Guru Dutt’s Life Journey: “वक़्त ने किया क्या हसीं सितम… तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम…” ये गाना सुनते ही गुरु दत्त की यादें ताजा हो जाती हैं। हिंदी सिनेमा में कुछ कलाकार ऐसे होते हैं, जो अपने किरदार में इस कदर डूब जाते हैं कि दर्शक भूल जाते हैं कि वो किसी को अभिनय करते देख रहे हैं। गुरु दत्त ऐसे ही बेहतरीन कलाकारों में से एक थे, जिनकी फिल्मों और अदाकारी ने लोगों के दिलों में खास जगह बनाई।
9 जुलाई को गुरु दत्त की 100वीं जयंती मनाई जा रही है। वे सिर्फ एक कमाल के एक्टर ही नहीं बल्कि शानदार डायरेक्टर और फिल्ममेकर भी थे। उन्होंने अपने समय में जो सिनेमा बनाया, वो आज भी उतना ही ताजा और प्रभावशाली लगता है। ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’, ‘साहिब बीबी और गुलाम’ और ‘चौदहवीं का चांद’ जैसी फिल्में उनके टैलेंट की मिसाल हैं।
बेंगलुरु में जन्म, लेकिन दिल को भाया कोलकाता
बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरु दत्त का असली नाम ‘वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण’ था। उनका जन्म बेंगलुरु में 9 जुलाई को हुआ था। यह नाम उन्हें उनके मामा ने दिया था। लेकिन उनका बचपन कोलकाता में बीता और यहीं से उनकी जिंदगी ने नया मोड़ लिया।
क्यों रखा गुरु दत्त नाम?
कोलकाता गुरु दत्त के दिल के बहुत करीब था। उन्होंने वहां की संस्कृति को अपनाया, बंगाली भाषा सीखी और वहीं की जीवनशैली में रम गए। कोलकाता में रहते हुए उन्हें ‘गुरु दत्त’ नाम दिया गया, जिसे उन्होंने हमेशा के लिए अपना लिया। बंगाली संस्कृति में ‘गुरु दत्त’ नाम को बहुत शुभ माना जाता है और यही वजह रही कि वसंत कुमार ने अपना नाम बदल लिया।
हिंदी सिनेमा को मिला बेहतरीन डायरेक्टर
गुरु दत्त ने फिल्मों के जरिए ऐसा सिनेमा बनाया, जो भावनाओं से जुड़ा हुआ था। उन्होंने न सिर्फ दर्शकों को हंसाया बल्कि जिंदगी के गहरे सवालों से भी रूबरू करवाया। उनकी फिल्मों के विषय, कैमरा एंगल और म्यूजिक का चयन आज भी नए फिल्ममेकर्स के लिए सीखने का जरिया हैं।
गुरु दत्त का सिनेमा आज भी जिंदा है
Guru Dutt की फिल्में भले ही 1950 और 60 के दशक में बनी हों, लेकिन उनकी कहानियां और निर्देशन आज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उन्होंने पर्दे पर सिर्फ फिल्में नहीं, बल्कि जिंदगी की हकीकत दिखाई।