Meerut News: पाकिस्तानी या हिन्दुस्तानी….पूरी जिंदगी इस कशमकश में जीने वाले कामिल खान के परिवार में बरसों बाद ईद आयी है. उम्रकैद से ज्यादा सजा काटने के बाद कामिल खान को सुप्रीमकोर्ट (Supreme Court) के आदेश पर डिटेन्शन सेंटर की कैद से आजादी नसीब हुई है.
देश की सरहदों के बंटवारे का दंश झेलने वाले इस परिवार की दो पीढ़ियों की जिंदगी तरक्की से महरूम होकर महज मुफलिसी की होकर रह गयी.
मेरठ ( Meerut) के खैरनगर (Khairnagar) की डॉक्टर सेन गली के वाशिन्दे कामिल खान उर्फ कमर 8 साल के थे जब वह अपनी मां के साथ पाकिस्तान के लाहौर गये. पाकिस्तान में उनकी मां की अचानक मौत हुई और वह वहीं के होकर रह गये. रिश्तेदारों ने उन्हें बालिग होने तक पाला-पोसा जरूर लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई नही हो सकी. बालिग होने पर कमर को पाकिस्तान से पासपोर्ट मिला और वह लॉग-टर्म वीजा पर मेरठ अपने खानदान के बीच आ गये. उनके परिवार ने शहनाज बेगम से उनका निकाह कर दिया और वह अपने 5 बच्चों के परिवार के बीच रहते रहे. 2011 में एक शिकायत पर उन्हें पुलिस पकड़कर ले गयी तो पता चला कि उनका वीजा एक्सपायर्ड हो गया और अनपढ़ होने की वजह से वह उसे रिन्यू नही करा सके.
देहलीगेट थाने में मुकदमा दर्ज हुआ और कमर को साढ़े 3 साल के लिए जेल हो गयी. जेल की सजा पूरी होने पर उन्हें दिल्ली के नरेला में डिटेंशन सेंटर की कैद में भेज दिया गया. केन्द्र सरकार ने दो बार पाकिस्तान को अपना नागरिक वापिस लेने के लिए चिट्ठी भेजी लेकिन सरहद पार से कोई जबाब नही आया. दो साल पहले कमर की बेटी एना परवीन ने अपने पिता की रिहाई के लिए सुप्रीमकोर्ट में पैरवी शुरू की. 11 साल कैद की सजा काट चुके कमर को सुप्रीमकोर्ट ने सशर्त जमानत पर रिहाई दी है. विदेश मंत्रालय अब यह तय करेगा कि कमर को लॉग-टर्म वीजा दिया जा सकता है या नही. लेकिन कमर की रिहाई से परिवार के लिए ईद को तोहफा जरूर आया है.
(BY: Vanshika Singh)