UP Crime : गाजियाबाद के वैशाली सेक्टर-6 में रहने वाली 72 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षिका अर्चना खरे साइबर ठगों का शिकार बन गईं। ठगों ने उन्हें 28 दिनों तक “डिजिटल अरेस्ट” में रखकर लगभग 56 लाख रुपये की ठगी की। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
कैसे हुआ साइबर फ्रॉड ?
1 अप्रैल, 2025 को अर्चना खरे को एक फोन कॉल आया जिसमें खुद को टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी का अधिकारी बताया गया। कहा गया कि उनके फोन और आधार नंबर का इस्तेमाल अवैध गतिविधियों, जैसे कि हवाला लेन-देन और अश्लील संदेश भेजने में हो रहा है।
इसके बाद, उन्हें वीडियो कॉल पर एक व्यक्ति ने बताया कि मामला अब सीबीआई को सौंप दिया गया है और दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित बैंक में उनके नाम पर 100 से ज्यादा फर्जी खाते खोले गए हैं।
डिजिटल अरेस्ट का भय
ठगों ने महिला को यह कहकर डराया कि यदि उन्होंने पुलिस से संपर्क किया या किसी को बताया तो उनके बेटे के करियर को नुकसान पहुंचाया जाएगा। साथ ही, बुजुर्ग होने के कारण उन्हें घर में ही नजरबंद (डिजिटल अरेस्ट) रखा जाएगा।
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28 दिनों तक, रोज शाम 5:30 से 6:00 बजे के बीच उन्हें वाट्सएप वीडियो कॉल किया जाता रहा, और मानसिक दबाव बनाकर उनसे अलग-अलग खातों में पैसे ट्रांसफर कराए गए।
पुलिस की जांच जारी
इस मामले की शिकायत साइबर क्राइम थाना, गाजियाबाद में दर्ज कर ली गई है। पुलिस का कहना है कि ठगों की पहचान के प्रयास किए जा रहे हैं और डिजिटल सबूतों के आधार पर जांच तेजी से चल रही है। यह मामला देश में साइबर अपराधों की नई और खतरनाक चालों को उजागर करता है। “डिजिटल अरेस्ट” जैसी रणनीतियों के जरिए ठग बुजुर्ग और अकेले रहने वाले लोगों को निशाना बना रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जनजागरूकता और डिजिटल साक्षरता ही ऐसे अपराधों से बचाव का सबसे प्रभावी उपाय है।
सावधानी ही सुरक्षा है
पुलिस और साइबर सुरक्षा एजेंसियों ने आम जनता से अपील की है कि वे
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किसी भी अनजान कॉल या वीडियो कॉल पर भरोसा न करें,
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सरकारी अधिकारियों के नाम पर आई धमकियों को सत्यापित करें,
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और ऐसे किसी भी संदिग्ध व्यवहार की तुरंत 112 या साइबर हेल्पलाइन 1930 पर शिकायत करें।