नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। पाकिस्तान के इस वक्त हालात बहुत खराब हैं। यहां के तीन सूबों में जंग-ए-आजादी को लेकर विद्रोह जारी है। ऐसा ही एक प्रदेश बलूचिस्तान है, जहां पिछले कई दशकों से जारी प्रताड़ना, दमन और शोषण को लेकर पाकिस्तानी सत्ता और पाकिस्तानी सेना का लगातार विरोध होता आ रहा है। अब ये ज्वाला भड़क चुकी है। पूरेबलोच लैंड में सशस्त्र क्रांति को लेकर लोग सड़कों पर हैं। जबकि लिबरेशन आर्मी, मजीद ब्रिगेड समेत कई संगठन पाकिस्तानी सत्ता और सेना को सीधी टक्कर दे रहे हैं तो वहीं क्रांतिकारी महिलाएं भी बारूद के बजाए मुंह और आंख के जरिए पाक आर्मी की पतलून गीली किए हुए हैं।
गांधीगिरी के जरिए पाक आर्मी से कर रही मुकाबला
पाकिस्तान ने 1947 में बलोचिस्तान पर जबरन कब्जा कर लिया। जिसको लेकर बलोच पिछले सात दशक से लड़ाई लड़ रहे हैं। पाकिस्तान आर्मी जंग-ए-आजादी के मूपमेंट को दबाने के लिए लाखों बलोच को मौत की नींद सुला दिया। बलोचिस्तान का शायद ही कोई घर होगा जहां से एक बेटा, एक बाप, एक भाई या फिर एक चाचा जबरन गायब न हुआ हो। क्वेटा, ग्वादर, खुजदार, तुर्बत, कलात, पंजगुर, नोशकी, बोलान के अलावा बलोचिस्तान के गांव-गांव, गली-गली में पाकिस्तानी सेना के जुल्म के जख्म मौजूद हैं। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि अमूमन पर्दे में रहने वाली बलोची लड़कियों ने इकंलाब के रास्ते पर उतर चुके हैं। जिनके खौफ से पाक आर्मी भी थर-थर कांप रही है। बलोच लड़कियां बंदूक के बजाए गांधीगिरी के जरिए पाक आर्मी से मुकाबला कर रही हैं।
बलोचिस्तान में प्रतिरोध के प्रतीक
जांबाज लड़कियों में एक हैं 32 साल की महरंग बलोच, जिन्हें 22 मार्च को उनके घर से पाक आर्मी ने गिरफ्तार कर लिया था। जबकि दूसरी हैं सीमा बलोच, जिनके बारे में भी कहा जाता है कि ये भी पाक आर्मी की कैद में हें। वहीं तीसरा नाम फरजाना मजीद बलोच उर्फ सम्मी का है, जो अब भी बलोचिस्तान को लेकर अपनी आवाज बुलंद किए हुए हैं। इन तीनों लड़कियों ने न सिर्फ अपने निजी दुखों को एक सामूहिक संघर्ष में बदला, बल्कि पाकिस्तानी सेना और सरकार के उस सिस्टम को हिला दिया, जो दशकों से बलोचिस्तान की आवाज को कुचलता आया है। ये नाम आज बलोचिस्तान में प्रतिरोध के प्रतीक बन चुके हैं।
कौन हैं महरंग बलोच
महरंग बलोच आज बलोचिस्तान में एक आइकन बन चुकी हैं। महरंग जब महज 13 वर्ष की थीं, तभी उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर मानवाधिकारों के लिए लड़ाई लड़नी शुरू कर दी थी। महरंग पेश से डॉक्टर हैं। वह गरीबों का इलाज करती थीं। पर पाक आर्मी ने उनके पिता और भाई के साथ अन्याय किया, जिसके चलते उन्होंने डॉक्टरी के पेशे को छोड़ कर मानवाधिकार कार्यकर्ता बन गई। महरंग के पिता अब्दुल गफ्फार लैंगोव को पाक आर्मी ने 2009 में अगवा कर लिया। दो साल के बाद उनका शव मिला। पाक आर्मी पे महरंग के इकलौते भाई को भी 2017 में अरेस्ट कर लिया। तीन माह को उसे पीटा गया। भाई के लिए महरंग ने धरना दिया। जिसके बाद उसे छोड़ा गया।
1600 किलोमीटर का लॉन्ग मार्च
