Alzheimer in Young People: हाल ही में आई फिल्म सैयारा दर्शकों के दिलों में खास जगह बना चुकी है। इसकी कहानी, कलाकारों की एक्टिंग और गाने जितने दिल को छूने वाले हैं, उतनी ही खास बात है इसका एक गंभीर सामाजिक मुद्दा उठाना। इस फिल्म में अभिनेत्री अनीत पड्डा ने एक ऐसी लड़की का किरदार निभाया है, जिसे अल्जाइमर जैसी बीमारी हो जाती है। एक ऐसी बीमारी जिसे आमतौर पर बुजुर्गों से जोड़ा जाता है।
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे वह पहले छोटी-छोटी बातें भूलने लगती है और फिर धीरे-धीरे अपने करीबियों को भी पहचानना बंद कर देती है। इस किरदार ने न सिर्फ लोगों को भावनात्मक रूप से झकझोरा, बल्कि यह भी दिखाया कि यह बीमारी युवाओं को भी अपना शिकार बना सकती है।
अल्जाइमर क्या होता है?आसान भाषा में समझें
Alzheimer एक दिमाग से जुड़ी गंभीर बीमारी है जिसमें इंसान की याद रखने, सोचने और पहचानने की ताकत धीरे-धीरे कम होने लगती है। यह एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो धीरे-धीरे दिमाग की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। इसे “डिमेंशिया” का सबसे आम रूप भी कहा जाता है। यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है और समय के साथ इंसान का व्यवहार, उसकी सोचने-समझने की क्षमता और रोज़मर्रा का कामकाज बुरी तरह प्रभावित होने लगता है।
अल्जाइमर के शुरुआती लक्षण
बार-बार चीजें भूल जाना
बातें करते समय शब्द भूल जाना
समय और तारीख को लेकर उलझन होना
चीजों को गलत जगह रख देना
अचानक मूड बदलना, चिड़चिड़ापन
अपने करीबियों को पहचानने में दिक्कत
जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, व्यक्ति अपना ख्याल भी खुद नहीं रख पाता और उसके रोज़मर्रा के कामों में भी परेशानी होने लगती है।
दिमाग पर इसका असर कैसे पड़ता है?
इस बीमारी में दिमाग की कोशिकाओं के बीच जमा होने वाले प्रोटीन (प्लाक्स) की वजह से न्यूरॉन्स यानी तंत्रिका कोशिकाएं एक-दूसरे से सही तरीके से संपर्क नहीं कर पातीं। इससे याददाश्त, निर्णय लेने की क्षमता और व्यवहार पर असर पड़ता है। MRI स्कैन में दिमाग सिकुड़ता हुआ दिखता है।
किन लोगों को है ज्यादा खतरा?
जिनके परिवार में पहले यह बीमारी रही हो
सिर पर गंभीर चोट लगी हो
हाई ब्लड प्रेशर या डिप्रेशन की शिकायत हो
शारीरिक गतिविधियां कम करने वाले लोग
हालांकि यह आमतौर पर 60 की उम्र के बाद दिखती है, लेकिन कुछ मामलों में यह 40 की उम्र के आसपास भी शुरू हो सकती है।
क्या इसका इलाज संभव है?
इस बीमारी का कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाएं और थेरेपी से इसके लक्षणों को कुछ समय तक रोका जा सकता है। सही देखभाल, मानसिक रूप से एक्टिव रहना और परिवार का साथ बहुत जरूरी होता है।