैं। महीने में तीन से चार हजार रुपये इस कार्य को कर कमा लेती हैं। इससे परिवार को आर्थिक सहायता मिलती है। इस कार्य में बच्चे भी स्कूल से आने के बाद उसका साथ देते हैं।

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