महरंग ने बलोच यकजेहती समिति के बैनर तले शांतिपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया। 2023 में उन्होंने तुर्बत से इस्लामाबाद तक 1600 किलोमीटर का लॉन्ग मार्च आयोजित किया, जिसमें हजारों लोग, खासकर महिलाएं, शामिल हुईं। इस मार्च ने लापता व्यक्तियों के मुद्दे को ग्लोबल फोरम प्रदान किया। उनकी बेबाकी और साहस ने उन्हें 2024 में बीबीसी की 100 प्रभावशाली महिलाओं की सूची और टाइम मैगजीन की उभरते वैश्विक नेताओं की सूची में जगह दिलाई। लेकिन रावलपिंडी के जनरलों को महरंग बलोच के बढ़ते कदम भला कैसे भाते। उनपर लगातार टॉर्चर हुआ। पाकिस्तान की पंजाबी लॉबी वाली मीडिया ने उनपर तशद्दुद किया।
महरंग बलोच को गिरफ्तार कर लिया गया
बीएलए ने एक ट्रेन को हाईजेक किया और पाक आर्मी के जवानों की हत्या कर दी। फिर बीएलए के सुसाइड दस्ते ने पाक आर्मी पर अटैक कर 90 जवानों को मार डाला। इसी के बाद पाक आर्मी ने बलोचिस्तान में ऑपरेशन को शुरू कर दिया। 22 मार्च 2025 में, क्वेटा में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान महरंग बलोच को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर आतंकवाद, देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगाए गए। उनकी गिरफ्तारी ने बलोचिस्तान में आक्रोश की लहर पैदा कर दी। 22 मार्च के बाद अभी तक महरंग बलोच की कोई खबर नहीं है।
सम्मी दीन बलोच की कहानी भी कम मार्मिक नहीं
सम्मी दीन बलोच की कहानी भी कम मार्मिक नहीं है। उनके पिता दीन मोहम्मद बलोच को 2009 में अगवा किया गया था, और तब से उनकी कोई खबर नहीं है। इस घटना ने सम्मी को मानवाधिकार आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। वे ‘वॉइस फॉर बलोच मिसिंग पर्सन्स’ की महासचिव हैं और बीवाईसी की एक सक्रिय सदस्य भी। सम्मी उन सभी परिवारों की आवाज बनीं, जिनके अपने लापता हैं। सम्मी ने कई प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और बलोचिस्तान के बाहर भी, जैसे कराची में, अपनी बात रखी। लेकिन उनकी सक्रियता ने उन्हें भी सत्ता के निशाने पर ला दिया। मंगलवार को कराची में एक प्रदर्शन के दौरान सम्मी को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया।
जागरूकता फैलाने में अहम भूमिका निभाई
सीमा बलोच बीवाईसी की एक और सशक्त आवाज हैं। उन्होंने खास तौर पर बलोच महिलाओं को संगठित करने और उनके अधिकारों के लिए जागरूकता फैलाने में अहम भूमिका निभाई है। सीमा ने भी कई प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और लापता व्यक्तियों के परिवारों के लिए आवाज उठाई। उनकी सक्रियता ने बलोचिस्तान में एक नई चेतना जगाई है, जहां महिलाएं अब अपने हक के लिए खुलकर बोल रही हैं। हालांकि बीएलए के ट्रेन हाईजेक के बाद सीमा को भी पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है। महरंग, सम्मी और सीमा फिलहाल कहां हैं इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं हैं।
हिम्मत किसी भी सत्ता को हिला सकती
महरंग, सम्मी और सीमा ने हमेशा शांतिपूर्ण प्रतिरोध का रास्ता चुना। उन्होंने गांधीवादी तरीकों से अपनी बात रखी-लंबे मार्च, धरने, सभाएं. लेकिन पाकिस्तानी सत्ता ने उनकी आवाज को दबाने के लिए हर हथकंडा अपनाया। महरंग, सम्मी और सीमा की वजह से बलोचिस्तान का मुद्दा आज वैश्विक मंचों पर पहुंच चुका है। एमनेस्टी इंटरनेशनल, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने इनके संघर्षों को स्वीकार किया है। इन बागी लड़कियों ने न सिर्फ बलोचिस्तान में एक नई चेतना जगाई, बल्कि दुनिया को दिखा दिया कि दमन के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत किसी भी सत्ता को हिला सकती है।