देश: शहर, शख्स और ईशनिंदा के तरीके बदलते रहे, लेकिन अंजाम सभी का कत्ल. आपको बता दे की कुछ धर्म और धार्मिक कानूनों के मुताबिक़ ईशनिंदा का मतलब ईश्वर या किसी पवित्र धार्मिक व्यक्ति या वस्तु का अपमान करना है.
उदयपुर में कन्हैयालाल ने पैगंबर मोहम्मद पर नूपुर शर्मा की टिप्पणी का समर्थन किया। अंजाम- कत्ल।
अहमदाबाद में किशन ने पैगंबर से बड़ा कृष्ण को बता दिया। अंजाम- कत्ल।
पाकिस्तान में एक महिला ने सपने में देखा कि दूसरी महिला पैगंबर मोहम्मद का अपमान कर रही है। अंजाम- कत्ल।
आज की हमारी इस ख़ास रिपोर्ट में जानिए कैसे ईशनिंदा की शुरुआत हुई, ईशनिंदा का क्या है इतिहास, अलग-अलग धर्मों में क्या है इसकी मौजूदगी, ईशनिंदा का समाजशास्त्र और इससे जुड़ी कानूनी पक्ष की पूरी कहानी.
ईशनिंदा को लेकर क्या कहा गया है धार्मिक ग्रंथों में.
BIBLE : LEVITICUS 24:16 के अनुसार कोई भी आदमी जो ईश्वर की निंदा करे, उसे माफ़ ना करके सजा देनी चाहिए.
QURAN : पद्मभूषण से सम्मानित मौलाना वहीदुद्दीन खान के मुताबिक़ हर दौर में लोगों ने पैगम्बर के प्रति नकारात्मक रवैया अपनाया, लेकीन कुरान में ऐसे लोगों के साथ मारपीट करने या सजा देने की बात कहीं नहीं लिखी गई है. हालाँकि 11वीं शताब्दी में मुस्लिम विद्वानों ने इस्लाम में ईशनिंदा की व्याख्या अपने तरीके से की, जिसके बाद इस्लाम में ईशनिंदा पर सजा की बात सामने आई है.
GURU GRANTH SAHIB : पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में सिख अध्ययन के पूर्व प्रोफेसर धर्म सिंह के अनुसार ‘दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने ऐसा ही फरमान सुनाया था कि गुरु ग्रन्थ साहिब और इससे जुड़ी हर चीज़ जैसे – टोपी ‘दस्तार’ या ‘पगड़ी’, या ‘कृपाण’ आदि को पवित्र माना जाता है. इसीलिए इनका अनादर एक गंभीर अपराध है’. हालाँकि सजा को लेकर धर्मग्रन्थ में लिखी गई किसी भी बात का स्पष्ट रूप से पता नहीं चल सका है.
HINDU GRANTH : ‘THE UNIVERSITY OF CHICAGO’ की वेबसाइट पर ‘Wendy Doniger’ की एक रिसर्च है, जिसमे लिखा है की हिन्दू धर्म में ईशनिंदा का जिक्र कही भी और कहीं भी नहीं मिलता है. अर्थात हिन्दू धर्म को सहिस्णु बताया गया है और आलोचनाओं पर बंदिश नहीं लगाई गई है.
JAIN और BAUDH DHARM : अब तक की रिसर्च में जैन और बौद्ध धर्म में ईशनिंदा के कांसेप्ट का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है.
आपको बता दे की ईशनिंदा का कांसेप्ट इस्लाम धर्म में 1050 के आस पास मिलता है. SAN DIEGO के प्रोफेसर AHMET T. KURU ने अपनी किताब Islam, Authoritarianism, and Underdevelopment: A Global and Historical Comparison में लिखा है, सुन्नी विद्वानों यानी ‘उलेमा’ ने तब राजाओं के साथ मिलकर ईशनिंदा पर कानून बनाना शुरू किया. उनके मुताबिक़ मुस्लिम विद्वान Abu Hamid Al-Ghazali ने इस्लाम में कट्टरता को बढ़ावा दिया था. गजाली ने ही ईशनिंदा पर मौत की सजा देने को जायज ठहराया था.
इसके बाद 12वीं शताब्दी के दौरान इस्लाम के कट्टर धार्मिक नियमों को चुनौती देने वालों को मौत की सजा दी जाने लगी.
आपको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी इस मामले से जुड़ी कई कहानियाँ BIBLE में भी मिलती है जिसमे 2000 साल पहले खुद JESUS CHRIST पर भी ईशनिंदा के आरोप लगे थे… बाद में उन्हें आरोपों के चलते सूली पर चढ़ाया गया था.. उस समय यहूदियों का आरोप था की JESUS खुद को ईश्वर का बेटा कहते थे जो की ईशनिंदा माणी गई थी.
PROFESSOR DAVID NASH की किताब ‘Blasphemy in the Christian World: A History’ के मुताबिक़ पुराने ग्रीस में आज से 2500 साल पहले ईशनिंदा का कान्सेप्ट होने के सबूत मिलते है. यहाँ ईश्वर को कुछ बोलना गलत माना जाता था.
वहीं, कुछ Experts का मानना यह भी है की धर्मों के विकसित होने के साथ ही लोगों की श्रद्धा को बरकरार रखने के लिए ईशनिंदा के कांसेप्ट की शुरुवात हुई है.
भारत में ईशनिंदा को लेकर कोई अलग से कानून नहीं है. 1860 में पहली बार अंग्रेजों ने भारत में ईशनिंदा को लेकर IPC में 3 कानून – SECTION 295, 296 और 298 बनाए थे. 1927 में ईशनिंदा को लेकर भारतीय दंड सहिंता की धरा 295 में एक और कानून 295-A जोड़ा गया.
इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचाने को CRIME माना गया है… जिसमे 3 साल तक की सजा हो सकती है.
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19(A) के तहत मिले बोलने की स्वतंत्रता, यानी FREEDOM OF SPEECH का अधिकार और ईशनिंदा पर क़ानून आपस में टकराते है.
भारतीय दंड सहिंता, यानी IPC में ईशनिंदा, सांप्रदायिक तनाव से निपटने के लिए धरा 154, 295, 295A, 296, 297 और 298 के तहत 3 साल तक की जेल की सजा का नियम है.
IPC और CRPC में बदलाव करके ईशनिंदा के लिए आजीवन कारावास के लिए PUNJAB की विधानसभा ने कानून को मंजूरी दी. हालाँकि, केंद्र सरकार ने उस पर अभी तक अनुमोदन नहीं किया है.